पटनाः दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण प्रदान किया गया, जिसमें बिहार से तीन लोगों को पद्मश्री प्रदान किया गया. पटना के सुपर 30 के संस्थापक श्री आनंद कुमार, मधुबनी की सुभद्रा देवी और नालंदा के कपिलदेव प्रसाद को पद्मश्री प्रदान किया गया. बुधवार को दिल्ली राष्ट्रपति भवन में यह पुरस्कार वितरण किया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने साहित्य और शिक्षा के लिए आनंद कुमार को पद्म श्री प्रदान किया. सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार एक अग्रणी शिक्षक हैं, जिन्होंने वंचित छात्रों को भारत के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में प्रवेश दिलाने में मदद की है.
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राष्ट्रपति ने किया सम्मानितः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कला के लिए सुभद्रा देवी को पद्म श्री प्रदान किया. उन्हें मधुबनी पेपर मेशी कला की जननी के रूप में जाना जाता है. सुभद्रा देवी बेकार कागज का उपयोग कर उपयोगी और सजावटी सामान बनाने के लिए जानी जातीं है. तीसरा पद्म श्री नालंदा कपिलदेव प्रसाद को दिया गया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कला के लिए कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री प्रदान किया. एक पारंपरिक हथकरघा बुनकर, उन्हें 'बावन बूटी' बुनाई कला को जीवित रखने के लिए जाना जाता है. इन्होंने हजारों बुनकरों को प्रशिक्षित किया है.
आनंद कुमारः बिहार के आनंद कुमार सुपर-30 से अपनी पहचान बनाई. आनंद कुमार कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं. शिक्षा के क्षेत्र में पहचान बनाने वाले आनंद कुमार को देश का सर्वोरच्च नागरिक पुरस्कार मिलना बहुत बड़ी उपलब्धी है. आनंद कुमार ने एक बार फिर से बिहार का नाम रोशन किए. बता दें कि आनंद कुमार सुपर-30 में चयनित स्टूडेंट को फ्री में IIT JEE की तैयारी कराते हैं.
सुभद्रा देवीःमधबुनी की रहने वाली सुभद्रा देवी ने पेपर मेशी कला से अपनी पहचान बनाई. पेपर मेशी एक ऐसी कला है, जिसमें बेकार कागज को मसल कर उससे कलाकृति बनाई जाती है. सुभद्रा देवी मधुबनी जिले के भिठ्ठी सलेमपुर की रहने वाली है. सुभद्रा को पद्म श्री मिलने से जिले के लोगों में खुशी का माहौल है.
कपिलदेव प्रसादः कपिलदेव प्रसाद नालंदा के बिहार शरीफ से तीन किमी दूर बासवन बिगहा के रहने वाले हैं. उन्होंने हस्तकरघा के रूप में अपनी पहचान बनाई. कपिलदेव हस्तकरघा के जरिए बावन बूटी साड़ी बनाते हैं. यह कला उन्हें विरासत में मिली है. पिछले 60 साल से वे इस काम से जुड़े हुए हैं. इनके दादा शनिचर तांती ने इसकी शुरुआत की थी. इसके बाद इनके पिता और फिर कपिलदेव, अब इनके बेटे इस काम को संभाल रहे हैं.