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हैदराबाद एनकाउंटर: 'झूठी खुशी मनाने में संकोच नहीं कर रहा समाज, ये नहीं बेहतर समाधान' - latest news

डीएन गौतम कहते हैं कि हम काफी लंबे समय से एक बीमार समाज में जी रहे हैं. समाज में खुशियों का इतना अभाव हो गया है कि लोग एक झूठी खुशी को भी जीने में संकोच नहीं कर रहे, जबकि समाज जानता है कि जिस चीज की खुशी वो मना रहा है. वो इस जटिल सिस्टम की असफलता बताता है.

हैदराबाद एनकाउंटर
हैदराबाद एनकाउंटर

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Published : Dec 6, 2019, 5:58 PM IST

पटना: हैदराबाद दुष्कर्म और मर्डर केस के चारों आरोपियों की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई है. शुक्रवार सुबह हुए इस एनकाउंटर के बाद देश में बहस छिड़ गई है. एक बड़े तबके ने हैदराबाद पुलिस की तारीफ की है, लेकिन दूसरी ओर मानवाधिकार को लेकर सोशल मीडिया से लेकर कई नेता मंत्री बयानबाजी कर रहे हैं. इस बाबत ईटीवी भारत ने वरिष्ठ आईपीएस अफसर और बिहार के पूर्व डीजीपी डॉ. डीएन गौतम से बातचीत की है.

समाज के एक बड़े तबके में जश्न का माहौल है, ऐसे में हमने पूर्व डीजीपी साहब से कई सवाल पूछे. इन सवालों का जवाब देते हुए डॉ. डीएन गौतम ने साफ कहा कि दुष्कर्म के मामले में 6 महीने के अंदर सजा का प्रावधान है. लेकिन मामले की सुनवाई काफी लंबी चल रही है. रूल और नियम बनें हुए हैं, लेकिन उन्हें सख्ती से लागू नहीं किया जा रहा है.

पूर्व डीजीपी डॉ. डीएन गौतम से खास बातचीत

सिस्टम की असफलता- डॉ. डीएन
डॉ. डीएन गौतम कहते हैं कि जिस तरह से 4 आरोपियों को हैदराबाद पुलिस ने एनकाउंटर में मारा है, उसकी तो न्यायिक जांच होगी ही. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आज देश में सभी तरफ लोग इस घटना के बाद खुशी मना रहे हैं, जो इस जटिल सिस्टम की असफलता बताता है.

सवाल- हैदराबाद की घटना को किसकी असफलता और किसकी सफलता मानी जाए ?
जवाब-ये बड़ा भारी प्रश्न है. हम हर चीजों को सफलता और असफलता के पैमाने पर नापने लगते हैं, वो भी बिना तथ्यों को जानें. अभी जो फैक्ट्स हैदराबाद से आ रहे हैं, उसकी कानून के अनुसार विधिवत जांच होगी.

पूर्व डीजीपी डॉ. डीएन गौतम

सवाल-एनकाउंटर पर देश की जनता का खुशी मनाना, क्या स्वस्थ्य समाज के लिए बेहतर संदेश है ?
जवाब-डीएन गौतम कहते हैं कि हम काफी लंबे समय से एक बीमार समाज में जी रहे हैं. समाज में खुशियों का इतना अभाव हो गया है कि लोग एक झूठी खुशी को भी जीने में संकोच नहीं कर रहे, जबकि समाज जानता है कि जिस चीज की खुशी वह मना रहा है. वह बेहतर समाधान नहीं है.

सवाल-कानून को हाथ में लेना क्या न्यायालय प्रक्रिया की असफलता मानी जाए ?
जवाब- क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बोझ तले टूट चुका है. एक बार एफआईआर दर्ज होने के बाद सारा सिस्टम अभियुक्त के पक्ष में चला जाता है. जिस पर आरोप लगे रहते हैं, वह बेल ले सकता है. उसके अलावा गवाहों को धमका सकता है. लेकिन जो पीड़ित मुकदमा करता है, उसे दोहरी मार झेलनी पड़ती है. पहली जब उसके साथ दुर्घटना होती है और दूसरी जब वह न्याय के लिए कोर्ट के चक्कर लगाता है. पूर्व डीजीपी कहते हैं कि मैं व्यक्तिगत तौर पर भी देखा हूं कि न्याय मिल पाना काफी थका देने वाली प्रक्रिया है.

सवाल- बलात्कार के मामले में समय पर न्याय आखिर कैसे मिलेगा ?
जवाब-पूर्व डीजीपी कहते हैं कि वे अपने कार्यकाल में 2008 के दौरान एक विशेष टीम बनाकर इस पर काम करने का सुझाव सरकार के समक्ष रखा था. उन्होंने बताया कि 2008 में ही महसूस होने लगा था कि महिलाओं, बच्चे और बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाओं की पराकाष्ठा होने वाली है. लेकिन हर जिले में सिर्फ महिला थाना खोल दिया गया है. जो अन्य थानों की तरह ही कई तरह की समस्याओं से ग्रसित है.

सवाल- क्या दुष्कर्म के आरोपियों के लिए और कड़े कानून होने चाहिए ?
जवाब-इस सवाल के जवाब में डॉ. गौतम कहते हैं कि कानून पहले से भी बने हुए हैं. दुष्कर्म के मामले में 6 माह के अंदर कोर्ट को अंतिम निर्णय सुना देना होता है. लेकिन आज भी लोग वर्षों तक फैसले के लिए दौड़ रहे हैं. कानून बनाने से ज्यादा जरूरी उसे पालन कराना है. जब तक कानून का सा-समय पालन नहीं होगा, तब तक उस कानून का कोई औचित्य नहीं रह जाता.

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