पूर्णिया: हिंदी साहित्य को अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाने में राष्ट्रकवि दिनकर की अद्वितीय भूमिका रही है. उनके इसी सिद्धि का असर रहा कि वे ऐसे एकलौते कवि हुए जिन्हें 'राष्ट्रकवि' की उपाधि मिली. वैसे तो ऐसी अनगिनत कृतियां हैं. जिसने दिनकर की कतार में खड़े कवियों से अलग पहचान बनाई. मगर इन सभी कृतियों में प्रसिद्ध 'रश्मिरथी' ही थी, जिसने इन्हें दिनकर से राष्ट्रकवि दिनकर बनाया. लिहाजा आप जानते हैं बेटी विंध्यवासिनी की शादी और उसके गौने की सामाजिक-आर्थिक संघर्ष से जुड़ी 'रश्मिरथी' की रचना से जुड़ी अनसुनी कहानी. क्या है 'रश्मिरथी' का महाभारत कालीन सिकलीगढ़ धरहरा कनेक्शन.
ईटीवी भारत बताएगा रश्मिरथी से जुड़ी अनसुनी कहानी
क्या आप जानते हैं कि दिनकर ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' की रचना पैतृक गांव सिमरिया, शिक्षा अर्जन के केंद्र पटना विश्वविद्यालय, सियासत की सीढ़ियों तक चढ़ाने वाली दिल्ली, सेवा क्षेत्र रहे मुजफ्फरपुर, भागलपुर या फिर सहरसा के बजाए पूर्णिया से ही क्यों की? क्या आप ये जानते हैं प्रसिद्ध 'रश्मिरथी' की रचना के केंद्र में महाभारत के मुख्य पात्र कर्ण के समानांतर केंद्र में कोई और नहीं खुद दिनकर और उनकी बेटी विंध्यवासिनी हैं. इसकी रचना की कहानी बेटी विंध्यवासिनी की शादी और गौने से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक अर्चन की कहानी कहती है. ईटीवी भारत रामधारी सिंह दिनकर की 46वीं पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करता है..
वह काझा जहां दिनकर ने किया था चहेती बेटी का विवाह
ईटीवी भारत की टीम पूर्णिया हेडक्वार्टर से 14 किलोमीटर का फासला तय कर काझा काली स्थान पहुंची. जहां आज भी राष्ट्रकवि दिनकर का परिवार रहता है. दरअसल, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को दो बेटे और दो बेटियों समेत कुल 4 संतानें थीं. इनमें से एक की शादी राष्ट्रकवि दिनकर ने पूर्णिया में किया. इस तरह नगर प्रखंड स्थित काझा गांव राष्ट्रकवि दिनकर की बेटी का ससुराल बना. दिनकर की चार संतानों में वह विंध्यवासिनी ही थी, जिससे दिनकर का विशेष जुड़ाव रहा.
4 संतानों में विंध्यवासिनी से था सबसे ज्यादा लगाव
दिनकर को 4 संतानों में विंध्यवासिनी से सबसे ज्यादा लगाव था. यही वजह रही तमाम व्यस्तताओं के बाद भी दिनकर को इनकी चिट्ठी आए न आए, तो वे अक्सर उनसे मिलने उनके ससुराल चले आया करते. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 2011 में विंध्यवासिनी का देहांत हो गया. मगर आज भी विंध्यवासिनी के बेटे और उनका परिवार दिया हुआ हर एक सामान संभालकर रखा है.
सामाजिक-आर्थिक उलझनों से भरा रहा दिनकर का जीवन
राष्ट्रकवि दिनकर और उनकी प्रसिद्ध कृति 'रश्मिरथी' से जुड़ी यादों के पन्ने पलटते हुए दिनकर के पौत्र त्रिपुरारी शर्मा बताते हैं कि सिमरिया स्थित उनके घर में रोजाना होने वाले रामचरितमानस ने उनके अंदर उत्तम विचारों का प्रवाह किया. वहीं, महाभारत के एक अहम पात्र के संघर्ष को वे अपने जीवन के संघर्ष से जोड़कर जीते रहे. बचपन में ही सर से पिता का साया छीन जाने से छात्र जीवन भी कष्टप्रद रहा. सरकारी सेवा में आने और इससे कहीं अधिक एक प्रतिष्ठित जीवन में रहते हुए भी समाजिक-आर्थिक उलझनों ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा.