पटनाः 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'. ऐतिहासिक संपूर्ण क्रांति से प्रभावित हो कर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने ये नारा दिया था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आज ही के दिन यानि 5 जून 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान से पहली बार संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था. यहीं से शुरू हुई थी संपूर्ण क्रांति की लहर. आज इसके 46 साल पूरे हो गए. सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में आई विसंगतियों को दूर करने के लिए शुरू की गई इस क्रांति ने युवाओं में जोश भर दिया था.
5 जून 1974 को पहली बार जेपी गांधी मैदान पहुंचे और यहां छात्रों के साथ पहली बैठक की, लाखों का मजमा था. आज ही के दिन जेपी ने गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति का अह्वान किया और अपना ऐतिहासिक भाषण दिया. लोकनायक के आह्वान पर मैदान में जमा युवाओं ने जनेऊ तोड़ दिये. पहली बार जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया. जेपी ने कहा- ये क्रांति सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं है बल्कि पूरी व्यवस्था में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने का एक माध्यम है.
गांधी मैदान में रैली के दौरान जेपी तत्कालीन व्यवस्था के खिलाफ था आंदोलन
भारतीय इतिहास में यह क्रांति एक अहम मोकाम रखती है. राजनीतिक विचारक जय प्रकाश नारायण ने छात्रों के बीच तत्कालीन व्यवस्था और सरकार के खिलाफ आंदोलन की ऐसी मशान जलाई कि उसकी चिंगारी पूरे देश में फैल गई. जेपी ने संपूर्ण क्रांति की विचारधारा से छात्र आंदोलन को एक जन आंदोलन में बदल दिया. अपने ही देश की सरकारी व्यवस्था के खिलाफ शुरू किया गया यह पहला अनोखा आंदोलन था जिसे देश और दुनिया ने हाथों हाथ लिया.
जयप्रकाश नारायण, (फाइल फोटो) हिल गई थी इंदिरा गांधी की सत्ता
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और राजनेता जयप्रकाश नारायण को देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध के लिए जाना जाता है. कहा जाता है कि उनके आंदोलन की वजह से इंदिरा गांधी के हाथ से सत्ता तक छिन गई थी. दरअसल ये 1970 का वक्त था. जब देश महंगाई से लेकर कई बुनियादी असुविधाओं से जूझ रहा था. लोग तानाशाह इंदिरा गांधी से परेशान थे. जिसके बाद इंदिरा गांधी के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन चलाया. बाद में 5 जून 1974 को ये आंदोलन संपूर्ण क्रांति में बदल गया.
इंदिरा गांधी से मांग लिया इस्तीफा
जब जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी. जयप्रकाश की निगाह में इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में इंदिरा गांधी पर चुनाव में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया. जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग कर दी. जेपी का कहना था इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा. आनन-फानन में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी. उन दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था- 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'
विनोबा भावे के साथ जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति ने दिए देश को कई नेता
इस आंदोलन के नायक जयप्रकाश नारायण ऐसे शख्स के रूप में उभरे, जिन्होंने पूरे देश में आंदोलन की लौ जलाई. जेपी के विचार दर्शन और व्यक्तित्व ने पूरे जनमानस को प्रभावित किया. यह आंदोलन राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए था. जयप्रकाश नारायण की एक हुंकार पर युवा उठ खड़े हुए. जेपी घर-घर में क्रांति के पर्याय बन गए. यहां तक कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, लालमुनि चौबे, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, सुशील मोदी ये सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे. ये तो महज कुछ नाम भर हैं. संपूर्ण क्रांति से निकले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है.
पत्नी के साथ जयप्रकाश नारायण बिहार में आंदोलन का प्रभाव
संपूर्ण क्रांति की शुरूआत के बाद पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कई बड़ी रैलियां की. एक बार कर्फ्यू के बीच जयप्रकाश की सभा में लाखों लोग उमड़े. पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. एक लाठी जेपी को भी लगी. हालांकि नानाजी देशमुख ने लाठी का वार अपने हाथ पर ले लिया. लेकिन लाठी के उस प्रहार ने केंद्र की कुर्सी से इंदिरा गांधी को उतार दिया.
गोपालदास नीरज ने लिखा- 'लाठी जो जयप्रकाश पर बरसी बिहार में... लाठी वो हर शहीद के सीने पे पड़ी है... तुमको भले लगे ना लगे और बात है... कालीख बनके देश के माथे पर लगी है....'
विनोबा भावे के साथ जयप्रकाश नारायण राजनीति में आया बड़ा बदलाव
संपूर्ण क्रांति का असर इतना हुआ कि इसके दमन के लिए देश में लगाया गया आपातकाल जनवरी 1977 को हटा लिया गया. लोकनायक के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के चलते पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनी. आंदोलन का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देशों पर पड़ा. सन 1977 में ऐसा माहौल था, जब जनता आगे थी और नेता पीछे थे. ये जेपी का ही करिश्माई नेतृत्व का प्रभाव था.
पत्नी के साथ जयप्रकाश नारायण जेपी की राजनीतिक विचारधारा से प्रेरणा
जेपी सच्चाई तथा न्याय के लिए पूरे साहस के साथ जूझते रहे. उनके नेतृत्व में किए गए संपूर्ण क्रांति को जनता का उत्साह भरा समर्थन मिला. जेपी ने देश की दबी-कुचली जनता के लिए अनवरत संघर्ष किया. उन्होंने अजादी की लड़ाई से पहले महात्मा गांधी के साथ सत्याग्रह आंदोलन में भी बढ़-चढ़ हिस्सा लिया. भू- दान आंदोलन में विनोबा भावे के साथ दिया. बता दें कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के छोटे से गांव सिताबदियारा में हुआ था. जयप्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे. अपने गांव के हर जन के हृदय में आज भी जेपी बसे हुए हैं. पहाड़ियों के तलहट्टी में बसा सोखोदेवरा गांव जेपी के स्मृतियों का प्रमुख केंद बना हुआ है.
जेपी की मृत्यु 8 अक्टूबर 1979 को पटना में हुई. मृत्यु के बाद आज भी उनकी राजनीतिक विचारधारा भारत के लोगों को प्रेरित करती है. जेपी ने युवा शक्ति को एक नयी दिशा दी. आज भी उनके विचार लोगों के लिए प्रेरणादयक है, जिससे उनके सपनों के भारत का निर्माण किया जा सके.