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एक कमरे में लॉकडाउन हैं इनकी जिंदगी, नहीं खत्म हो रहीं परेशानी - Slum area of patna

मुंबई की धरावी स्लम बस्ती में कोरोना वायरस का प्रकोप किस कदर हुआ है. ये किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में ईटीवी भारत ने बिहार की राजधानी पटना की स्लम बस्तियों का जायजा लिया और वहां के हालातों के बारे में जाना. पढ़ें और देखें खास रिपोर्ट...

बिहार की ताजा खबर
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Published : Apr 26, 2020, 7:08 PM IST

पटना: महामारी का रूप ले चुका कोरोना वायरस देश के लिए बड़ा संकट बन चुका है. ऐसे में घनी आबादी वाली जगहों पर इसकी रोकथाम के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है. बात करें स्लम एरिया की, तो वहां इसके फैलाव को रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है. ईटीवी भारत ने स्लम एरिया में जाकर वहां का जायजा लिया.

पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित एमएलए हॉस्पिटल के पीछे अदालतगंज स्लम बस्ती में हालात भयावह हैं. इस स्लम एरिया में मकान बेहद सटे हुए हैं. छोटे-छोटे घरों में पांच से 8 लोग रह रहे हैं. पटना में छोटी-छोटी स्लम बस्तियां मिलाकर कुल 150 स्लम एरिया हैं, जहां हालत बेहद ही खराब है.

नहीं मेंटेन हो रही सोशल डिस्टेंसिंग
परिवार में लोगों की संख्या ज्यादा है, तो वहीं घरों का बेहद करीब होना सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो नहीं करा सकता. घनी आबादी वाली स्लम एरिया में लोग मास्क या गमछा बांध खुद को कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लगे हुए हैं. लेकिन छोटी-छोटी तंग गलियों में जरूरत का सामान लेने अगर कोई बाहर निकलता है, तो भीड़ ज्यादा नजर आने लगती है.

पटना से अरविंद राठौर की रिपोर्ट

क्या कहते हैं लोग
स्लम बस्ती में रह रहे अजय कुमार बताते हैं कि जब से लॉकडाउन लगा है. काम धंधा बंद है. किसी तरह हम अपना परिवार चला रहे हैं. सरकार की तरफ से जो भी योजना चलाई जा रही हैं, उस योजना का लाभ अभी तक हम लोगों के पास नहीं पहुंचा है. सरकार के तरफ से जो भी राशन हम लोगों को मिलता है वह भी खाने लायक नहीं होता, चावल गेहूं की क्वालिटी बहुत ही खराब है. यदि उस अनाज को हम लोग खाएंगे, तो ऐसे ही बीमार पड़ जाएंगे.

कैसे मेंटेन करें सोशल डिस्टेंसिंग

नहीं मिला 1 हजार रुपया
अजय ने आगे कहा कि सरकार के तरफ से जो एक हजार रुपया की घोषणा की गई थी, उसका लाभ अभी तक उन्हें नहीं मिला है. हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से जो जन धन खाता है उसमें 500 रुपया आया है. लेकिन बिहार सरकार के तरफ से अभी हमें कुछ नहीं मिला है. उनकी पत्नी किरण देवी बताती हैं कि पति का काम छूटने से परिवार को चलाने में बहुत बड़ी समस्या आ रही है. यदि 3 मई के बाद लॉकडाउन और बढ़ता है तो परिवार का भरण पोषण करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा.

कई लोगों का राशन कार्ड में नाम नहीं
यहां के लोग बताते हैं कि अधिकतर लोगों का नाम राशन कार्ड से कट गया है. हम लोग जुड़वाने की कोशिश भी कर रहे हैं, तो जोड़ा नहीं जा रहा है. वहीं यहां के लोगों ने भी सरकार के साथ वार्ड पार्षद पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि वार्ड पार्षद भी हमारी इस स्थिति को देखने नहीं आते हैं.

सता रहा कोरोना का डर

वहीं इस स्लम बस्ती में रह रहे राजेश कुमार अपने छोटे से कमरे में परिवार के साथ रहते हैं. राजेश बताते हैं कि एक छोटे से कमरे में किसी तरह से हम लोग गुजारा करते हैं. उन्होंने बताया कि सरकार जो भी योजना हम लोगों के लिए चला रही है, वह हम लोगों के पास नहीं पहुंच रही. सरकार ने बिना राशन कार्ड वाले लोगों के लिए भी राशन उपलब्ध कराने की बात तो करती है लेकिन वह भी नहीं मिल पा रहा है.

नहीं हुआ सैनिटाइजेशन
वहीं, हम इस स्लम एरिया की बात करें तो इस स्लम बस्ती में लोग खुद झुग्गी झोपड़ी बनाकर परिवार के साथ रहते हैं कई वर्षों से रहते आ रहे हैं सरकार इस एरिया को सनम बस्ती के रूप में घोषित कर सभी सरकारी योजनाओं का लाभ इन लोगों तक पहुंचने की योजना भी बना दी है ,नगर निगम दौरा संक्रमण को लेकर शहर में सैनिटाइज तो किया जा रहा है, लेकिन स्लम बस्ती एरिया में निगम द्वारा सेनीटाइज भी नहीं हो रहा है. ऐसी स्थिति में स्लम बस्ती एरिया में संक्रमण का ज्यादा खतरा मंडरा रहा है. यहां के लोगों की माने तो यहां पर निगम द्वारा संक्रमण को लेकर जब लॉक डाउन लगा था, तभी कीटनाशक दवा का छिड़काव हुआ किया. लेकिन उसके बाद से कोई यहां नहीं आया.

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