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तेजस्वी का मिशन झारखंड : RJD को मजबूत करने की कवायद या अपने आधार वोट को बचाने की तड़प - rjd in jharkhand

तेजस्वी यादव 18 सितंबर को झारखंड दौरे पर जा रहे हैं. इसी दिन वे मिशन झारखंड की शुरुआत करेंगे. ऐसे में सियासी गलियारों में अब चर्चा तेज हो गई है कि बिहार पर पूरा फोकस करने वाली RJD अचानक झारखंड में इतना ध्यान क्यों दे रही है. क्या यह संगठन को मजबूत करने की कवायद है या अपने आधार वोट को बचाने की तड़प है. पढ़ें पूरी खबर...

तेजस्वी झारखंड में राजद को करेंगे मजबूत
तेजस्वी झारखंड में राजद को करेंगे मजबूत

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Published : Sep 17, 2021, 11:33 PM IST

पटना:राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) के बेटे और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) शनिवार 18 सितंबर को दो दिवसीय झारखंड दौरे पर रांची जा रहे हैं. तेजस्वी यादव के इस दौरे को सियासी गलियारों में झारखंड में आरजेडी के खोए हुए आधार को प्राप्त करने की कवायद के रुप में देखा जा रहा है. यहीं नहीं तेजस्वी यादव अब हर महीने के तीसरे शनिवार और रविवार को झारखंड में रहेंगे. कहा जा रहा है कि झारखंड में संगठन विस्तार का जो रोड मैप तेजस्वी ने तैयार किया है. उसी के तहत वे 18 सितंबर यानी शनिवार से अपने मिशन झारखंड की शुरुआत कर रहे हैं.

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लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की राजनीति शुरू से ही बिहार केंद्रित रही है. झारखंड शुरू से उनके लिए मुख्य एजेंडे में नहीं रहा है. ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि आखिर राजद के लिए अब झारखंड महत्वपूर्ण क्यों हो गया? इस सवाल के जवाब से भले ही राजद के नेता इत्तेफाक न रखें लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा में अन्नपूर्णा देवी का कद बढ़ता जा रहा है और यादव मतदाताओं का रूझान उनकी तरफ बढ़ रहा है.

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प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले राजद छोड़ भाजपा में शामिल होने वाली अन्नपूर्णा देवी के केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री बनने के बाद जितने बैनर-पोस्टर और होर्डिंग भाजपा की ओर से नहीं लगाए गए थे, उससे ज्यादा बैनर पोस्टर यादव और यदुवंशी संगठनों की ओर से लगाए गए थे. राज्य में यादव नेता के रूप में उभरती अन्नपूर्णा देवी का कद ही राजद को परेशान कर रहा है. राजद नेतृत्व को लग रहा है कि अगर अभी अपने आधार वोट को समेट कर नहीं रखा गया तो फिर राजद का राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ सकता है. पिछले झारखंड विधानसभा चुनाव में तेजस्वी की लोकप्रियता देख नेताओं को लग रहा है कि झारखंड में अन्नपूर्णा देवी के प्रभाव से छिटकने वाले राजद के आधार वोट को तेजस्वी ही रोक सकते हैं.

विधानसभा चुनाव 2019 में झामुमो और कांग्रेस ने जिस तरह महागठबंधन में राजद को नजरअंदाज किया और एक-एक सीट पर जहां कभी राजद मजबूत हुआ करता था. वहां अपने उम्मीदवार देकर राजद को यह अहसास दिलाया कि उसकी ताकत कमजोर हो गई है. इसलिए महागठबंधन में उसे वही मिलेगा जो सहयोगी दल चाहेंगे. विश्रामपुर विधानसभा सीट पर विवाद के बीच तेजस्वी रांची में रहकर भी कांग्रेस-झामुमो की संयुक्त पीसी में शामिल नहीं हुए थे. बाद में लालू प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद विश्रामपुर की जगह बरकट्ठा विधानसभा सीट राजद को दिया गया था जहां राजद उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए थे. राजद के नेता कहते हैं कि उसी दिन युवा तेजस्वी ने झारखंड में राजद की पुरानी ताकत फिर से लाने के लिए संघर्ष के रास्ते चलने का मन बना लिया था.

राजद के कोर वोटरों में अन्नपूर्णा देवी की सेंधमारी से गदगद भाजपा जहां इस बात को लेकर निश्चिंत है कि यहां तेजस्वी यादव का कोई खास असर नहीं होगा तो महागठबंधन के नेता भले ही कैमरे के सामने यह कहें कि राजद के मजबूत होने से महागठबंधन मजबूत होगा. लेकिन इस सवाल का जवाब न झामुमो के पास है और न ही कांग्रेस के पास. सवाल यही है कि जब मजबूत राजद अपने हक की सीटें मांगेगा तो वह क्या करेंगे?

राजद के प्रदेश अध्यक्ष अभय कुमार सिंह ने अपनी खोई राजनीतिक ताकत को वापस पाने के लिए पुराने और बड़े चेहरे जो कभी राजद झारखंड की पहचान हुआ करते थे उन्हें वापस लाने की कोशिशें तेज कर दी है. पूर्व विधायक प्रकाश राम, पूर्व मंत्री गिरिनाथ सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा, पूर्व मंत्री आबो देवी सहित कई नेताओं से बात शुरू भी हो गई है. जाहिर है कि अगर ऐसा हुआ तो अगले विधानसभा चुनाव से पहले राजद का झामुमो-कांग्रेस से तकरार भी बढ़ेगा क्योंकि अभी राजद की मजबूत सीट रही गढ़वा, मनिका, लातेहार, झरिया सहित कई सीटों पर सहयोगी कांग्रेस और झामुमो ही काबिज है.

तेजस्वी यादव के हर महीने झारखंड दौरे को लेकर राजनीति दलों में हलचल तो है लेकिन कोई खुलकर कुछ कहना नहीं चाहता. अन्नपूर्णा देवी के स्वभाव को बेमिसाल बताते हुए भाजपा नेता कहते हैं कि तेजस्वी अगर हर दिन झारखंड का दौरा करें तो भी उसका कोई असर नहीं होगा. सहयोगी कांग्रेस और झामुमो का कहना है कि गठबंधन के दल अगर मजबूत होते हैं तो उसका फायदा सभी दलों को होता है.

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