पटना:हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस और बीएचआरसी के पूर्व सदस्य राजेंद्र प्रसाद ने बक्सरमें मिल रही लाशों के अंबार पर कहा कि ये परिस्थिति भयावह है. ये सीधे तौर पर मानव अधिकार उल्लंघन का मामला है. जो कि कई लोगों के द्वारा किया गया है.
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''किसी भी कारण से अगर किसी शख्स की मौत हो जाती है, तो मानव अधिकार के तहत उसके शव का सम्मान पूर्वक दाह संस्कार होना चाहिए. गंगा नदी में जिस तरह से शवों की दुर्गति हो रही है, ये सीधे-सीधे मानव अधिकार उल्लंघन का मामला है.''-राजेंद्र प्रसाद, पूर्व सदस्य, बीएचआरसी
'यूपी और बिहार नहीं झाड़ सकते पल्ला'
उन्होंने कहा कि बिहार और यूपी दोनों राज्य इस पूरे मामले से अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं, दोनों ही राज्यों को मिलकर इसका समाधान ढूंढना चाहिए. सरकार गंगा नदी को निर्मल रखने के लिए तमाम योजनाएं चला रही है, लेकिन अगर सरकारें आपस में ही लड़ेंगी, तो पूरे मामले का समाधान कैसे निकलेगा. यूपी और बिहार में अंतर नहीं हैं. दोनों को ही अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए मिलकर मामले का समाधान ढूंढना होगा.
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कैसे काम करता है मानव अधिकार आयोग?
ऐसे तमाम मामलों में मानव अधिकार आयोग की जिम्मेदारी अहम हो जाती है और उन्हें आगे बढ़कर मामले पर संज्ञान लेना चाहिए, लेकिन ये उस संस्थान के अध्यक्ष की मंशा पर भी निर्भर करता है कि वो इस मामले को किस तरह से देखता और सोचता है. मानव अधिकार आयोग को तो पूरी शक्ति है कि वो मानव अधिकार उल्लंघन के मामले को मजबूती से उठा सकता है. फिर नदी में मिल रही लाशों का मामला तो साफ तौर पर मानव अधिकार उल्लंघन का मामला है.