पटना: आरजेडी के 25वें स्थापना दिवस (RJD Foundation Day) के अवसर पर तैयारी, चर्चा, भाषण, जिम्मेदारी और जवाबदेही का जो रंग दिखा, उससे एक बात तो साफ है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने पूरी पार्टी की बागडोर संभाल ली है. हालांकि शुक्रवार को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के इस्तीफे की खबर से भी कई तरह के राजनीतिक कयास लगाए जाने लगे. चर्चा इस बात की भी है कि क्या तेजस्वी पार्टी में बड़े बदलाव की तैयारी में हैं.
क्योंकि बताया जाता है कि तेजस्वी के नेतृत्व पर पार्टी के लोगों को भरोसा भी है और उनके नेतृत्व में लोग काम भी कर रहे हैं. पार्टी के अंदर उनकी नीतियों पर किसी को किसी तरह की दिक्कत नहीं है और पार्टी जिस तरीके से चल रही है, उसे खुद पार्टी बनाने वाले लालू यादव (Lalu Yadav) को भी किसी तरह का गुरेज नहीं है.
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लालू यादव की सेहत ठीक नहीं है, यह चेहरे से भी झलक रहा है और उनके भाषण से भी पता चल रहा है. पार्टी के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कह दिया कि तेजस्वी ने जिस तरीके से पार्टी को संभाला है और जितनी मेहनत की है, मैं उनकी मेहनत के लिए उन्हें बधाई देता हूं. यहीं से बिहार में एक नई सियासत भी शुरू हो गई कि तेजस्वी यादव पार्टी की कमान अध्यक्ष के तौर पर कितने दिनों के बाद संभाल लेंगे.
राजनीतिक रूप से देखा जाए तो तेजस्वी यादव ने उम्र के लिहाज से जो राजनीति देखी है, वह निश्चित तौर पर दूसरे राजनीतिक नेताओं से छोटी हो सकती है लेकिन काम करने के नजरिए से देखा जाए तो जिस तरीके से तेजस्वी यादव ने राजद को देखा है, वह राजनीति के बड़े सफर की तरफ इशारा करता है.
तेजस्वी यादव सीधे तौर पर पार्टी के उन निर्णयों में तो दखल नहीं देते थे, जो लालू यादव के सामने होने पर होता था लेकिन उस चर्चा का हिस्सा जरूर बनते थे, जो पार्टी की नीतियों के लिए लालू यादव के साथ होता था. लालू के पुराने सहयोगी और आरजेडी परिवार में काफी घुले-मिले बिहार के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि तेजस्वी यादव की सबसे बड़ी खूबी है पार्टी की नीतियों को शालीनता से सुनना है और यही उनको पार्टी में सबसे अलग पहचान देती है.
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तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव से भले ही पार्टी की मजबूती को लेकर बहुत कुछ सीखे हों, लेकिन सरकारी कामकाज कैसे होता है, उसे कैसे किया जाता है और करवाना कैसे है. अगर तेजस्वी यादव को देखा जाए तो उस पर एक छाप उनके चहेते चाचा नीतीश कुमार की भी दिखती है. क्योंकि चाचा नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही तेजस्वी यादव पहली बार उप-मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार सरकार में शामिल हुए और जो भी विभाग उन्हें मिले, उन विभागों का काम किया. जिसमें उद्देश्य बिल्कुल साफ था कि बिहार को अगर आगे बढ़ाना है तो नीतियों का स्पष्ट होना जरूरी है.
तेजस्वी यादव ने नीति को स्पष्ट कर राजनीति करने का जो एक मापदंड बनाया, उस पर उन्होंने खरा उतरने की कोशिश भी की है और उसे पार्टी ने लागू भी किए. एजेंडे पर टिके रहना सामान्य बात नहीं है. जो लोग महागठबंधन का हिस्सा थे, उसमें बात उपेंद्र कुशवाहा की रही हो या फिर जीतन राम मांझी की या फिर वीआईपी चीफ मुकेश साहनी की, ये तमाम लोग तेजस्वी के साथ थे, लेकिन बाद में अलग हो गए. खास बात ये रही कि एक साथ रहने पर भी इनके लिए स्पष्ट नीतियों का जो स्वरूप होना चाहिए, वह तेजस्वी ने बना रखा था और उससे तेजस्वी हटे भी नहीं.