पटना:'सोच को बदलो सितारे बदल जाएंगे, नज़र को बदलो नज़ारे बदल जाएंगे. कश्तियां बदलने की ज़रूरत नहीं, दिशाओं को बदलो किनारे खुद ब खुद बदल जाएंगे'ये पंक्तियां याद हैं आपको? इन्ही पंक्तियों के साथ बिहार के वित्तमंत्री सुशील मोदी ने 2019-20 के अपने बजट भाषण की शुरुआत की थी. पिछले 15 सालों में बिहार की सोच और नज़र कितनी बदली वो सब हमारे सामने है. साल 2005 में जहां बजट का आकार सिर्फ 23 हज़ार 885 करोड़ था, वहीं 2019 -20 में बजट का आकार 9 गुना बढ़कर 2 लाख करोड़ से ज़्यादा का हो गया. लेकिन बजट का ये बढ़ता आकार और डबल डिजिट के ग्रोथ रेट से बढ़ने वाला बिहार अभी भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूल क्षेत्रों में देश में राज्यों की सूची में सबसे निचले पायदानों पर ही है.
ये तो बात हुई आंकड़ों की. अब आते हैं बिहार में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत पर. कैमूर जिले के रामगढ़ प्रखंड में एक ऐसा सरकारी स्कूल है जहां पिछले 3 सालों से किसी छात्र का नामांकन नहीं हुआ है. हर रोज विद्यालय में औसतन 3 से 4 छात्र ही स्कूल आते हैं. विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक अरविंद मांझी ने बताया कि उनकी लाख कोशिशों के बावजूद विद्यालय में छात्रों का नामांकन नहीं हो पा रहा.
ऐसे खुली सरकार की व्यवस्था की कलई
ये हाल तब है जब बिहार सरकार अपने बजट में सबसे ज्यादा राशि शिक्षा के मद में खर्च करती है. वही हाल बदस्तूर स्वास्थ्य सुविधाओं का भी है. चमकी बुखार जैसी आपदाएं राज्य के चिकित्सा व्यवस्था की भी कलई खोलती रहती हैं.