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एसवीयू ने मगध विश्वविद्यालय के कुलपति से की पूछताछ, तीसरी नोटिस में हुए हाजिर और पोछते रहे पसीना

स्पेशल विजिलेंस यूनिट की टीम ने मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से (VC Dr. Rajendra Prasad) घंटों पूछताछ की है. इस दौरान एसवीयू की टीम को कुलपति के ओर से सटीक जवाब नहीं मिल पाया. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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मगध विश्वविद्यालय के कुलपति

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Published : Jan 21, 2022, 10:48 AM IST

पटना:मगध विश्वविद्यालय (Magadh University In Gaya) के कुलपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से एसवीयू (स्पेशल विजिलेंस यूनिट) ने गुरुवार को पांच घंटे से ज्यादा समय तक पूछताछ की है. एसवीयू के कार्यालय में चली इस पूछताछ में उनसे अवैध कमाई के अलावा उनके कार्यकाल में हुए सभी तरह के घोटालों (Magadh University Scam) से जुड़े सवाल पूछे गए. इस दौरान उन्होंने किसी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

आय से अधिक संपत्ति मामले में एसवीयू (Special Vigilance Unit) ने कुलपति के यहां छापेमारी की थी. इस दौरान उनके आवास से करीब 1 करोड़ 82 लाख रुपये कैश के अलावा कई संवेदनशील दस्तावेज बरामद हुए थे. इसके बारे में भी उनसे विस्तार से पूछताछ की गयी. इस दौरान वे किसी तरह की जानकारी देने में सक्षम साबित नहीं हुए. बता दें कि कुलपति हर गड़बड़ी का दोष दूसरे पर ही मढ़ते रहे हैं. उन्होंने कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया. ऐसे में एसवीयू जल्द ही उन्हें नोटिस जारी करके फिर से पूछताछ करने के लिए बुलाएगा. इस बार उनसे प्रश्नोउत्तर के आधार पर पूछताछ की जाएगी.

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कुलपति ने पूछताछ के दौरान बताया कि यह पूरी राशि ट्रस्ट की है. जिस ट्रस्ट के बारे में वे बता रहे हैं, उस ट्रस्ट के सदस्य कुलपति और उनके बेटे दोनों हैं. इसमें अधिकांश लोग उनके घर के ही सदस्य हैं. इस ट्रस्ट के माध्यम से एक निजी स्कूल का संचालन गोरखपुर में किया जाता है. बताया जाता है कि इस स्कूल में काफी अवैध पैसा कुलपति का ही लगा हुआ है. हालांकि उन्होंने इससे जुड़ी किसी बात का कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया.

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इतनी बड़ी राशि की बरामदगी के बारे में जब उनसे पूछा गया, तो वे कुछ स्पष्ट नहीं बता पाए. इसके अलावा विश्वविद्यालय से संबंधित दस्तावेजों के बारे में भी पूछताछ की गयी, तो उन्होंने इसका घुमा-फिरा कर जवाब दिया. विश्वविद्यालय में कॉपी एवं किताब खरीद में हुई गड़बड़ी के बारे में उनसे पूछताछ की गई, तो उन्होंने इसका सारा दोष दूसरे पर मढ़ दिया. लाइब्रेरी में किताब की खरीद में हुई धांधली के बारे में उन्होंने लाइब्रेरियन को दोषी बताया.

इसी तरह गार्ड की तैनाती में पैसे की अवैध निकासी के लिए भी संबंधित पदाधिकारी को दोषी ठहराया. परंतु जब उनसे पूछा गया कि ये सारे आदेश उनके स्तर से ही अंतिम रूप से पास किये गये हैं, तो वे कोई भी सटीक जवाब नहीं दे पाये. उनसे लखनऊ की दोनों कंपनियों को तमाम नियमों की अनदेखी करके सभी टेंडर देने के बारे में भी सवाल पूछे गए, तो भी वे कुछ स्पष्ट नहीं बता पाये और लगातार इस तरह की बातों से इनकार करते रहे. गौरतलब है कि उनकी अग्रीम जमानत याचिका पर 25 जनवरी को कोर्ट में सुनवाई होने वाली है. अगर इस दिन कोर्ट ने उनकी जमानत को नामंजूर कर दिया, तो उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है.

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