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लालू के वायरल ऑडियो पर बोले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता- सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो कोर्ट भी ले सकता है एक्शन

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रणधीर जैन ने बताया कि इस मामले में सरकार को जांच करवाने से लेकर कार्रवाई तक का अधिकार है. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो कोर्ट को यह अधिकार है कि वह इस तरह के मामलों में संज्ञान लेकर उसकी जांच करवाए.

लालू
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Published : Nov 25, 2020, 6:53 PM IST

नई दिल्ली/पटना: बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने ट्वीट कर पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं. उनका दावा है कि लालू जेल में होने के बावजूद एनडीए नेताओं को फोन कर सरकार गिराने की साजिश रच रहे हैं. आरजेडी का साथ देने के बदले में मंत्री बनाने का प्रलोभन दे रहे हैं. इसके बाद से मानो सूबे की सियासत में भूचाल आ गई है. इस वारयल ऑडियो के सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि अगर ये आरोप सही हैं तो इस पर किस प्रकार की कार्रवाई हो सकती है. इस बारे में ईटीवी भारत ने बात की सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रणधीर जैन से.

सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रणधीर जैन ने बताया कि सुशील मोदी द्वारा लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं. जेल में बंद कोई भी कैदी वहां के मैन्युअल के अनुसार चलता है. जेल मैन्युअल के अनुसार जेल में मौजूद शख्स किसी भी प्रकार का कारोबार नहीं कर सकता. वह भैंस तक नहीं खरीद सकता तो ऐसे में विधायकों की खरीद-फरोख्त करना बेहद ही गंभीर अपराध है. सरकार को इसकी जांच करवानी चाहिए. अगर जांच में आरोप सत्य पाए जाते हैं तो उन्हें न केवल लालू यादव बल्कि जेल अधिकारियों पर भी सख्त एक्शन लेना चाहिए.

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मोबाइल इस्तेमाल में जेल प्रशासन की मिलीभगत
अधिवक्ता रणधीर जैन ने बताया कि जेल में बंद कोई भी कैदी बिना जेल प्रशासन की अनुमति के किसी को कॉल नहीं कर सकता. जेल में सभी कैदी एक समान होते हैं. वहां पर सभी को जेल मैन्युअल के अनुसार सुविधाएं मिलती हैं. फिर चाहे वह आम आदमी हो या कोई बड़ा नेता. ऐसे में अगर सुशील मोदी के आरोप में सच्चाई है तो यह बेहद ही गंभीर अपराध है. जेल अधिकारी उस शख्स को कैसे मोबाइल मुहैया करा सकते हैं, जो सजा काट रहा है. इसकी जांच होनी चाहिए कि यह मोबाइल कैसे इस्तेमाल किया जा रहा था.

कोर्ट को भी कार्रवाई का अधिकार
अधिवक्ता रणधीर जैन ने बताया कि इस मामले में सरकार को जांच करवाने से लेकर कार्रवाई का भी अधिकार है. अगर सरकार ऐसा नहीं करती तो भारत में कोर्ट को यह अधिकार है कि वह इस तरह के मामलों में संज्ञान लेकर उसकी जांच करवाएं. भारत के कानून में सभी को बराबर अधिकार मिले हुए हैं. इसलिए किसी को भी जेल मैन्युअल से हटकर किसी भी प्रकार की सुविधा मुहैया करवाना अपराध है.

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