पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. इसके साथ ही चुनावी मुद्दे और वादों के घोषणाएं का दौर भी शुरू हो चुका है. किसी भी चुनाव में मुद्दे की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस बार मुख्य विपक्षी दल आरजेडी ने नीतीश सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेरा है. इससे एनडीए के नेता असहज महसूस कर रहे हैं.
उड़ गई एनडीए नेताओं की नींद
तेजस्वी यादव ने घोषणा की है कि सरकार बनी तो पहली कैबिनेट में 10 लाख नौकरियां देने की कार्यवाई की जाएगी. यह नौकरियां पूरी तरह स्थाई होंगी. तेजस्वी की इस घोषणा ने बीजेपी और जदयू नेताओं की रातों की नींद उड़ा दी है.
बेरोजगारी का मुद्दा ढकने की कोशिश
बीजेपी ने जब आत्मनिर्भर बिहार स्लोगन लांच किया तो इसके पीछे बेरोजगारी का मुद्दा ढकने की पूरी कोशिश थी, लेकिन यह कटु सत्य है कि बिहार में पिछले 10 साल में सरकारी नौकरियां लगातार घटती गई हैं. उदाहरण के तौर पर बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने साल 2014 में 13.5 हजार ग्रुप सी के पदों पर बहाली के लिए विज्ञापन निकाला था. 6 साल बाद भी यह प्रक्रिया आज तक पूरी नहीं हो पाई है.
संविदा कर्मियों की मांग
दूसरा उदाहरण बिहार के करीब 90 हजार स्कूलों में बहाल किए गए शिक्षकों का है. बिहार में लाखों शिक्षकों की बहाली नियोजन पर हुई उनकी लगातार मांग के बावजूद सरकार ने उनको स्थाई नहीं किया. दूसरी तरफ बिहार के विभिन्न विभागों में लाखों पद खाली पड़े हैं. जिसपर संविदा पर लोग काम कर रहे हैं और ये संविदा कर्मी आए दिन अपनी नौकरी स्थाई करने या अन्य मांगों को लेकर प्रदर्शन करते रहते हैं.