पटनाःबिहार में अप्रैल 2016 में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किया गया. शराबबंदी को सफल बनाने के लिए कड़े कानून भी बनाए गए, लेकिन न्यायालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था नहीं की जा सकी. जिसका नतीजा यह है कि न्यायालय में लाखों की संख्या में केस पेंडिंग है. वरिष्ठ वकील दीनू कुमार का कहना है कि पेंडिंग केस को सुलझाने में 100 साल से ज्यादा समय लग जायेंगे.
बिहार में पूर्ण शराबबंदी कानून लागू हुए 4 साल होने वाले हैं. औसतन, हर साल बिहार शराबबंदी से जुड़े 50 हजार से ज्यादा मामले न्यायालय में दर्ज हो रहे हैं, लेकिन केस निपटारा की गति काफी धीमी है. इसके पीछे न्यायालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर का आभाव बताया जा रहा है. वहीं, लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, फिलहाल बिहार में दो लाख मामले लंबित हैं. शराबबंदी से जुड़े मामलों की बढ़ती संख्या पर हाईकोर्ट ने भी सरकार से मामलों के निपटारा को लेकर सवाल पूछ चुकी है.
वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार दूसरे केस हो रहे प्रभावित
वरिष्ठ अधिवक्ता दीनू कुमार ने बताया कि एक मामले के निपटारे में 3 से 4 महीने का वक्त लगता है. ट्रायल से पहले चार्ज शीट की प्रक्रिया पूरी होती है उसके बाद कमिटमेंट और फिर गवाहों को सम्मन किया जाता है. न्यायालयों में जितने दूसरे मामले लंबित है उसके बराबर सिर्फ शराबबंदी के मामले विचाराधीन है. दीनू कुमार ने बताया कि कहा कि कोर्ट अगर सभी मामलों को छोड़ दे और सिर्फ शराबबंदी से जुड़े मामलों की सुनवाई करें तो दो लाख केस को हल करने में 50 साल से अधिक का वक्त लग सकता है इसके चलते परेशानियां हो रही है. प्रशासनिक काम भी ठप है और दूसरे मामलों की सुनवाई नहीं हो पाती है.
सुनवाई के लिए 74 स्पेशल कोर्ट
महाधिवक्ता ललित किशोर ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि शराबबंदी के अच्छे नतीजे आए हैं लेकिन कुछ लोग अपनी आदत में बदलाव नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे लोग कानून को तोड़ कर गलत धंधे में संलिप्त हैं. जिसके कारण केस की संख्या लगातार बढ़ रही है. उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि सरकार ने 74 स्पेशल कोर्ट बनाए हैं. 33 जिलों में कोर्ट के लिए जगह आवंटित किया जा चुका है. वर्तमान में 666 पदों के लिए भर्ती की प्रक्रिया भी चल रही है और जल्द ही न्यायालयों के शुरू हो जाने से लंबित मामलों की संख्या में कमी आएगी.