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शरद पूर्णिमा 2020: इस विधि से करें मां लक्ष्मी की पूजा, जानिए व्रत पूजन विधि और पौराणिक कथा

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Published : Oct 30, 2020, 1:51 AM IST

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं. इस साल इसे 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा. शरद पूर्णिमा के खास अवसर पर लोग व्रत व विशेष पूजा करते हैं. इसे आरोग्य का पर्व भी कहा जाता है.

शरद पूर्णिमा 2020
शरद पूर्णिमा 2020

पटना:शरद पूर्णिमा शनिवार 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा. हिन्दू पंचांग के अनुसार उदय तिथि का महत्व रहने के कारण ऐसा होगा. आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमा तिथियों में से सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा तिथि मानी जाती है. इस दिन धन वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था.

शरद पूर्णिमा की तिथि 2020:-

  • पूर्णिमा तिथि का आरंभ- 30 अक्तूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से
  • पूर्णिमा तिथि की समाप्ति- 31 अक्तूबर को रात के 8 बजकर 21 मिनट पर
  • इसके साथ ही अगले दिन यानी रविवार से कार्तिक स्नान का शुभारंभ होगा
  • दीपावली की तैयारियांआरंभ हो जाएगी
    शरद पूर्णिमा पूजा विधि


शरद पूर्णिमा व्रत विधि:-सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर की सफाई करें. ध्यान पूर्वक माता लक्ष्मी और श्रीहरि की पूजा करें. इसके बाद गाय के दूध में बने चावल की खीर बनाकर रख लें. लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए लाल कपड़ा या पीला कपड़ा चौकी पर बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा इस पर स्थापित करें. तांबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढकी हुई लक्ष्मी जी की स्वर्णमयी मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं. भगवान की प्रतिमा के सामने घी का दीपक और धूप जलाएं. इसके बाद मां लक्ष्मी और श्री हरी की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत और रोली से तिलक लगाएं. तिलक करने के बाद सफेद या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं, फिर लाल या पीले पुष्प अर्पित करें. माता लक्ष्मी को गुलाब का फूल अर्पित करना विशेष फलदाई होता है.

रात में खीर को खुले आसमान के निचे रखा जाता है

श्रीसूक्त का करें पाठ
दिनभर के व्रत के बाद शाम के समय चंद्रमा निकलने पर अपने सामर्थ्य के अनुसार गाय के शुद्ध घी के दीये जलाएं. इसके बाद खीर को कई छोटे बर्तनों में भरकर छलनी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रख दें. फिर ब्रह्म मुहूर्त में विष्णु सहस्त्रनाम का जप, श्रीसूक्त का पाठ, भगवान श्रीकृष्ण की महिमा, श्रीकृष्ण मधुराष्टकम का पाठ और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. पूजा की शुरुआत में भगवान गणपति की आरती अवश्य करें. अगली सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके उस खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करें और प्रसाद रूप में वह खीर घर-परिवार के सदस्यों में बांट दें.

मां लक्ष्मी (फोटो क्रेडिट गूगल)

लक्ष्मी जी के 8 रूप
शरद पूर्णिमा के दिन विशेष तौर पर देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. उनके आठ रूप हैं, जिनमें धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी हैं. सच्चे मन से मां की आराधना करने वाले भक्तों की सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं.

शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन चांद अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है. शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर पूरी रात चांद की रोशनी में आसमान के नीचे रखा जाता है फिर अगले दिन सुबह इसे प्रसाद के तौर पर परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद ग्रहण करता है. उसके शरीर से कई रोग खत्म हो जाते हैं.

शरद पूर्णिमा का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा शुभ फल नहीं देते हैं. उन्हें खीर का सेवन जरूर करना चाहिए. इसके अलावा यह भी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा देवी लक्ष्मी का आगमन होता है. इस कारण से देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है.

शरद पूर्णिमा की पौराणिक व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहूकार की दो बेटियां थीं. वे दोनों पूर्णिमा का व्रत करती थीं. जहां एक तरफ बड़ी बेटी ने विधिवत व्रत को पूरा किय. वहीं छोटी बेटी ने व्रत को अधूरा छोड़ दिया था. इसका प्रभाव यह हुआ कि छोटी लड़की के बच्चों का जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गई. फिर एक बार बड़ी बेटी ने अपनी बहन के बच्चे को स्पर्श किया. वह स्पर्श इतना पुण्य था कि उससे बालक जीवित हो गया. इसके बाद से यह व्रत विधिपूर्वक किया जाने लगा.

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