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बिहार की ये बेटी दौड़ते-दौड़ते बन गई 'स्कोरिंग मशीन'- आज बच्चे पूछते हैं दीदी रग्बी को क्यों चुना?

बिहार के एक छोटे से कस्बे से रोजाना पटना तक ट्रेन का सफर, रग्बी की ट्रेनिंग, और अब इस खेल में दुनिया का सबसे बड़ा 'इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर 2019 अवॉर्ड' पाकर आज पूरी भारत का मान बढ़ा रहीं स्वीटी कुमारी.

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Published : Jan 7, 2020, 2:27 PM IST

बाढ़:यूं तो रग्बी एक इंटरनेशनल खेल है. भारत में अभी इसे खास प्रसिद्धि नहीं मिल सकी है. भारत में रग्बी खेल को पसंद और देखने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं होगी. इसके बावजूद, बिहार के एक छोटे-से प्रखंड बाढ़ के नवादा गांव से निकलकर स्वीटी कुमारी ने इस साल का इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर का खिताब जीता है.

दुनिया भर से इस अवॉर्ड के लिए 10 लोगों को नॉमिनेट किया गया था. इसके बाद पब्लिक पोल के आधार पर स्वीटी का नाम चुना गया. खास बात यह है कि स्वीटी को छोड़ कर बाकी सभी खिलाड़ियों ने पहले भी रग्बी में कई कीर्तिमान कायम किए हैं.

सफलता से खुश हैं स्वीटी

स्वीटी का फैमली बैकग्राउंड
सुनने में थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन स्वीटी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. शुरूआत कुछ ऐसे होती है, पिता मजदूर हैं. मां आंगनबाड़ी सेविका. गरीबी के कारण स्वीटी का सफर आगे बढ़ने से पहले से ही रुक गया. लेकिन स्वीटी ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए न केवल भारत के लिए कई मैच जीताऊ प्रदर्शन किए. बल्कि अब इंटरनेशनल यंग प्लेयर ऑफ द ईयर का अवार्ड भी हासिल किया. स्वीटी यह अवार्ड पाने वाली देश की पहली महिला रग्बी खिलाड़ी हैं.

स्वीटी कुमारी ने कई मेडल अपने नाम किए

घर वालों को लंबे अरसे तक नहीं थी जानकारी
स्वीटी के रग्बी खेलने की जानकारी घरवालों की भी नहीं थी. लेकिन जब दुबई जाना हुआ तो परिजनों को पता चला. आज स्वीटी के परिजन बेटी की कामयाबी काफी खुश है. मां कहती हैं कि बचपन में कभी ऐसा नहीं लगा था कि स्वीटी को खेल में रूचि है. लेकिन, समय के साथ वो आगे बढ़ी और आज इस मुकाम पर खड़ी है. वहीं, पिता अपनी बेटी की सफलता से फूले नहीं समाते हैं. उनका कहना है कि काफी मेहनत कर स्वीटी ने ये मुकाम हासिल किया है. वे इसके लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं.

देखें पूरी रिपोर्ट

पिता को हो रहा बेटी पर गर्व
स्वीटी कुमारी के पिता बताते हैं कि उनकी बेटी रग्बी खेलती है ये बात उन्हें काफी लंबे बाद पता चली. स्वीटी कुमारी की बहन बताती हैं कि शुरुआत में तो हमें पता ही नहीं था कि रग्बी क्या होता है कैसे होता है. लेकिन, फिर धीरे-धीरे पता चला. हमें बहुत खुशी है.

'स्कोरिंग मशीन' पुकारते हैं दोस्त
स्वीटी की रफ्तार को देख कर उनकी टीम के साथी खिलाड़ी उन्हें भारत की 'स्कोरिंग मशीन' कहते हैं. एथलीट के रूप में स्वीटी ने अपने स्कूल में 100 मीटर की दौड़ 11.58 सेकेंड में पूरी कर ली थी. उसके बाद उन्होंने अपनी रफ्तार का इस्तेमाल रग्बी में किया. स्वीटी बताती हैं कि तेज रफ्तार उन्हें ईश्वर ने उपहार के तौर पर दिया है. उन्होंने कहा कि इस मुकाम को हासिल करने में हमें बहुत कठिनाईयां हुईं, लेकिन हमने कभी हार नहीं मानी.

