पटनाः देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू हो चुका है. लेकिन कुछ राज्यों की सरकारें इसे लागू करने के पक्ष में नहीं है. उनका कहना है कि यह कानून संविधान की प्रस्तावना से छेड़-छाड़ है, जो हरगिज सही नहीं है. इस अधिनियम को लेकर देश में सियासत तेज हो चुकी है, ऐसी स्थिति में संवैधानिक संकट के हालात पैदा हो सकते हैं. इसे लेकर आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा कि अगर राज्य इसे लागू नहीं करेंगे तो केंद्र के पास राष्ट्रपति शासन का विकल्प हो सकता है. लेकिन ऐसा करना सरकार के लिए बहुत मुशकिल होगा.
शिवानंद तिवारी, आरजेडी उपाध्यक्ष केंद्र के पास राष्ट्रपति शासन का विकल्प
आरजेडी उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम देश में लागू है, अगर राज्य नहीं मानेंगे तो केंद्र के पास राष्ट्रपति शासन का विकल्प हो सकता है. शिवानंद तिवारी का ये भी मानना है कि केंद्र के पास कई राज्यों को बर्खास्त करने का विकल्प होगा, लेकिन वह सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
बयान देते संविधान विशेषज्ञ और नेता प्रशांत किशोर भी नहीं हैं कानून से सहमत
वहीं, नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर लगातार मुहिम चला रहे हैं. प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा था कि पंजाब केरला और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू करने से मना कर दिया है. 16 गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों को भी आगे आना चाहिए. हालांकि प्रशांत किशोर का स्टैंड पार्टी का स्टैंड नहीं है.
जीतन राम मांझी, पूर्व मुख्यमंत्री 'विधि व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होगी'
वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी मानते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम देश में लागू है, इसे सभी राज्यों को मानना चाहिए. लेकिन अगर अधिनियम के वजह से राज्यों में विधि व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होती है तो वैसे स्थिति में राज्य इंकार कर सकते हैं.
'कानून मानने के लिए राज्य बाध्यकारी'
उधर बीजेपी और जेडीयू नागरिकता संशोधन अधिनियम के पक्ष में हैं. बीजेपी का मानना है कि संघ सूची के जो विषय हैं उस पर अगर केंद्र कानून बनाती है तो उसे राज्यों का मानना होगा. पार्टी प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा है कि राज्यों के लिए कानून को मानना बाध्यकारी होगा.
निखिल आनंद , बीजेपी प्रवक्ता 'केंद्र राज्य मिलकर करें समस्या का समाधान'
जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि पार्टी हालांकि नागरिकता संशोधन अधिनियम के पक्ष में है. लेकिन अगर राज्यों से टकराव होती है तो वह हालात ठीक नहीं होंगे. केंद्र राज्य मिलकर समस्या का समाधान निकालें. राज्यों की जो आपत्ति है उसे भी दूर करने की कोशिश की जाए.
राजीव रंजन, जेडीयू प्रवक्ता 'अधिनियम का प्रारूप संविधान सम्मत नहीं'
वहीं, कुछ संविधान के जानकार मानते हैं कि अधिनियम का प्रारूप संविधान सम्मत नहीं है. संविधान विशेषज्ञ डीएम दिवाकर का कहना है कि अधिनियम में धर्म के आधार पर नागरिकता देने का प्रावधान है. पाकिस्तान के हजरा और अहमदिया प्रताड़ित हैं. उन्हें नागरिकता नहीं मिल सकती. इसके अलावा तमिल, मधेशी, गोभी को नागरिकता नहीं मिलेगी. बेहतर तो यह होता कि संसद पड़ोस के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान करती.
डीएम दिवाकर, संविधान विशेषज्ञ ये भी पढ़ेंः PM मोदी ने CAA के समर्थन में शुरू किया ट्विटर कैंपेन
स्पष्ट है संविधान में केंद्र और राज्य की शक्तियां
दरअसल भारत के संविधान में केंद्र और राज्य की शक्तियों का स्पष्ट तौर पर विभाजन है. संघ सूची में जो विषय शामिल हैं उन पर केंद्र कानून बना सकता है और वह पूरे देश में लागू होगा. संघ सूची में भारत के रक्षा, विदेश नीति, वायु मार्ग करेंसी, रेल, बैंक ,टेलीफोन और डाक तार आदि विषय शामिल हैं. नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को भारत के संविधान के द्वितीय भाग के अनुच्छेद 5 से 11में दिया गया है.
पैदा हो सकती है संवैधानिक संकट की स्थिति
बता दें कि नागरिकता संशोधन अधिनियम संसद से पारित किया जा चुका है और राष्ट्रपति की मुहर भी लग चुकी है. अधिनियम को लेकर कुछ गैर बीजेपी शासित राज्य विरोध कर रहे हैं और अपने राज्य में लागू नहीं होने देने की बात कह रहे हैं. अगर ऐसा करने पर राज्य आमदा हो जाते हैं तो देश में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी और केंद्र के पास राष्ट्रपति शासन के अलावा दूसरा विकल्प नहीं होगा.