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कोरोना के बीच जानवरों से फैलने वाली इस बीमारी ने बढ़ाई TENSION, जानें पूरा मामला

ग्लैंडर मुख्य रूप से जीवाणु जनित बीमारी है. यह घोड़ों के बाद मनुष्यों और स्तनधारी पशुओं में पहुंचता है. यह बीमारी नोटिफाइएबल है इसे जेनॉटिक श्रेणी में रखा गया है. इसका संक्रमण नाक, मुंह के म्यूकोसल सरफेस और सांस से होता है. इस बीमारी को कन्फर्म करने के लिए मैलीन नाम के टेस्ट किये जाते हैं.

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Published : Mar 19, 2021, 2:19 PM IST

पटना
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पटना:ग्लैंडर्स एक ऐसी बीमारी है जो सॉलिपेड़ जानवरों में पायी जाती है. यानी ऐसा जानवर जिसका खुर कटा नहीं हो. जैसे घोड़ा, गदह, खच्चर को यह बीमारी बुरी तरह से प्रभावित करता है. यह बीमारी जेनेटिक है. यह बीमारी जानवरों से मनुष्यों में भी होता है. इस बीमारी का उन्मूलन कई वर्ष पूर्व भारत से हो गया था. लेकिन हाल के वर्षों में कई प्रदेशों के घोड़ों में, गदहों में इस तरह के बीमारी के लक्षण देखे गए हैं.

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बीमारी के लिए शुरू किया सर्विलांस
वहीं, अब भारत सरकार ने एक दिशा निर्देश निर्गत कर हर राज्य में इस बीमारी के लिए सर्विलांस शुरू किया है. बिहार में भी पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान इसकी जांच शुरू कर दी है. घोड़े, गदहे के ब्लड सीरम को जांच के लिए लिया जा रहा है. बता दें कि बिहार के पशुगणना 2019 के अनुसार घोड़ों की संख्या 32 हजार और गदहों के संख्या 11 हजार है. यहां खच्चरों की संख्या नहीं के बराबर है.

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'इस बीमारी को लेकर जो सर्विलांस हमने शुरू किया है. उसमें सबसे वाहक सीमावर्ती जिलों से घोड़े और गदहों के ब्लड सीरम को जमा कर रहे है. अभी तक 12000 ऐसे जानवरो के ब्लड सीरम लिए गए हैं. ब्लड सीरम को हमलोग जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार भेजते हैं. अभी तक किसी भी ऐसे जानवर में ग्लैंडर के लक्षण नही मिले हैं. जानवरों से मनुष्य में फैलने वाले इस बीमारी को लेकर हमारा विभाग सजग है पूरे बिहार में हम इसकी जांच कर रहे हैं. इस बीमारी का दो रूप होते हैं. एक फॉर्म कुटेनियम है जिसमे चमड़े में बड़ा घाव होता है जब घोड़ा हीलिंग करता है तो स्टार के तरह चिन्ह दिखाई देते है. दूसरे फॉर्म को प्लुमुनरी फॉर्म कहते है, जिसमें फेफड़े में घाव हो जाता है. दोनों तरह के लक्षण खतरनाक है और ये बीमारी वैक्टीरियल है. पहले इसका इस्तेमाल जैविक हथियारों के लिए किया जाता रहा है.'- उमेश सिंह, निदेशक, पशु स्वास्थ्य और उत्पादन विभाग

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25 साल में नहीं दिखे ऐसे में लक्षण
वहीं, पशु पालक राजेश राय बताते हैं कि हम 25 साल से घोड़े को पाल रहे हैं. अभी तक ऐसा लक्षण नहीं देखे हैं, लेकिन इस बीमारी का नाम सुना है. उन्होंने कहा कि हम समय-समय पर घोड़े का टीकाकरण कराते हैं. पटना सहित राज्य के कई जिलों में अभी भी घोड़े को पालने वाले लोगों की कमी नहीं है. तांगा खींचने में या शादी विवाह के समय बाराती या अन्य मौके पर लोग घोड़ा का उपयोग आज भी करते हैं. भले ही हाल के दिनों में गदहों की संख्या बिहार में काफी कम हो गया हो, लेकिन अभी भी राज्य में आंकड़े के अनुसार 24 हजार घोड़े हैं. कई लोगों ने इसे शौक से पाल रखा है.

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बीमारी को लेकर सतर्कता जरूरी
पशु पालकों के मुताबिक इस बीमारी को लेकर सतर्कता जरूरी है क्योंकि ये अपने ही पाले जानवरो से मनुष्य में हो सकता है. इसीलिए सरकार ने इसको लेकर हाल के दिनों में जांच शुरू की है. हाल ही में मध्यप्रदेश और राजस्थान में कई घोड़ो में इसके लक्षण पाए गए थे. फिलहाल इस खतरणाम ग्लैंडर बीमारी के वायरस से मनुष्य प्रभावित न हो इसको लेकर भारत सरकार ने अभियान चला रखा है. अब देखना है कि बिहार में इस अभियान के तहत सभी घोड़े, गधे की जांच सही समय पर हो पाती है या नहीं. वहीं, विभाग इसको जल्दी करने का दावा कर रहा है.

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जीवाणु जनित बीमारी

बता दें कि ग्लैंडर मुख्य रूप से जीवाणु जनित बीमारी है. यह घोड़ों के बाद मनुष्यों और स्तनधारी पशुओं में पहुंचता है. यह बीमारी नोटिफाइएबल है इसे जेनॉटिक श्रेणी में रखा गया है. इसका संक्रमण नाक, मुंह के म्यूकोसल सरफेस और सांस से होता है. इस बीमारी को कन्फर्म करने के लिए मैलीन नाम के टेस्ट किये जाते हैं. फिलहाल ये टेस्ट हिसार हरियाणा में ही होता है. इसके संक्रमण का दायरा 6 से 10 किलोमीटर है. यह जानवरो से मनुष्य में भी 6 से 10 किलोमीटर के क्षेत्र तक होने की संभावना होती है. इसीलिए इस बीमारी से सतर्कता बहुत जरूरी है. मनुष्य में जब यह बीमारी जानवरो के संक्रमण से होता है, तो इसके कुछ खास लक्षण मनुष्यो में दिखते हैं जैसे मांसपेशियों में दर्द, छाती में दर्द, शरीर मे अकड़न, तेज सिरदर्द और नाक से पानी बहना इनके लक्षण हैं.

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