पटना:बिहार विधानसभा अपना 100वां साल मना रहा है. इसी साल 7 फरवरी को विधानसभा अध्यक्ष ने सेंट्रल हॉल में बड़ा कार्यक्रम भी किया. जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हुए और 1 साल तक कार्यक्रम आयोजित करने की भी तैयारी है. राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी निमंत्रण दिया गया है. 100 साल के इतिहास में बिहार विधानसभा में एकजुटता दिखाते हुए जमींदार प्रथा उन्मूलन से लेकर शराब बंदी लागू करने तक का बड़ा फैसला लिया गया है.
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जब विधानसभा बना अखाड़ा
कई और बड़े फैसले लिए गए हैं. लेकिन, बिहार विधानसभा के बजट सत्र में 23 मार्च का दिन शायद ही अब कभी भूलने वाला होगा. एक तरफ से सदन अखाड़ा सा बन गया था. जिसमें सभी विपक्षी दल एकजुटता दिखाते हुए सरकार के खिलाफ किसी हद तक जाने को तैयार थे, तो दूसरी तरफ सत्तापक्ष के विधायक शांत और संयमित दिखे. सदन के अंदर अपने स्थान पर बैठे रहे.
सदन में पहली बार घुसी पुलिस
23 मार्च को 11 बजे से जो हंगामा शुरू हुआ वो 7:30 बजे देर शाम तक चलता रहा और इसमें पुलिसिया कार्रवाई भी हुई. उससे पहले विधानसभा के बाहर नारेबाजी और हंगामा के साथ विधानसभा चेंबर के बाहर धरना भी दिया. विधानसभा अध्यक्ष को चेंबर से बाहर नहीं निकलने देना और फिर सदन में उनके आसन पर कब्जा करना. सदन की कार्यवाही चले इसके लिए पुलिसिया कार्रवाई हुई. एक दर्जन विधायकों को घसीटते हुए मारते हुए बाहर निकाला गया. उसमें कुछ महिला विधायक भी घायल हुई.
सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने
हालांकि, विधायकों की तरफ से भी जवाबी कार्रवाई हुई. लेकिन, सदन तभी चला जब विपक्ष ने सदन का बहिष्कार किया. पुलिस बिल तब पास हुआ और नीतीश कुमार ने भी संबोधित करते हुए पूरी घटना पर आश्चर्य भी जताया और विपक्ष को समझाने में जो चूक हुई उसे भी माना. पुलिस बिल पास होने पर नीतीश कुमार ने कहा कि पुलिस बिल लोगों के हित में है. लोगों को इससे किसी तरह का नुकसान नहीं होगा. पूरी घटना के लिए सत्ता पक्ष विपक्ष को और विपक्ष नीतीश कुमार को जिम्मेवार ठहराते रहा.
मंत्री के कारण कार्यवाही हुई स्थगित
बिहार विधानसभा में 23 मार्च की घटना को छोड़ भी दें, तो कई चीजें पहली बार हुई. मंत्रियों की तरफ से ही विधानसभा अध्यक्ष पर आरोप लगाए गए. सम्राट चौधरी ने तो आसन को व्याकुल नहीं होने तक की सलाह दे डाली. इस आपत्तिजनक सलाह के बाद विधानसभा अध्यक्ष को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी थी. बात विधानसभा अध्यक्ष के इस्तीफे तक पहुंच गई थी, लेकिन मामले को फिर किसी तरह निपटाया गया.
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''विधानसभा में विधायक जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं. विधानसभा से जो उनकी छवि आई, उस पर सवाल खड़ा हो रहा है. आधुनिक टेक्नोलॉजी युग में आपकी हर गतिविधि को लोग देख रहे हैं. विधायकों को इस तरह से रिप्रेजेंट नहीं करना चाहिए था. लक्ष्मण रेखा कुछ तो तय होनी चाहिए थी''- मोहम्मद आसिफ, ज्वाइंट सेक्रेट्री, गांधी संग्रहालय