पटना:पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने जीवित रहते हुए ही अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्रचिराग पासवान(Chirag Paswan) को सौंपी थी, लेकिन उनके निधन का एक साल भी नहीं बीता कि चिराग की सियासी कश्ती मझधार में आ गई.
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रामविलास पासवान की ताकत परिवार की एकजुटता थी, लेकिन उनके गुजर जाने के बाद चिराग पासवान अपने परिवार को एकजुट नहीं रख सके. नतीजा ये हुआ कि चाचा पशुपति पारस (Pashupati Paras) और चचेरे भाई प्रिंस राज (Prince Raj) ने अलग राह अख्तियार कर लिया और पार्टी में भी फूट हो गई.
परिवार संभालने में असफल रहे चिराग पार्टी भी नहीं संभाल पाए. छह में से 5 सांसदों ने उनका साथ छोड़ दिया. बिहार में एकमात्र विधायक भी जेडीयू के साथ चले गए. इतना ही नहीं बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशियों ने भी 'बंगला' खाली कर दिया. आज की तारीख में बंगले पर भी चिराग का दावा विवादों में है.
दरअसल नीतीश कुमार के साथ विधानसभा चुनाव के दौरान अदावत चिराग को महंगी पड़ी है. सरकार बनाने के बाद नीतीश ने चिराग पासवान की राजनीति को नेपथ्य में पहुंचाने के लिए चालें चलनी शुरू कर दी. पहले चाचा पारस को चिराग से अलग किया और फिर उन्हें मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाने में भी कामयाब रहे.
इस बीच अब चिराग को दिल्ली का सरकारी बंगला भी गंवाना पड़ा है. इधर राजधानी पटना स्थित एलजेपी के प्रदेश कार्यालय से भी बेदखल होना पड़ा है, क्योंकि दफ्तर पर पशुपति पारस ने कब्जा जमा लिया है.