पटना:वर्ष 2020 में सबसे ज्यादा बिहार में आरजेडी की चर्चा हुई. एक तरफ जहां इस पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट था, तो दूसरी तरफ बड़े-बड़े नेताओं की नाराजगी. लालू की अनुपस्थिति में कई विधायक और विधान पार्षदों ने पार्टी छोड़ दी. लेकिन तेजस्वी यादव मजबूती के साथ खड़े रहे. जिससे एनडीए की मुश्किलें बढ़ी रही.
बेरोजगारी हटाओ अभियान
2020 की शुरुआत में पार्टी ने बेरोजगारी हटाओ अभियान की शुरुआत की थी. जिसके लिए बेरोजगारी हटाओ रथ तैयार किया गया. इस रथ पर सवार होकर तेजस्वी यादव ने गया, मोतिहारी और समस्तीपुर समेत कुछ कई शहरों में सभाएं की, जिसमें युवाओं का भरपूर समर्थन मिला. राष्ट्रीय जनता दल के लिए कोरोना काल के शुरुआती कुछ महीने बेहद मुश्किल भरे रहे. विशेष तौर पर तब जब 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा था और इसकी बड़ी वजह मानी जा रही थी कि तेजस्वी यादव बिहार से गायब रहे.
तेजस्वी पर था दबाव
लोकसभा चुनाव के महीनों बाद पटना लौटने के बाद तेजस्वी यादव पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी अपनी पार्टी को चुनाव में बेहतर प्रदर्शन, सहयोगी दलों को साथ लेकर चलने और अन्य दलों को महागठबंधन में जोड़ने का दबाव भी था.तेजस्वी के वापस आने के बाद राजद ने प्रभावित इलाकों में दौरा किया और लोगों की परेशानियां उजागर करते हुए सरकार पर दबाव बनाया. इस दौरान पार्टी ने अपनी चुनाव की तैयारियां जारी रखी.
सभा को संबोधित करते तेजस्वी नेताओं ने छोड़ दी थी पार्टी
विधानसभा चुनाव से पहले लगातार मिलन समारोह हुआ और कई नये पुराने नेता राजद से जुड़े. इन सब के बीच पार्टी के पांच विधान पार्षदों ने पाला बदल लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. इसके बाद कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ी और जदयू का दामन थाम लिया. पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन हो गया. इन सबके बीच पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने अपना काम जारी रखा. पार्टी के नेता यह स्वीकार करते हैं कि पिछले कई महीनों से लगातार बिना थके पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने बूथ लेवल तक जिस तरह पार्टी को स्ट्रांग बनाया और चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने में अहम भूमिका निभाई उसका बड़ा फायदा पार्टी को चुनाव में मिला.
विस चुनाव के समय तेजस्वी की सभा जीतनराम मांझी, उपेंद कुशवाहा हुए अलग
शुरुआती महीनों में तक कुछ महत्वपूर्ण गतिविधियां भी देखने को मिली. जब महागठबंधन से नाराज पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन से किनारा कर लिया. इसके बाद राजद ने महागठबंधन में वामदलों को जोड़ा जो 25 साल बाद एक साथ एक मंच पर नजर आए.
रोजगार बना चुनावी मुद्दा
राष्ट्रीय जनता दल के लिए वर्ष 2020 में सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब पार्टी ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव का मुद्दा रोजगार को बना दिया. चुनाव की घोषणा से पहले ही तेजस्वी यादव ने घोषणा कर दी कि अगर उनकी सरकार बनी तो वह पहली कैबिनेट में 10 लाख सरकारी नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू करेंगे. तेजस्वी यादव की इस घोषणा ने बिहार चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया जिसके बाद जेडीयू और बीजेपी बीजेपी को भी रोजगार के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ना पड़ा.
महागठबंधन में तेजस्वी 'वन मैन आर्मी'
विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने राजद और महागठबंधन की बागडोर अकेले संभाली और ज्यादातर चुनाव प्रचार में भी अकेले ही महागठबंधन के उम्मीदवारों के साथ मंच पर खड़े नजर आए. चुनाव के नतीजों के दिन आखिरी वक्त तक रोमांच बना रहा लेकिन आखिरकार विधानसभा चुनाव में एनडीए को बहुमत मिली. फिर भी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में राष्ट्रीय जनता दल को 75 सीटें हासिल हुई. महागठबंधन सरकार बनाते बनाते रह गया. हालांकि इसके लिए राजद और कांग्रेस ने बीजेपी जदयू पर परिणाम में बेइमानी का आरोप लगाया.
लालू के बाहर आने का था इंतजार
साल के शुरूआती महीनों से लेकर दिसंबर महीने तक पार्टी को अपने सबसे बड़े नेता लालू यादव का इंतजार रहा. लेकिन लालू यादव जेल से बाहर नहीं निकल पाए. इस साल पार्टी को तेजस्वी यादव का बड़ा नेतृत्व मिला. इस बात को कांग्रेस नेता भी स्वीकार करते हैं कि इस साल बिहार को एक बड़ा युवा नेतृत्व तेजस्वी यादव के रुप में मिला है.
वर्ष 2020 में इतिहास के पन्नों में एक तरफ जहां कोरोना काल का जिक्र होगा तो दूसरी तरफ बिहार चुनाव को लोग याद रखेंगे. 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस पार्टी को जनता ने पूरी तरह खारिज कर दिया उसने 2020 में विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जनता का विश्वास जीता.हालांकि सरकार बनाने से राजद चूक गया.