पटना:बिहार दिवसको लेकर 2005 में जब नीतीश कुमार ने सूबे की सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने इसे बड़े स्तर पर मनाने का फैसला लिया था. हालांकि उस समय यह नहीं तय हो पाया कि किस तिथि को स्थापना दिवस मनाया जाए. अधिकारियों और मंत्रिमंडल के साथियों के साथ काफी चर्चा और दस्तावेजों को देखने के बाद यह तय हुआ कि बंगाल से जब बिहार 1912 में आज ही के दिन अलग हुआ था तो उसी दिन को स्थापना दिवस के रुप में मनाया जाए. इसकी चर्चा खुद मुख्यमंत्री कई बार मीडिया के साथियों के साथ बातचीत के दौरान करते रहे हैं.
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22 मार्च 1912 को बंगाल से बिहार अलग हुआ: वैसे बंगाल से बिहार के अलग होने के बाद उड़ीसा भी बिहार का हिस्सा था और झारखंड भी. 1 अप्रैल 1936 में उड़ीसा भी बिहार से अलग हो गया और 15 नवंबर 2000 में झारखंड भी अलग हो गया. इसलिए स्थापना दिवस की तिथि को लेकर फैसला लेने में थोड़ा समय लगा लेकिन अंत में यही तय हुआ कि बंगाल से जब बिहार अलग हुआ था यानी 22 मार्च 1912 की तिथि को ही स्थापना दिवस बिहार माना जाए. जिसके बाद सरकार ने कैबिनेट में पास कराया.
नीतीश ने की बिहार दिवस मनाने की शुरुआत:नीतीश कुमार तो यह भी कहते रहे हैं कि बिहार इतना गौरवशाली रहा है लेकिन किसी ने इसके स्थापना दिवस को लेकर कभी सोचा ही नहीं, जबकि कई राज्य बड़ी धूमधाम से अपने राज्य का स्थापना दिवस मनाते रहे हैं. औपचारिक तौर पर 2008 में स्थापना दिवस मनाने की शुरुआत हुई और एक दिन का कार्यक्रम हुआ. पटना के कृष्ण मेमोरियल हॉल में सबसे बड़ा कार्यक्रम स्थल था. इसी जगह कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें मुख्यमंत्री और बिहार सरकार के अधिकांश मंत्री सभी आला अधिकारी शामिल हुए और उसी दिन यह भी तय हुआ कि अगले साल से वृहत स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. उसके बाद हर साल यह कार्यक्रम होने लगा. 2009 से गांधी मैदान में 3 दिनों का कार्यक्रम आयोजित किया जाने लगा और यह कार्यक्रम पूरे बिहार में सरकार की ओर से शुरू किया गया.
कोरोना काल में नहीं हो पाया था बड़ा आयोजन: 2012 में बिहार के स्थापना का 100 साल पूरा हो रहा था और इसलिए सरकार ने इसे और भी भव्य तरीके से मनाने की घोषणा की. 2 साल कोरोना काल को छोड़ दें तो बिहार दिवस पर लगातार तीन दिनों का कार्यक्रम आयोजित किया जाता रहा है और मुख्यमंत्री खुद पूरे कार्यक्रम की मॉनिटरिंग करते रहे हैं. मुख्यमंत्री ने बिहार दिवस के कार्यक्रम को लेकर शिक्षा विभाग को शुरुआत से ही नोडल विभाग के रूप में जिम्मेवारी दे रखी है. वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अंजनी सिंह पूरे आयोजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका शुरू से निभाते रहे हैं. अंजनी सिंह शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव रहे. बाद में मुख्य सचिव भी बने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सलाहकार भी और अब भी मुख्यमंत्री के विशेष सलाहकार के रूप में कार्य कर रहे हैं.
तीन दिनों तक चलेगा कार्यक्रम:बिहार के स्थापना दिवस के साथ नीतीश कुमार ने बिहार का अपना गीत भी तैयार करवाया और आज सरकारी कार्यक्रमों में इस गीत को गाया भी जाता है. इस गीत के माध्यम से बिहार का गौरव गान किया जाता है. बिहार दिवस पर सरकार की तरफ से एक दिन की छुट्टी भी घोषित है. इस बार भी पूरे बिहार में तो कार्यक्रम हो रहे हैं. मुख्य कार्यक्रम पटना के गांधी मैदान, ज्ञान भवन , कृष्ण मेमोरियल हॉल में हो रहे हैं. सभी विभागों को इस कार्यक्रम से जोड़ा गया है. बिहार से बाहर बड़े शहरों में कार्यक्रम हो रहे हैं और देश से बाहर अमेरिका, जापान, दुबई, मॉरीशस और जहां भी बिहारी हैं बिहार दिवस का जश्न मना रहे हैं.
बिहार का गौरवशाली इतिहास: वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का कहना है कि बिहार के पाटलिपुत्र से देश के बड़े भूभाग पर सम्राट अशोक शासन किया करते थे. बिहार में ही आर्यभट्ट हुए. भगवान बुद्ध को भी ज्ञान प्राप्त हुआ. मां जानकी यहीं की हैं. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी बिहार के ही रहने वाले थे. विद्यापति और रामधारी सिंह दिनकर भी यहीं के हैं. सबसे बड़ी बात महात्मा गांधी की कर्मस्थली बिहार ही रही है. कभी बिहार के नालंदा से पूरी दुनिया को ज्ञान की रोशनी दी गई और इसलिए बिहार दिवस के मौके पर इस बार भी बिहार की गौरव गाथा को याद किया जा रहा है और भविष्य के बिहार को लेकर ब्रांडिंग की जा रही है.
"असल में बिहार दिवस मनाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी था कि जब नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी, उससे पहले बिहारी कहलाना बिहार से बाहर एक अपमान सा बन गया था. लोग इससे बचने लगे थे और इसी को देखते हुए नीतीश कुमार ने बिहार दिवस के माध्यम से ब्रांडिंग का भी फैसला लिया. बिहारी शब्द अपमान नहीं गौरव का एहसास दिलाएं. इसके लिए बिहार दिवस का सहारा लिया और बहुत हद तक इसमें कामयाबी भी मिली"- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार