पटना:मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar ) के गृह जिले नालंदा के रहने वाले यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी आरसीपी सिंह यानी राम चंद्र प्रसाद सिंह( Ram Chandra Prasad Singh ) अभी जनता दल यूनाइटेड ( JDU ) के कप्तान हैं. और अब आरसीपी सिंह ( RCP Singh ) केंद्र में मंत्री बन गए हैं. वे नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाते हैं. साल 1998 से ही वे सीएम से जुड़े हुए हैं. पहले कुशल प्रशासनिक अधिकारी के बाद अब वे कुशल राजनीतिज्ञ भी अब बन चुके हैं.
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नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह की जोड़ी 2 दशक से अधिक पुरानी है. वे नीतीश कुमार के सबसे विश्वसनीय भी माने जाते हैं. आरसीपी सिंह वर्ष 1998 से नीतीश कुमार के साथ हैं. भारतीय प्रशासनिक सेवा के यूपी कैडर के अधिकारी आरसीपी सिंह 1996 में केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा के निजी सचिव थे. नीतीश कुमार जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री बने, तब से आरसीपी सिंह साथ हैं. नीतीश ने लंबे समय तक उन्हें प्रधान सचिव बनाया और फिर राज्यसभा भी भेजा. बाद में जेडीयू में महत्वपूर्ण जिम्मेवारी भी दी.
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से पहले आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) का कामकाज देखते थे. आरसीपी सिंह का संगठन में प्रशिक्षण पर सबसे ज्यादा जोर रहता है. जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा का भी कहना है कि आरसीपी सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पार्टी का संगठन काफी मजबूत हुआ है.
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है आरसीपी सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो जाएं कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि उन्होंने खुद ही इच्छा जताई है और नीतीश कुमार भी चाहते हैं. आरसीपी सिंह कुशल प्रशासक रहे हैं और नीतीश कुमार के साथ लंबे समय तक राजनीति में रहने के कारण अब चतुर राजनीतिज्ञ भी बन चुके हैं. अजय झा का कहना है कि नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद पार्टी में आरसीपी सिंह माने जाते हैं और आज जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद दूसरा स्थान आरसीपी सिंह का ही है.
आरसीपी सिंह का जन्म 6 जुलाई 1958 को नालंदा जिले के मुस्तफापुर में हुआ था. उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई नालंदा जिले के हुसैनपुर से की, जबकि पटना साइंस कॉलेज से स्नातक (इतिहास में ऑनर्स) की डिग्री और जेएनयू से उच्च शिक्षा ग्रहण की. आरसीपी ने साल 1983 में गिरिजा देवी से शादी की थी. 1984 में आरसीपी सिंह ने यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल की. 1998 में जब नीतीश कुमार केंद्र में रेल मंत्री बने, तब आरसीपी सिंह को उन्होंने अपना विशेष सचिव बनाया. नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो आरसीपी सिंह को मुख्यमंत्री सचिवालय में प्रधान सचिव बनाया. बाद में आरसीपी सिंह ने 2010 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. बिहार विधान सभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी आरसीपी सिंह को सौंपी, इससे पहले वे पार्टी के महासचिव थे. आरसीपी सिंह की दो बेटियां हैं. उनकी बड़ी बेटी लिपि सिंह 2016 बैच की आईपीएस अधिकारी हैंं.
आरसीपी सिंह की नीतीश कुमार के साथ नजदीकियों के कारण मुख्य विपक्षी दल आरजेडी की तरफ से कई बार गंभीर आरोप भी लगाए जाते रहे हैं. आरजेडी ने भ्रष्टाचार से लेकर कई तरह के आरोप उन पर लगाए हैं. ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर योजनाओं में लेन-देन का भी आरोप लगाया जाता रहा है. आरजेडी की तरफ से 'आरसीपी टैक्स' की चर्चा भी खूब होती रही है. हालांकि आरसीपी सिंह का कहना है कि विपक्षी दलों के आरोपों से उन्हें कभी गुस्सा नहीं आता है, क्योंकि गुस्सा आने पर बीपी बढ़ जाएगा और कई तरह की परेशानियां होंगी.
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नीतीश कुमार के विश्वासपात्र होने के कारण दल के अंदर आरसीपी सिंह को लेकर नेताओं में कई बार नाराजगी भी देखने को मिली है. नीतीश कुमार ने जब प्रशांत किशोर को पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था और दो नंबर की कुर्सी दी थी तो आरसीपी सिंह नाराज भी हो गए थे. वहीं, प्रशांत किशोर के जेडीयू से अलग होने का बड़ा कारण आरसीपी सिंह ही माने जाते हैं. नीतीश कुमार जब बीजेपी से अलग हुए थे और 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले उम्मीदवार उतारा था. उस समय आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार को बेहतर रिजल्ट मिलने का भरोसा दिलाया था, लेकिन सफलता नहीं मिली और पार्टी केवल दो सीट ही जीत पाई थी.
आरसीपी सिंह वैसे एनडीए के हमेशा से पक्षधर माने जाते रहे हैं. बीजेपी नेताओं के साथ भी उनके अच्छे संबंध हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा पहले भी हुई, लेकिन शुरू में जेडीयू को केवल एक मंत्री पद दिया जा रहा था, जिसे नीतीश कुमार ने अस्वीकार कर दिया. हालांकि कहा जाता है आरसीपी सिंह ने एक मंत्री पद स्वीकार कर लिया था और मंत्री बनने की उनकी पूरी तैयारी थी, लेकिन नीतीश कुमार की मनाही के बाद मंत्री बनने की उनकी चाहत उस समय पूरी नहीं हुई थी.