पटना : लोक आस्था का महापर्व छठ सभी हर किसी के लिए खास है. सभी वर्ग और समुदाय के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान भाष्कर की पूजा करते हैं. उसी तरह ट्रांसजेंडर सुमन मित्रा के लिए भी छठ काफी खास है. इस अवसर पर पूरा परिवार एकजुट होता है और उनके लिए छठ की तैयारी करता है. चाहे प्रसाद बनाना हो या अर्घ्य के लिए सूप तैयार करना, पूरा परिवार उत्साह और भक्ति मय माहौल में हाथ बंटाता है.
15 साल से छठ कर रही हैं सुमन :सुमन मित्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि वह बीते 15 वर्षों से छठ महापर्व करते आ रही हैं. कार्तिक छठ के साथ-साथ पिछले कुछ समय से उन्होंने चैत्र छठ भी शुरू कर दिया है. कार्तिक छठ यहां वह अपने पूरे परिवार के साथ घर में मिलजुल कर मानती हैं. वहीं चैत्र छठ महिला विकास निगम और अपने कम्युनिटी के साथियों के साथ मिलकर मानती हैं. सुमन ने बताया कि कार्तिक छठ में वह दानापुर के गंगा घाट में जाकर अर्घ्य देती है.
"नदी में सबसे पहले जाती हूं और सबसे लेट से निकलती हूं. 31 सूप से अर्घ्य देती हूं. परिवार में पांच भाई, दो बहने हैं. सबसे छोटे भाई की शादी नहीं हुई है और बाकी का परिवार और कम्युनिटी के कुछ साथी हैं और सभी के नाम पर कुल 31 सूप का वह अर्घ्य देती हूं."-सुमन मित्रा, छठ व्रती
'साक्षात देव की पूजा होती है' : सुमन ने बताया कि छठ बहुत ही पावन पर्व है और इस पर्व में वह जो देव साक्षात हैं. उनकी पूजा करती हैं. सबसे पहले डूबते हुए सूर्य को षष्ठी के दिन अर्ध्य देकर नमन किया जाता है. कामना की जाती है कि अगले दिन जब निकले तो और तेज प्रकाश के साथ जीवन रोशन करें और फिर सप्तमी को सुबह में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है. सनातन परंपरा का यह बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है और उनके परिवार में शुरू से ही छठ महापर्व होते चला आ रहा है.
माता-पिता की मृत्यु के बाद नहीं हो रही थी छठ पूजा : सुमन ने बताया कि उनके माता-पिता की आकस्मिक मृत्यु हो गई. उनके माता-पिता छठ व्रत किया करते थे और उस समय परिवार में एक अलग रौनक होती थी. माता-पिता के निधन के समय किसी भाई बहनों की शादी नहीं हुई थी. माता-पिता के निधन के बाद जब भी छठ महापर्व आता तो घर में उदासी रहती थी. छठ पर्व खत्म होने के बाद वह गंगा घाट जाकर घंटों बैठती थी और रोती थी. फिर उसके बाद उनकी बहन की शादी हुई और उसके 1 साल बाद बड़े भाई की शादी हुई.