पटना:बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) के दौरान बागी नेताओं ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की परेशानी बढ़ा दी थी. बीजेपी और जेडीयू ने बागी नेताओं पर जमकर कार्रवाई का डंडा भी चलाया था, लेकिन अब बदले राजनीतिक परिदृश्य में जेडीयू (JDU) के बाद बीजेपी (BJP) की रणनीति में भी बड़ा बदलाव हुआ है.
ये भी पढ़ें-टुन्ना पर निलंबन की कार्रवाई 'मजबूरी' या 'गठबंधन धर्म', क्या कहती है शीर्ष नेताओं की 'चुप्पी' ?
2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान बागियों की बगावत ने एनडीए को काफी नुकसान पहुंचाया था. सरकार तो बन गई, लेकिन सीट उम्मीद से काफी कम आई. बीजेपी के कई नेता आखिरी वक्त में पाला बदलकर एलजेपी में चले गए. जिस वजह से जेडीयू महज 43 सीटों पर सिमट गई.
दरअसल विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीयू ने बीजेपी की कई सीटिंग सीटों पर दावेदारी जता दी थी. नतीजा ये हुआ था कि बेटिकट हुए बीजेपी नेताओं ने बगावत कर दी. इनमें से ज्यादातर ने चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी से चुनाव लड़ा. जीत तो किसी की नहीं हुई, लेकिन लगभग हर सीट पर जेडीयू का खेल खराब कर दिया.
बीजेपी के तत्कालीन प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह, नोखा के पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया और पूर्व विधायक उषा विद्यार्थी, पूर्व विधायक रविंद्र यादव समेत 52 नेता बगावत पर उतर गए. इन तमाम नेताओं पर बीजेपी ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी.
वहीं, जेडीयू कोटे से भी कुछ नेताओं ने बगावत कर चुनाव लड़ने का फैसला लिया था. जेडीयू में बागी नेताओं की तादाद बीजेपी के मुकाबले कम थी. इनमें से एक गोपालगंज के बैकुंठपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व मंजीत सिंह भी हैं. मंजीत के निर्दलीय मैदान में उतरने के कारण उस सीट पर बीजेपी के सीटिंग विधायक और प्रदेश उपाध्यक्ष मिथिलेश तिवारी चुनाव हार गए.