पुरस्कार घोषित करने वाली वेबसाइट पर स्वीटी की तारीफ में लिखा:
'स्वीटी ने शुरुआत से ही अपने खेल से सबको प्रभावित किया है लेकिन इस साल उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है. भारत ने जिन सात टूर्नामेंट में हिस्सा लिया, उनमें अपनी तेजी और पॉवर के कारण ही स्वीटी ने सबसे ज्यादा स्कोर किया. वहीं सिंगापुर के खिलाफ जिस टेस्ट मैच में भारत को पहली बार जीत हासिल हुई, उसमें भी स्वीटी ने दो शानदार टाई से स्कोर किए.'

परिजनों में खुशी का माहौल

'स्कोरिंग मशीन' का अब तक का सफर:

  • सिंगापुर, ब्रुनेई, फिलीपींस, इंडोनेशिया और लाओस में रग्बी खेल चुकी हैं
  • एशिया रग्बी अंडर 18 गर्ल्स चैंपियनशिप भुवनेश्वर
  • एशिया रग्बी सेवेंस ट्राफी जकार्ता इंडोनेशिया 2019 में बेस्ट प्लेयर अवॉर्ड
  • विमेंस सेवेंस ट्राफी ब्रुनेई और एशिया रग्बी सेवेंस ट्राफी जकार्ता इंडोनेशिया 2019 बेस्ट स्कोरर अवॉर्ड

रग्बी में स्वीटी का सफर कुछ ऐसे शुरू हुआ. बड़े भाई एथलीट में थे. उन्हें एथलीट में देखकर स्वीटी ने भी एथलीट में कदम रखा. स्वीटी की टाइमिंग गजब की थी. साल 2014 स्वीटी स्कूल गेम्स में हिस्सा लेने के लिए पटना पहुंचीं. यहां रग्बी के सेक्रेटरी पंकज कुमार ने इस बच्ची की रफ्तार को देखकर अचंभित हुए, उन्होंने स्वीटी को रग्बी खेलने की सलाह दी. और कहा कि तुम रग्बी में काफी आगे बढ़ोगी. लेकिन स्वीटी को रग्बी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. तब उन्होंने स्वीटी से सिर्फ इतना कहा कि दौड़ना आता है तो रग्बी भी सीख जाओगी. बस फिर क्या था. यहां से स्वीटी का रग्बी का सफर शुरू हुआ.

स्वीटी को मिल चुके हैं कई सम्मान

कोचिंग के लिए रोजाना ट्रेन में एक घंटे का सफर...मुश्किल था
स्वीटी उन दिनों को याद करते हुए कहती है, 'पढ़ाई और रग्बी साथ-साथ करना मुश्किल हो रहा था. रग्बी की ट्रेनिंग के लिए रोजाना बाढ़ से पटना का सफर और भी मुश्किल था. लेकिन दो साल तक यह सब कुछ चलता रहा. और एक दिन वो समय आ गया जब रग्बी खेलने के लिए पहल बार मुझे विदेश जाने का मौका मिला. और फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

'अच्छा लगता है जब बाढ़ रग्बी कल्ब के बच्चे आकर बोलते हैं कि हमें भी स्वीटी दीदी की तरह बनना है. जिस तरह स्वीटी ने 7 बार इंडिया का प्रतिनिधित्व किया उसी तरह उन्हें भी करना है. ये सब सुनकर अच्छा लगता है. मैं दूसरों को केवल यही कहती हूं कि मेहनत करो. सब मिलेगा.' - स्वीटी कुमारी

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