पटना: बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था (HEALTH SYSTEM OF BIHAR) को लेकर विपक्ष लगातार अभियान चला रहा है और जदयू के विधायक खुद सरकार के व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. रानीगंज के जदयू विधायक अचमित ऋषिदेव ने अपनी ही सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहा कि यदि हालात बद से बदतर नहीं होते, तो मेरी पत्नी की जान नहीं जाती. यही नहीं सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में लगातार बिहार सरकार को आईना दिखा रही है.
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सत्ता पक्ष की अलग ही दलील
कोरोना काल में बिहार के लोगों ने अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन तक की कमी का सामना किया है और उसके कारण कई लोगों की मौत हुई है. ऐसे में सत्ता पक्ष की तरफ से अभी भी दावे हो रहे हैं कि 15 सालों के लालू-राबड़ी के शासन से कोई तुलना ही नहीं की जा सकती है. नीतीश कुमार के शासन में स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है और लगातार काम हो रहे हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण ही आज संक्रमण दर पूरे देश में बिहार का बेहतर है और कोरोना को नियंत्रित किया जा रहा है.
भगवान भरोसे स्वास्थ्य व्यवस्था
नीतीश सरकार की ओर से दावे भले ही कुछ भी किए जाते हो, लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे ही चल रही है. डॉक्टरों की कमी, नर्सों की कमी और पारा मेडिकल स्टाफ की कमी किसी से छिपी नहीं है. आंकड़ों से भी साफ हो जाता है कि बिहार में केवल मानव संसाधन ही नहीं, इलाज के लिए जो आधुनिक संसाधन होने चाहिए उसकी भी घोर कमी है. अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कहीं नहीं टिक रही है.
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रिक्त पदों पर बहाली कब?
बिहार स्वास्थ्य विभाग के मंत्री और अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि रिक्त पदों को भरने के लिए लगातार कोशिश हो रही है. तकनीकी सेवा आयोग से लेकर कर्मचारी चयन आयोग तक रिक्तियों को भरने में लगे हैं. इन सब परिस्थितियों में नीति आयोग ने 2030 तक प्रति लाख की आबादी पर 550 डॉक्टर और नर्स की संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में विकसित राज्य जो अभी भी बिहार से काफी आगे हैं, वहां तो व्यवस्था हो जाएगी. लेकिन बिहार में इस लक्ष्य के नजदीक पहुंचना भी एक बड़ी चुनौती है.
मानक से कोसो दूर स्वास्थ्यकर्मी
बिहार में जो मानक है, उससे काफी कम संख्या में डॉक्टर हैं. एक लाख की आबादी पर औसत डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी 221 होना चाहिए, लेकिन बिहार में केवल 20 के आसपास है. बिहार की जो आबादी है उसके अनुसार हर तरह के 1 लाख डॉक्टर की जरूरत है, लेकिन उसका आधा भी बिहार में नहीं हैं. उसी तरह नर्सों की भारी कमी है. 90% से अधिक नर्स की और जरूरत है.
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बिहार में विशेषज्ञ चिकित्सकों कमी
विशेषज्ञ चिकित्सकों की तो भारी कमी है और सरकार चाहकर भी विशेषज्ञ चिकित्सक की बहाली नहीं कर पा रही है. बिहार में वेंटीलेटर्स का इस्तेमाल इसलिए नहीं हो पाता है क्योंकि विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं मिल पाए और यह बात खुद स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने पिछले दिनों कही है.
'स्वास्थ्य व्यवस्था पर नहीं दिया ध्यान'
आईएमए बिहार के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार का कहना है कि बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था पर जिस प्रकार से ध्यान देना चाहिए, वह नहीं दिया गया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित देशों में 550 की आबादी पर एक डॉक्टर की व्यवस्था है, लेकिन बिहार में 2400 की आबादी पर एक डॉक्टर है. जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर का होना जरूरी है.