पटना: बिहार में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) और विधानसभा चुनाव (Assembly Election) के दौरान सैकड़ों की संख्या में राजनीतिक दलों की सक्रियता दिखती है. लेकिन संकट काल और उपचुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की भूमिका नदारद रहती है. वह पर्दे से गायब हो जाते हैं. ऐसे दलों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं.
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राजनीति में राजनीतिक दलों की भूमिका अहम होती है. हाल के कुछ वर्षों में बिहार में राजनीतिक दलों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है. भले ही राजनीतिक और सामाजिक दायित्वों से उन दलों का कोई राजनैतिक सरोकार ना हो. बिहार में ताजा आंकड़ों के मुताबिक 200 से ज्यादा राजनीतिक दल हैं, जो चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हैं. उपचुनाव में दर्जनभर से कम राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मैदान में हैं. विधानसभा या लोकसभा चुनाव के दौरान काफी संख्या में राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी मैदान में दिखते हैं.
बिहार में विधानसभा की जितनी सीटें हैं, उससे अधिक पॉलिटिकल पार्टियों ने रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन दिया हुआ है. 256 आवेदन मिले हैं. साल 2010 तक 58 राजनीतिक दल रजिस्टर्ड थे. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 2005 में विधानसभा चुनाव में 58 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. साल 2010 तक विधानसभा चुनाव में 90 राजनीतिक दल ने मैदान में अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसके बाद राजनीतिक दलों की संख्या में और बढ़ोतरी हुई. हालांकि बाद में चुनाव आयोग का डंडा भी चला.
साल 2005 में कुल 58 राजनीतिक दल रजिस्टर हुए, जबकि साल 2010 में संख्या बढ़कर 90 हो गई. 2015 में राजनीतिक दलों की संख्या 157 तक पहुंच गई. 2015 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय दलों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, तो क्षेत्रीय दलों की संख्या 9 थी. कुल मिलाकर 138 रजिस्टर्ड दलों का खाता नहीं खुल पाया था. केंद्रीय चुनाव आयोग ने बिहार की आठ पार्टियों को अमान्य करार कर दिया था. देश भर से 250 से ज्यादा पार्टियों को ब्लैक लिस्ट किया गया था.
आयोग ने बिहार के जिन पार्टियों को अमान्य किया था उसमें सांसद आनंद मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी, भाजपा के पूर्व राज्यसभा सांसद जनार्दन यादव की बिहार विकास पार्टी, पूर्व राज्यसभा सांसद नरेंद्र सिंह कुशवाहा की जनहित समाज पार्टी, भारतीय जन विकास पार्टी, भारतीय प्रजातंत्र पार्टी, चंपारण विकास पार्टी, राष्ट्रीय स्वजन पार्टी और विजेता पार्टी शामिल है. 2005 से 2015 के बीच दलों की ओर से कोई प्रत्याशी चुनाव के मैदान में निकले थे. जिस कारण से राजनीतिक दलों को असूचीबद्ध किया गया.
बिहार में भले ही राजनीतिक दलों की बाढ़ है लेकिन दलों की राजनीतिक और सामाजिक भूमिका संकटकाल में नहीं दिखती है. कोरोना संकटकाल में भी राजनीतिक दलों के नेता सीन से गायब थे. उपचुनाव में भी राजनीतिक दल मैदान से गायब हैं. कुशेश्वरस्थान और तारापुर विधानसभा से दर्जनभर से कम उम्मीदवार और पार्टियां सक्रिय हैं.