पटनाःबिहार में दलित राजनीति (Dalit Politics) की दशा और दिशा बदल गई है. दलित सियासत को धार देने वाले नेताओं की भी कमी स्पष्ट तौर पर दिख रही है. बिहार की सियासत (Politics In Bihar) की मुख्य धारा में दलित राजनीति करने वाले नेता भी अलग-अलग जातियों और दलों में बंट चुके हैं और नेतृत्व के संकट से दलित राजनीति भंवर में है.
इसे भी पढ़ें- जेपी की राह पर चलकर तेज प्रताप चाहते हैं लालू जैसी कामयाबी.. लेकिन अब ये आसान नहीं !
बिहार देश का ऐसा राज्य है जिसने पहला दलित उप प्रधानमंत्री दिया. बिहार के भोजपुर जिले के चंदवा गांव के बाबू जगजीवन राम जनता सरकार में पहले दलित उप प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए थे. बिहार की बात करें तो यहां भोला पासवान शास्त्री पहले दलित मुख्यमंत्री बने. 16 प्रतिशत दलित आबादी वाले राज्य में कई बड़े नेता हुए.
1960 के दशक में भोला पासवान शास्त्री पहले दलित मुख्यमंत्री चुने गए थे, वहीं 1977 में बाबू जगजीवन राम को देश के पहले दलित उप प्रधानमंत्री बनने का गौरव मिला था. इनके बाद रामविलास पासवान बड़े दलित नेता के रूप में उभरे और लंबे समय तक केंद्र में मंत्री रहे.
बिहार में दलितों की आबादी 1 करोड़ 65 लाख के आसपास है. दलितों के लिए 38 विधानसभा सीट सुरक्षित है. जब बिहार झारखंड एक था तब सुरक्षित सीटें 48 हुआ करती थी. परिसीमन से पहले 40 सुरक्षित सीट हुआ करती थीं, लेकिन इसके बाद यह घटकर 38 हो गई. मौजूदा वक्त में दलित नेता तो हैं, लेकिन उन्होंने राजनीति को जातियों में बांट दिए हैं. आलम ये है कि दलित राजनीति संकट के दौर से गुजर रही है.
रामविलास पासवान और जीतनराम मांझी की दलित राजनीति को आगे बढ़ाने को लेकर चुनौतियां काफी है. एक तरफ रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत अब दो धड़ों में बंट गई है. उनके बेटे चिराग पासवान और उनके भाई पशुपति कुमार पारस के बीच लड़ाई ने दलित राजनीति को कमजोर किया है. इधर, मुख्यमंत्री रह चुके जीतनराम मांझी दलितों की आवाज को बुलंद करने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन एनडीए गठबंधन उनके लिए लक्ष्मण रेखा साबित होती है.
इसे भी पढ़ें- कांग्रेस के कुनबे में लगी है कलह की आग, कांग्रेसी अपनी ढफली पर गा रहे अपना-अपना राग
2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 38 दलित विधायक चुनाव जीतकर आए. जिसमें पासवान जाति से 13, रविदास जाति से 13, मुसहर समाज से 7, पासी जाति के 3 और एक विधायक मेहतर जाति के शामिल हैं. दलगत आधार पर अगर ये बातें की जाए तो बीजेपी और आरजेडी के 9-9 विधायक दलित हैं. वहीं, जेडीयू के 8, कांग्रेस के 4, हम पार्टी के 3, सीपीआई (एमएल) के 3 और वीआईपी-सीपीआई के एक-एक दलित विधायक हैं.