पटना: भारत इस साल अपनी आजादी का 74वां साल मनाने जा रहा है. इस आजाद भारत की सुबह के लिए कई वीरों ने अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी. इन्हीं में से एक थे पश्चिम बंगाल में स्थित वर्धमान के रहने वाले महान सपूत और स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त. उनका जन्म 18 नवंबर 1910 को हुआ था. उन्होंने पटना को अपनी कर्मभूमि बनाया. जब भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारी का नाम लिया जाएगा, तब बटुकेश्वर दत्त लोगों को याद आएंगे.
देश की विडंबना
हमारे देश की विडंबना यह है कि यहां मरने के बाद लोगों को याद किया जाता है. स्वतंत्रता आंदोलन में लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगा दी. इनमें से कई तो शहीद हो गए, लेकिन जो बच गए वह गुमनामी के अंधेरे में चले गए. सरकार के साथ अपनों ने भी उन्हें बेगाना कर दिया. महान क्रांतिकारी और शहीद-ए-आजम की साथ देने वाले दत्त भी मां भारती के एक ऐसे सपूत हैं, जिन्हें लोगों ने भुला दिया.
अंग्रेजों ने काला पानी की सजा सुनायी
बटुकेश्वर दत्त वही शख्स थे जिन्होंने ब्रिटिश असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ दो बम फेंके थे और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए गिरफ्तारी दी थी. इस घटना के लिए दत्त को फांसी नहीं हुई थी, उन्हें काला पानी की सजा सुनायी गयी. देश के लिए मर मिटने को तैयार इस नवयुवक को काफी शर्मिंदगी महसूस हुई कि उन्हें फांसी नहीं बल्कि काला पानी की सजा सुनाई गई. अंग्रेजों ने बटुकेश्वर दत्त को कई तरह की यातनाएं भी दी थी.
मांगा गया स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र
जेल से निकलने के बाद बटुकेश्वर दत्त टीवी जैसे गंभीर रोग से ग्रसित हो गए थे. पंजाब सरकार की पहल पर उनके इलाज की व्यवस्था की गई. लंबी बीमारी के बाद 20 जुलाई 1965 को बटुकेश्वर दत्त दुनिया से रुखसत हो गए. देश का दुर्भाग्य रहा कि मरने से पहले मुफलिसी में जीवन जी रहे बटुकेश्वर दत्त से स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र भी मांगा गया.
बटुकेश्वर दत्त (फाइल फोेटो) भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के पास ही किए गए दफन
बटुकेश्वर अपनी रोजी-रोटी के लिए बस की परमिट चाहते थे, उस दौरान पटना के आला अधिकारियों ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र मांगा था. बाद में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद उन्हें बस की परमिट दी गई. आजादी के इस मतवाले ने अपनी आखिरी इच्छा के तौर पर कहा था कि उन्हें भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ ही दफन किया जाए. बाद में उनकी इच्छानुसार उन्हें वही दफनाया गया.