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Bihar Politics : MY समीकरण से आगे बढ़ने की फिराक में राजद, JDU के वोट बैंक पर तिरछी नजर!

राजनीति में जाति का गणित अहम होता है. चुनाव के वक्त विकास पर नहीं बल्कि जातिगत समीकरण हर चीज पर भारी पड़ जाता है. बिहार की राजनीति में सबसे अहम भूमिका पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय से आने वाली जातियों की है. सत्ता के गलियारे में यह बात भी कहा जाता है कि अति पिछड़े वोट बैंक के दम पर ही नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से राज कर रहे हैं. अब राजद भी इस वोट वैंक पर नजर गड़ाये हुए है. पढ़ें, पूरी खबर.

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Published : Jul 26, 2023, 7:50 PM IST

नया समीकरण बनाने की तैयारी में राजद.

पटना: लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव में अभी वक्त है. ऐसा लग रहा है कि राज्य के राजनीतिक दल अभी से ही गोलबंदी में जुट गए हैं. बुधवार को राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनता दल ने अति पिछड़ा वर्ग का एक दिवसीय सम्मेलन किया. पार्टी के प्रदेश कार्यालय में आयोजित इस सम्मेलन में राष्ट्रीय जनता दल के तमाम बड़े नेता शामिल हुए. राजनीतिक विश्लेषक इसे जदयू के वोट बैंक में सेंध लगाने की राजद की कोशिश बता रहे हैं. हालांकि राजद इसे निराधार बता रहा है.

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"लालू प्रसाद ने हर वर्ग का ख्याल रखा था. अत्यंत पिछड़े वर्ग के लोग आज देश में हाशिए पर हैं. बिहार ने अत्यंत पिछड़ों को आगे बढ़ाने में लगातार कोशिश की. राष्ट्रीय जनता दल ने संगठन में ही अत्यंत पिछड़ों के लिए सीटें आरक्षित की हुई है ताकि वह राजनीतिक रूप से सजग हो. हमारी पार्टी ए टू जेड का ख्याल करती है."- शक्ति सिंह यादव, राजद प्रवक्ता

बिहार में जातीय समीकरण का बनना नई बात नहींः बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण का बनना नई बात नहीं है. राष्ट्रीय जनता दल ने एमवाई समीकरण के सहारे प्रदेश में 15 साल तक राज किया इसके बाद सीएम नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण को बनाया इसी समीकरण के सहारे नीतीश कुमार दो दशक से सत्ता का सुख भोग रहे हैं. पिछले कुछ महीने में राष्ट्रीय जनता दल ने छोटे-छोटे पॉकेट्स को भरने की तरफ ध्यान दिया है. पार्टी ने कुछ दिन पहले साहू सम्मेलन का आयोजन किया था. उसके बाद राष्ट्रीय जनता दल की तरफ से आदिवासी सम्मेलन का भी आयोजन किया गया था. अब अति पिछड़ा समाज की बैठक का आयोजन करके पार्टी ने राज्य के मतदाताओं के बीच एक मजबूत संदेश देने की कोशिश की है.

कमजोर को मुख्य धारा में लाने की कोशिशः पार्टी की तरफ से कराए गए इस आयोजन के बारे में राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं, शैक्षणिक और राजनीतिक और सामाजिक रूप से जो कमजोर है उनको मुख्यधारा में लाने के लिए निरंतर कोशिश होती है. यही हमारे नेता लालू प्रसाद का समाजिक न्याय भी है. हमारी पार्टी हमेशा उनके उनको आगे बढ़ाने की बात करती है. हम केवल वोट की बात नहीं करते हैं. जाति आधारित गणना हम लोग क्यों कराना चाहते हैं, ताकि यह पता चल जाए कि गरीबी और लाचारी किस जाति में है. हर वर्ग को राजनीति की मुख्यधारा में और शैक्षणिक रूप से सशक्त और मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास किया जाता है.

वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में सभी दलः वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक मनोज पाठक कहते हैं बिहार में अति पिछड़ों का वोट सभी दलों के लिए आवश्यक है. अभी तक यही माना जा रहा था अति पिछड़ों का वोट बैंक जदयू की तरफ है. लेकिन राष्ट्रीय जनता दल ने अति पिछड़ों की बैठक को करा कर साफ संकेत दे दिया है कि वह अब एमवाई समीकरण से आगे बढ़ने की फिराक में है. ऐसे में वह जदयू के अति पिछड़े के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है. सभी दल एक दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर राष्ट्रीय जनता दल का समीकरण एम वाई है तो इसमें बीजेपी मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए जुड़ी हुई है.

क्या है बिहार का समीकरणः राज्य में मुस्लिम और यादव की आबादी करीब 30% है. ऐसा माना जाता है कि इनकी सहानुभूति राष्ट्रीय जनता दल से है. आरजेडी की सबसे बड़ी ताकत मुस्लिम यादव समीकरण है. करीब 20% ऊंची जातियां हैं. जिनमें राजपूत सबसे ज्यादा है. इसके अलावा ब्राह्मण और भूमिहार की भी अच्छी खासी तादाद है. वही मुस्लिम और दलित समुदाय की आबादी करीब करीब 15% है. यादवों की संख्या करीब 14% है. राज्य में करीब 26% ओबीसी और 26% इबीसी का वोट बैंक है. ओबीसी में 8% कुशवाहा और 4% कुर्मी वोटर हैं, जबकि करीब 16% दलितों का वोट है, इनमें 5% के करीब पासवान है. अन्य में महादलित जातियां जिनमें पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुशहर और डोम है. इनका करीब 11% वोट बैंक है.


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