पटना: आज बिहार दिवस पूरे राज्य में धूम-धाम से मनाया जा रहा है. इस मौके पर सबसे पहले आप सभी को शुभकामनाएं. बिहार से मिलों दूर आज हैदराबाद में बिहार से जुड़ी कई खट्टी-मीठी यादें ताजा हों गईं, लेकिन एक ऐसी घटना जो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकती, आज आप लोगों से शेयर कर रही हूं.
कभी न खत्म होने वाली यादें
बिहार की राजधानी पटना से सटे भोजपुर जिला मुख्यालय आरा में पूरा बचपन और जवानी गुजरी. इसी बीच कुछ साल राजधानी पटना में सहारा दैनिक अखबार से जुड़े होने के कारण बिताया. बिहार से जुड़ी कभी न खत्म होने वाली यादें आंखों के सामने घुमने लगती हैं. चाहे वो होली में दोस्तों के घर जा कर पूरी और कटहल की सब्जी का मज़ा लूटना हो या फिर दशहरे के दिन पंडालों में घूमना. रामनवमी का जुलूस हो या मुहर्रम का प्रोशेसन, दिवाली की मिठायां हों या फिर ईद की सेवंइयां बिहार में तकरिबन हर गांव और शहर में गंगा जमुनी तहज़ीब का नजारा देखने को मिल ही जाएगा.
सचमुच इमानदार हैं बिहारी
बहरहाल, इन सारी यादों के अलावा अपनी इंटरनल मेमोरी में सेव एक ऐसी घटना का जिक्र करना चाहती हूं, जो बिहारियों की ईमानदारी का जीता जागता नमूना पेश करती है. एक बिहारी की ईमानदारी से जुड़ी घटना का जिक्र करना इस लिए भी जरूरी समझती हूं क्योंकि आज कई राज्यों में चाहे वो महाराष्ट्र हो या असम या फिर राष्ट्रपिता गांधी की धरती गुजरात, सभी जगह बिहारियों की ईमानदारी और किरदार पर सवाल खड़े हो रहे हैं.
त्योहारों की थी सभों को खुशी
बात उन दिनों की है जब में छोटी थी, लेकिन इतनी छोटी नहीं की इस घटना को भूल जांऊ. दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों का महिना था. हर घर में त्योहारों की धूम थी. दूसरे बच्चों की तरह हमने भी अपने पापा से ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने खरीदवाने का प्लान बना रखा था. मेरे पापा कोइलवर प्रखण्ड में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे. उस समय बिहार में शिक्षकों को वेतन भी समय पर नहीं मिलता था. कमोबेश वो स्थिती आज भी है. त्योहार को देखते हुए सरकार ने बकाया वेतन देने का ऐलान किया था. घर में सभी खुश थे.