पटना/नई दिल्ली : बिहार में 7 जनवरी से जातीय जनगणना जारी (Caste Census In Bihar) है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जाति आधारित जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें से एक याचिका गैर सरकारी संगठन ने दाखिल की थी. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इंकार: दरअसल, बिहार में जातीय जनगणना पर रोक लगाने के लिए याचिकाकर्ताओं की सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया है. कोर्ट ने सभी याचियों को हाईकोर्ट का रुख करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले को लेकर तीन याचिकाएं थीं, तीनों याचिकाओं को लेकर हाईकोर्ट जाएं. न्यायमूर्ति बी आर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि अदालत याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील की दलीलों पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है. पीठ ने मौखिक रूप से कहा, तो, यह एक प्रचार हित याचिका है?
जातीय जनगणना के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने की मांग: नीतीश के फैसले के खिलाफ डाली गई पीआईएल पर याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया है. हालांकि राहत देते हुए उन्हें हाईकोर्ट जाने की सलाह दी है. हिन्दू सेना ने जातीय जनगणना कराने के 6 जून 2022 वाले नोटिफिकेशन पर रोक लगाने की मांग की थी. सर्वोच्च अदालत ने तीन याचिकाओं को मुख्य याचिका के साथ नत्थी करने की परमीशन दिया था.
क्या है याचिकाकर्ता का दावा: हिन्दू सेना का दावा था कि जातिगत जनगणना के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारत की एकता और अखंडता को तोड़ना चाहते हैं. इससे पहले बिहार के ही रहने वाले अखिलेश कुमार ने जातीय जनगणना के नोटिफिकेशन को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि जाति आधारित जनगणना का नोटिफिकेशन मूल भावन और मूल ढांचे का उल्लंघन है.
7 जनवरी से जारी है सर्वे का काम: गौरतलब है कि बिहार में 7 जनवरी से जातीय जनगणना का सर्वे जारी है. पहले चरण में मकानों की गिनती की जा रही है. राज्य सरकार की ओर से यह सर्वे कराने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को दी गई है. दूसरे चरण की जनगणना का काम 1 से 30 अप्रैल तक होगा. इस दौरान जनगणना में शामिल लोगों की जाति, उपजाति और धर्म से जुड़ी जानकारी दर्ज की जाएगी.