पटना:वैशाख माह की शुरुआत 7 अप्रैल से हो गई है. हिंदू पंचांग के अनुसार 15 दिन कृष्ण पक्ष और 15 दिन शुक्ल पक्ष होता है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी है और बैसाख संकष्टी चतुर्थी का व्रत 9 अप्रैल यानी आज (sankashti chaturthi today) रविवार को है.आचार्य मनोज मिश्रा का मानना है कि इस दिन भद्रा के साथ साथ सिद्धि योग भी है. आज 9 अप्रैल को सुबह 9:35 बजे से वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि शुरू हो जाएगी और यह 10 अप्रैल को सुबह 8:30 तक मान्य होगी.
ये भी पढ़ेंः मंगलवार को संकष्ठी चतुर्थी, सुख-शांति के लिए इन मंत्रों से करें विघ्नहर्ता की पूजा
सुबह से रखा जाएगा व्रतः वैशाख संकष्टी चतुर्थी व्रत आज रखा जाएगा. सुबह 10:40 से लेकर के 12:30 तक सर्वोत्तम मुहूर्त रहेगा. इस मुहूर्त में भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी. आचार्य मनोज मिश्रा का कहना है कि भगवान गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हैं. सभी पूजन के समय में सबसे पहले गणेश भगवान की पूजा की जाती है. उसके बाद ही किसी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जो भक्त संकष्टी चतुर्थी पर विधि विधान से पूजा पाठ करेंगे. उनकी मनोकामना पूर्ण होगी.
"भगवान गणेश सभी देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय हैं. सभी पूजन के समय में सबसे पहले गणेश भगवान की पूजा की जाती है. उसके बाद ही किसी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जो भक्त संकष्टी चतुर्थी पर विधि विधान से पूजा पाठ करेंगे. उनकी मनोकामना पूर्ण होगी" - आचार्य मनोज मिश्रा
पीले रंग के कपड़ें पर भगवान गणेश की मूर्ति रखकर होती है पूजाः मनोज मिश्रा ने बताया कि भक्तों को सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके वस्त्र धारण करना चाहिए. भगवान गणेश की बिछावन चौकी लगाकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उसपर गणेश भगवान की मूर्ति रख के पूजा करें. भगवान गणेश को अक्षत, फूल, कसेली के साथ दूब भी चढ़ाना चाहिए और भगवान गणेश की वंदना कर पूजा करके व्रत संकल्प करें, और जो भक्तों पूजा करें उनको ऊं गं गणपतये नमः मंत्र कम से कम 101 बार जाप करते हुए भगवान गणेश की प्रार्थना करें. इससे रोग दोष से मुक्ति मिलेगी.शाम के समय में भी शुभ मुहूर्त है. 6 बजकर 10 मिनट से लेकर रात्रि 8:20 तक भगवान गणेश की पूजा अर्चना कर चंदन रोली मिश्रित दूध लड्डू चढ़ाकर भगवान गणेश की पूजा करे. अन्य का दान करें.
शाम में चंद्रमा को दिया जाता है अर्घ्य: पूजा अर्चना के बाद चंद्रमा को भी अर्घ्य देने का महत्व है. गणेश वंदना के साथ आरती भी करनी चाहिए. उसके बाद ही भक्तों को पारण करना चाहिए . आचार्य ने बताया कि संकट को हरने वाली चतुर्थी की संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. संस्कृत भाषा में संकष्टी शब्द का अर्थ होता है कठिन समय से मुक्ति पाना. अगर किसी प्रकार का दुख हो, घर में क्लेश हो तो संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा अर्चना कर रोग संकट विध्न से मुक्ति पाया जा सकता है.