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छठ पूजा 2022ः आज से होगी 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत, छठ के दूसरे दिन जानें खरना की पूरी विधि

देश में खासतौर से बिहार, यूपी, झारखंड में छठ महापर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. चार दिनों तक चलने वाले छठ व्रत (Chhath Puja 2022) की शुरूआत कल यानी शुक्रवार से नहाय खाय के साथ हो गई है. आज छठ महापर्व का दूसरा दिन है. इस दिन को खरना के नाम से जाना जाता है.

छठ के दूसरे दिन खरना
छठ के दूसरे दिन खरना

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Published : Oct 29, 2022, 12:00 AM IST

पटना: लोक आस्था के महापर्व छठ (chhath puja 2022) को लेकर बिहार समेत उत्तर भारत में उत्साह का माहौल है. आज से इस चार दिवसीय पर्व का दूसरा दिन है. दूसरे दिन को खरना व्रत (Second Day Kharna Of Chhath Puja) के नाम से जाना जाता है. छठ का त्योहार व्रतियां 36 घंटों का निर्जला व्रत रखकर मनाती हैं और खरना से ही व्रतियों का निर्जला व्रत शुरू होता है. छठ पूजा हर साल का​र्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है. इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्‍ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है. इस बार छठ पूजा 28 अक्टूबर को नहाय-खाय शरू हो चुकी है.

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छठ का दूसरा दिन खरना:खरना का तात्पर्य शुद्धिकरण से है. छठ का व्रत करने वाले व्रती नहाय-खाय के दौरान पूरा दिन उपवास रखकर केवल एक ही समय भोजन ग्रहण करती है. ताकि शरीर से लेकर मन तक की शुद्धि हो सके. इसकी पूर्णता अगले दिन यानी खरना वाले दिन होती है. इस दिन व्रती साफ मन से अपने कुलदेवता और छठी माई की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) चढ़ाती हैं. आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है. प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है.

खरना का प्रसाद

खरना का विधि-विधानः खरना वाले दिन विधि-विधान से रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार करना चाहिए. खीर के अलावा पूजा के प्रसाद में केला, मूली भी रखना लाभकारी माना जाता है. इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी को जलाकर प्रसाद तैयार करना शुभ माना जाता है. भगवान गणेश और सूर्यनारायण प्रसाद के रुप में तैयार प्रसाद को चढ़ाया जाता है. इस दिन प्रसाद के लिए छठ व्रतिया किसी को बुलाएं नहीं, बल्कि खुद घर-घर जाकर प्रसाद पहुंचाए. खरना और छठ पर्व के दौरान घर के सदस्यों को मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. रात को भी घर के सदस्य छना हुआ खाना ही खाएं. व्रत रखने वाली महिला या पुरुष को जमीन पर सोना चाहिए.

छठ के दूसरे दिन खरना प्रसाद के साथ छठ व्रती

लोहंडा और खरना समयः

29 अक्टूबर, दिन शनिवार
सूर्योदय: प्रात: 06 बजकर 31 मिनट पर
सूर्योस्त: शाम 05 बजकर 38 मिनट पर

शुभ समय
रवि योग: सुबह 06 बजकर 31 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक
सुकर्मा योग: रात 10 बजकर 23 मिनट से अगली सुबह तक

निर्जला व्रत बनाता है कठिनःखरना कार्तिक शुक्ल कीपंचमी को होता है. 36 घंटे निर्जला रहने वाले छठ व्रतियों को यह व्रत कठिन नहीं बल्कि आसान लगता है. व्रत करने वाला व्यक्ति यानी छठव्रती व्रत पूरा होने तक जमीन पर ही सोते हैं. नहाय खाय के दिन बनने वाले भोजन को बनाने के दौरान भी कई खास बातों का ध्यान रखना होता है. जो खाना इस दिन बनाया जाता है उसे रसोई के चूल्हे पर नहीं बल्कि लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है. इस चूल्हे में केवल आम की लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जाता है. इस दिन तमाम नियमों का पालन करते हुए भोजन बनाकर सबसे पहले सूर्य देव को भोग लगाया जाता है. उसके बाद छठ व्रती भोजन ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही परिवार के दूसरे सदस्य भोजन कर सकते हैं.

छठ पूजा में इस्तेमाल होने वाली समाग्रीःछठ पूजा में नई साड़ी, बांस की बनी हुए बड़ी-बड़ी टोकरियां, पीतल या बास का सूप, दूध, जल, लोटा, शाली, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुथना, सुपारी, मिठाई, दिया आदि समानों की जरुरत होती है. दरअसल सूर्य देव को छठ के दिन इस मौसम में मिलने वाली सभी फल और सब्जी अर्पण किए जाते हैं. छठ पूजा की शुरूआत नहाय खाय (28 अक्टूबर शुक्रवार) से हुई है. अब दूसरा दिन यानी आज खरना (29 अक्टूबर शनिवार) को है. तीसरे दिन- अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य (30 अक्टूबर रविवार) को होगा और आखिरी दिन व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य (31 अक्टूबर सोमवार) दिया जाएगा.

क्या है छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा? एक पौराणिक कथा के मुताबिक, प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. दोनों के कोई संतान नहीं थी. इस वजह से दोनों दुःखी रहते थे. एक दिन महर्षि कश्यप ने राजा प्रियव्रत से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा. महर्षि की आज्ञा मानते हुए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके बाद रानी ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह बच्चा मृत पैदा हुआ. इस बात से राजा और दुखी हो गए. उसी दौरान आसमान से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं. राजा के प्रार्थना करने पर उन्होंने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी हूं. मैं संसार के सभी लोगों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं. तभी देवी ने मृत शिशु को आशीर्वाद देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह पुन: जीवित हो गया. देवी की इस कृपा से राजा बेहद खुश हुए और षष्ठी देवी की आराधना की. इसके बाद से ही इस पूजा का प्रसार हो गया.

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