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छठ पूजा 2020 : अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य, बिहारभर में उत्साह का माहौल

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Published : Nov 20, 2020, 3:04 PM IST

Updated : Nov 20, 2020, 4:51 PM IST

आज छठ महापर्व का महत्वपूर्ण दिन है. चार दिवसीय ये महापर्व बिहार के साथ-साथ उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को छठ व्रतियां अर्घ्य देंगी.

ईटीवी भारत रिपोर्ट
ईटीवी भारत रिपोर्ट

पटना: महापर्व छठ को लेकर बिहार समेत उत्तर भारत में उत्साह का माहौल है. आज इस चार दिवसीय पर्व का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन है. तीसरे दिन घाटों पर छठ व्रतियां पहुंचती हैं. इस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.

छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. शाम को बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, जिसके बाद व्रति अपने परिवार के साथ सूर्य को अर्घ्य देती हैं. अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है. सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है.

ईटीवी भारत रिपोर्ट

छठ पूजा तिथि व मुहूर्त

छठ के पर्व के प्रथम अर्घ्‍य पर सूर्यास्‍त का समय 4:57 बजे है. प्रथम अर्घ्य के बाद अगले दिन यानी शनिवार सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. सूर्योदय का संभावित समय 6: 03 बजे है. उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व 2020 संपन्न हो जाएगा.

अर्घ्य देने की विधि

बांस की टोकरी में सभी सामान रखें. सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएं. फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें.

छठ पूजा का महत्व

शाम को अर्घ्य देने के पीछे मान्यता है कि सुबह के समय अर्घ्य देने से स्वास्थ्य ठीक रहता है. दोपहर के समय अर्ध्य देने से नाम और यश होता है और वहीं शाम के समय अर्घ्य देने से आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है. इसके अलावा माना जाता है कि भगवान सूर्य शाम के समय अपनी प्रत्युषा के साथ होते है. जिसका फल हर भक्त को मिलता है.

क्यों करते हैं छठ पूजा ?

छठ पूजा के कई कथाएं हैं. जिनमें से मुख्य कथा के रूप में महर्षि कश्यप और राजा की कथा सुनाई जाती है. इस कथा के अनुसार एक राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी. राजा और रानी काफी दुखी थे. एक दिन महर्षि कश्यप के आशीर्वाद से राजा और रानी के घर संतान उत्पन्न हुई. दुर्भ्याग्य से राजा और रानी के यहां जो संतान पैदा हुई थी वो मृत अवस्था में थी और इस घटना से राजा और रानी बहुत दुखी हुए.

इसके बाद राजा और रानी आत्महत्या करने के लिए एक घाट पर पहुंचे और जब वो आत्महत्या करने जा रहे थे तभी वहां ब्रह्मा की मानस पुत्री ने उन्हें दर्शन दिया. राजा और रानी को अपना परिचय देते हुए उस देवी ने अपना नाम छठी बताया और उनकी पूजा अर्चना करने की बात कही. राजा ने वैसा ही किया और उसको संतान का सुख प्राप्त हुआ. कार्तिक मास के शुक्ला पक्ष को यह घटना घटी थी.

बरतें सावधानी

  • खीर के अलावा पूजा के प्रसाद में केला, मूली भी रखना लाभकारी माना जाता है.
  • इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी को जलाकर प्रसाद तैयार करना शुभ माना जाता है.
  • भगवान गणेश और सूर्यनारायण प्रसाद के रुप में तैयार प्रसाद को चढ़ाया जाता है.
  • इस दिन प्रसाद के लिए छठ व्रतिया किसी को बुलाएं नहीं, बल्कि खुद घर-घर जाकर प्रसाद पहुंचाए.
  • खरना और छठ पर्व के दौरान घर के सदस्यों को मांस-मदिरा का सेवन नही करना चाहिए.
  • रात को भी घर के सदस्य छना हुआ खाना ही खाएं.
  • व्रत रखने वाली महिला या पुरुष को जमीन पर सोना चाहिए.
Last Updated : Nov 20, 2020, 4:51 PM IST

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