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दूसरे अर्घ्य के साथ ही छठ महापर्व का समापन, जानें व्रतियों के पारण करने की विधि

छठ के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठी माई (Second Arghaya of Chhath Puja) की पूजा के बाद परवैतिन पारण करके अपने 36 घंटे का उपवास खत्म करती हैं. इसके बाद ये महापर्व सम्पन्न हो जाता है. इस खबर में जानें पारण करने की विधि और इसका महत्व-

दूसरे अर्घ्य के साथ ही छठ महापर्व का समापन
दूसरे अर्घ्य के साथ ही छठ महापर्व का समापन

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Published : Oct 31, 2022, 6:32 AM IST

Updated : Oct 31, 2022, 6:45 AM IST

पटनाः सूर्य नौ ग्रहों के राजा हैं और सिंह राशि के स्वामी हैं. सूर्य देव शनि, यमराज और यमुना नदी के पिता हैं. सूर्य देव को मान-सम्मान का कारक ग्रह माना गया है. छठ के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठी माई (Chhath Puja 2022) की पूजा करते हैं और पारण के बाद ये महापर्व सम्पन्न हो जाता है.

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घाट पर अर्घ्य देकर घर को लौटते हैं व्रती: चौथे दिन सूर्य उदय होने से पहले ही परवैतिन और परिवार के लोग दउरा लेकर घाट के लिए निकल पड़ते हैं. इस पर्व में गीतों का खास महत्व होता है. छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक छठ गीत गूंजते रहते हैं. परवैतिन जब घाट की ओर जाती हैं, तब भी वे छठी माई की गीत गाती हैं. घाट पहुंचने के बाद परवैतिन शाम की तरह ही कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य के उगने का इंतजार करती हैं. उगते हुए सूर्य को सूप में रखकर प्रसाद अर्पित करते हैं और सूप को तीन बार जल से स्पर्श करवाते हैं. परिवार के लोग गाय के कच्चे दूध का अर्घ्य देते हैं. उगते सूर्य को अर्घ्य देकर परवैतिन घर को लौटते हैं.

छठ घाट पर होता है प्रसाद का वितरण: घर लौटने से पहले परवैतिन घाट के पास छठ माई की कथा सुनते हैं और पानी में भिगोये हुए केराव को प्रसाद के तौर पर बांटते हैं. पूजा होने के बाद छठ घाट पर लोगों को प्रसाद बांटने की भी परंपरा है. प्रसाद का अर्थ होता है दूसरे का आशीर्वाद लेने की प्रक्रिया. प्रसाद ग्रहण करने से अंतःकरण के तमाम विकार खत्म हो जाते हैं.

भोजन के बाद खत्म करते हैं 36 घंटे का व्रत: छठ में पारण कब करें? तो छठ घाट से लौटने के बाद साफ-सफाई के साथ भोजन बनाया जाता है. इस भोजन को खाकर परवैतिन अपना व्रत खत्म करती हैं, जिसे पारण कहा जाता है. थोड़ा सा प्रसाद खाकर भी व्रत खोला जा सकता है. इस तरह 36 घंटों के उपवास के बाद परवैतिन का व्रत पूरा होता है. सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस महापर्व पर लोगों की आस्था इतनी गहरी होती जा रही है कि दूसरे धर्म, भाषा और राज्य के लोग भी इसे करने लगे हैं.

Last Updated : Oct 31, 2022, 6:45 AM IST

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