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सहजानंद सरस्वती की 71वीं पुण्यतिथि: 'आरा में स्वामी जी के नाम से बनेगा कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय'

बीजेपी (BJP) प्रदेश कार्यालय में स्वामी सहजानंद सरस्वती (Swami Sahajanand Saraswati) की पुण्यतिथि पर उन्हें बीजेपी नेताओं ने श्रद्धांजलि दी. इस दौरान कृषि मंत्री ने कहा कि उनके नाम से आरा में कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय बनेगा. देखें रिपोर्ट

पटना
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Published : Jun 26, 2021, 9:55 PM IST

पटना: बिहार के पटना में बीजेपी (BJP) प्रदेश कार्यालय में किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती (Swami Sahajanand Saraswati) की 71वीं पुण्यतिथि मनाई गई. इस अवसर पर स्वामी सहजानंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर बीजेपी नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि (Tribute) दी. उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Tarkishore Prasad) और कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह (Amrendra Pratap Singh) सहित कई बीजेपी नेता कार्यक्रम में मौजूद रहे थे.

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''स्वामी सहजानंद सरस्वती दबे कुचले गरीबों की मदद करने वाले किसान नेता थे. जिस तरह से उन्होंने किसानों की मदद की थी, वह अविस्मरणीय हैं. हमने अपनी सरकार में आरा में स्वामी सहजानंद सरस्वती के नाम से कृषि अभियंत्रण महाविद्यालय खोलने का प्रस्ताव रखा है, इसकी घोषणा भी जल्द होगी.''- अमरेंद्र प्रताप सिंह, कृषि मंत्री

देखें रिपोर्ट

''जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती जी ही हैं. उस जमाने में कांग्रेस नहीं चाहती थी कि जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो, इसलिए स्वामी सहजानंद सरस्वती ने किसान महासभा बनाकर आंदोलन को तेज किया था.''- तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री

'किसानों के हित को सोचने वाले किसान नेता'
कार्यक्रम में कई वक्ताओं ने अपनी राय रखी और स्वामी सहजानंद सरस्वती को किसानों के हित को सोचने वाले किसान नेता बताया. बता दें कि गांधीजी के कहने पर 1920 में स्वामी सहजानंद आजादी की लड़ाई में कूदे पड़े और बिहार को अपने आंदोलन का केन्द्र बनाया. उन्होंने कुछ समय पटना के बांकीपुर जेल और लगभग दो साल हजारीबाग केन्द्रीय कारा में सश्रम कारावास की सजा झेली.

बीजेपी नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

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जमींदारों के खिलाफ लड़ी आर-पार की लड़ाई
स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी ही जाति के जमींदारों के खिलाफ हल्ला बोल दिया था और आर-पार की लड़ाई शुरू कर दी. उन्होंने देशभर में घूम-घूमकर किसानों की रैलियां की. स्वामीजी के नेतृत्व में 1936 से लेकर 1939 तक बिहार में किसानों ने कई लड़ाईयां लड़ीं. इस दौरान जमींदारों और सरकार के साथ उनकी छोटी-मोटी सैकड़ों भिड़न्त भी हुई.

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