पटना: बिहार की दो बोलियां थारू और सुरजापुरी (Tharu And Surjapuri Languages) विलुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि यदि इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो ये दोनों भाषाएं भोजपुरी, मैथिली, हिन्दी और बांग्ला में घुल-मिल जाएंगी. थारू भाषा भोजपुरी और मैथिली के मेल से बनी है तथा यह थारू समुदाय द्वारा मुख्य रूप से पश्चिमी और पूर्वी चंपारण जिलों में बोली जाती है. सुरजापुरी भाषा बंगला, मैथिली और हिन्दी के मेल से बनी है और इसको बोलने वाले मुख्य रूप से राज्य के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और ररिया जिलों में हैं.
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उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने जताई चिंता:बिहार के उपमुख्यमंत्री और कटिहार से चार बार विधायक रहे तारकिशोर प्रसाद (Deputy CM Tarkishore Prasad) ने कहा, ''मेरे निर्वाचन क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में सुरजापुरी भाषा बोली जाती है. लेकिन यह सच है कि इस भाषा में अब विविधता देखी जा रही है. जो लोग पहले सुरजापुरी भाषा बोलते थे, अब बंगला, मैथिली और हिंदी में बातचीत करना पसंद कर रहे हैं.''
''निश्चित रूप से इस मामले को देखेंगे और अधिकारियों से कहेंगे कि वे इस भाषा के पुनरुद्धार के तरीकों का पता लगाएं. इस भाषा को 'किशनगंजिया' नाम से भी जाना जाता है. थारू भाषा भी विलुप्त होने के कगार पर है.'' - तारकिशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री, बिहार