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सेनारी नरसंहार पर बोले सुशील मोदी- 'मैंने अपनी आंखों से लाशों के ढेर को देखा था' - Sushil Modi

सेनारी नरसंहार मामले में उच्च न्यायालय के फैसले के साथ ही यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या 34 लोगों की हत्या किसी ने नहीं की थी? इसी पीड़ा का इजहार बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने किया है. साथ ही उन्होंने आरजेडी पर भी निशाना साधा है.

Sushil Modi
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Published : May 22, 2021, 9:48 PM IST

पटना: मार्च 1999 को जहानाबाद जिले के सेनारी गांवमें 34 लोगों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड ने बिहार की ऐसी छवि बनाई कि आज तक यह प्रदेश अपनी उस पहचान को मिटा नहीं पाया है. लेकिन, इस जघन्य हत्याकांड के सभी आरोपी बरी कर दिए गए हैं. पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 15 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया और सभी को अविलंब जेल से रिहा करने का आदेश दिया है.

अब उच्च न्यायालय के इस फैसले के साथ ही यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या 34 लोगों की हत्या किसी ने नहीं की थी? इसी पीड़ा का इजहार बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने किया है. साथ ही उन्होंने आरजेडी पर भी निशाना साधा है.

सुशील कुमार मोदी ने अपने ट्वीटर अकाउंट पर लिखा, 'सेनारी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वालों में मैं था और अपनी आंखों से लाशों के ढेर को देखा था. क्रूरता के नंगा नाच के आगे मानवता शर्मसार थी.

सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर लिखा कि 'राजद बताएं कि सेनारी नरसंहार किसके कार्यकाल में हुआ था- सुशील मोदी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने के निर्णय के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद'

बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने एक और ट्वीट कर लिखा कि 'जहां 2005 के पहले बिहार में जातीय हिंसा चरम पर थी और नरसंहारों का तांता लगा हुआ था, लक्ष्मणपुर बाथे में 58, शंकर बिगहा और बथानी टोला में 22-22 वहीं मियांपुर में 35 दलित गाजर- मूली की तरह कटे गए थे. वहीं 2005 के बाद एनडीए के 15 साल में एक भी नरसंहार नहीं हुआ'.

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'दरअसल राजद एक साथ रणवीर सेना और एमसीसी को संरक्षण व मदद देता था. ताकि समाज में जातीय तनाव पैदा कर वह अपनी राजनीतिक रोटी सेंकता रहे. रणवीर सेना व एमसीसी को सरकार का वरदहस्त था. दोनों को आपस में लड़ा कर राजद 15 साल तक राज करता रहा' यह बातें सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर लिखा है...

74 लोगों के खिलाफ चार्जशीट
इस मामले में पहली चार्जशीट साल 2002 में 74 लोगों के खिलाफ दायर की गई थी. हालांकि, इनमें से 18 लोगों के फरार होने के साथ बाकी 56 व्यक्तियों के खिलाफ ही मुकदमा चलाया गया था.

क्या था निचली अदालत का फैसला
इस नरसंहार के 17 साल बाद जहानाबाद की कोर्ट ने 2016 में इस पर अपना फैसला सुनाया था. जिसमे उन्होंने 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी. इसके अलावा तीन लोगों को उन्होंने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इसके अलावा उन पर एक-एक लाख का जुर्माना भी लगाया था. उस दौरान इस केस के दो दोषी फरार चल रहे थे. इसके अलावा निचली अदालत ने पीड़ितों के परिजनों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था. बता दें कि 2016 में निचली अदालत ने 20 आरोपियों को पहले ही बरी कर दिया था.

जहानाबाद के लिए काली थी रात
18 मार्च 1999 की रात प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था. इसके बाद एक जाति विशेष के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकालकर ठाकुरवाड़ी के पास ले जाया गया. जहां बेरहमी से गला रेत कर उनकी हत्या कर दी गई थी.

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वकीलों ने पेश की थी दलीलें
निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया. जबकि दोषियों-द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव तथा अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरिंदर सिंह, पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता कृष्णा प्रसाद सिंह, अधिवक्ता राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक वकीलों ने पक्ष-विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

जहानाबाद सेनारी नरसंहार: अब तक

  • 18 मार्च 1999 में यह नरसंहार हुआ था, जिसमें 34 लोगों की हत्या हुई थी.
  • साल 2002 : अनुसंधान के उपरांत पुलिस द्वारा 88 लोगों के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल, 32 फरार.
  • 15 मई 2002 को 45 अभियुक्तों पर न्यायालय में आरोप गठित. दो की मौत, पांच फरार.
  • 27 अक्टूबर 2016 को 15 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया, जबकि साक्ष्य के अभाव में 23 को रिहा कर दिया गया.
  • 15 नवंबर 2016 : निचली अदालत द्वारा सजा की बिंदु पर सुनवाई पूरी. जहानाबाद जिला अदालत ने फैसला सुनाया. 10 लोगों को फांसी और 3 लोगों को उम्रकैद की सजा.
  • 18 नवंबर 2016 : इस घटना के एक अन्य अभियुक्त दुखन राम की अलग से सुनवाई चल रही थी. उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई. जबकि इस घटना के प्रमुख अभियुक्त दुल्ली राम भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सका.
  • इसके बाद निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया.
  • दोषी द्वारिका पासवान, मुंगेश्वर यादव, बचेश कुमार सिंह व अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी.
  • शुक्रवार को कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.

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