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बिहार चुनाव 2020: चुनावी वादों में बेरोजगारों को रोजगार का 'झुनझुना'

क्या बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार बेरोजगारी मुख्य चुनावी मुद्दा बनने जा रही है? क्या जातिवाद के महासागर में यह संभव है? दरअसल, ये सवाल इसलिए क्योंकि राज्य की तीन मुख्य पार्टियां बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी ने युवाओं को नौकरी और बेरोजगारी के आसपास अपनी चुनावी रणनीति बुननी शुरू कर दी है.

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Published : Sep 29, 2020, 1:05 PM IST

पटना: बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के जरिए राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है. सभी दल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं.

इसी क्रम में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही बिहार में सत्तारूढ़ जेडीयू के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी वादों की झोली लेकर लोगों के सामने पहुंच गए. वहीं मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव भी वादों को पूरी पोटली खोल दी. दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है. बता दें कि दोनों दल 15-15 साल बिहार की सत्ता पर काबिज रह चुके हैं.

नीतीश कुमार : 'युवा शक्ति बिहार की प्रगति'
चुनावी की तारीखों की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से वादों की बौछार कर दी. मुख्यमंत्री ने जहां सत्ता में लौटने के बाद सात निश्चय पार्ट-2 के तहत काम करने का वादा किया, वहीं 'युवा शक्ति बिहार की प्रगति' के तहत युवाओं को नौकरी मिल सके इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करने का वादा किया.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

उन्होंने कौशल विकास योजना पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने और प्रत्येक जिले में मेगा स्किल सेंटर बनाने के साथ ही स्किल एवं उद्यमिता के लिए एक नया विभाग भी बनाने का वादा किया. मुख्यमंत्री ने युवाओं को रिझाने के लिए उद्यमिता के लिए इस बार हर किसी को मदद देने का आश्वासन दिया.

तेजस्वी : '10 लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा'
इधर, नीतीश के वादों की लंबी फेहरिस्त के बाद आरजेडी के नेता भी पीछे नहीं रहे. तेजस्वी भी रविवार को पत्रकारों के सामने आए और सत्ता में आने के बाद दो महीने के अंदर ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा कर इस चुनाव में बड़ा दांव चल दिया.

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव

तेजस्वी ने सरकारी विभागों में आंकड़ों के जरिए रिक्त पदों का हवाला देते हुए कहा कि हमारी सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का फैसला किया जाएगा. उन्होंने कहा, 'अगर उनकी पार्टी को यहां के लोग मौका देते हैं तो इन सभी रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाएगी.' उन्होंने कहा कि यह वादा नहीं मजबूत इरादा है.

तेजस्वी सूर्या: 'इन्हें राजनीतिक बेरोजगारी का दर्द'
बेरोजगारी के मुद्दे पर नीतीश कुमार और तेजस्वी के बाद अब बारी बीजेपी की थी. बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभाला भाजयुमो के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या. सोमवार को तेजस्वी सूर्या पटना में युवाओं से संवाद कर रहे थे. इस दौरान भाजयुमो के अध्यक्ष सूर्या ने बिना किसी के नाम लिए हुए कहा, 'महलों की राजनीति करने वाले युवराजों और राजकुमारों को युवाओं के संघर्ष पर बात करने का कोई नैतिक अधिकार भी नहीं है.' उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के आने के बाद बेरोजगार हो चुके समकालीन सामंतों को सिर्फ अपनी राजनैतिक बेरोजगारी का दर्द है, युवाओं की समस्या का नहीं है.

भाजयुमो के अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या

वादों पर सवाल, क्या कहते है जानकार?
यहां दीगर बात है कि तीनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर विरोधी प्रश्न खड़ा कर रहे हैं. एक-दूसरे पर सत्ता में रहने पर काम क्यों नहीं करने को लेकर प्रश्न पूछ रहे हैं. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार कहते हैं कि राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है. यह शुरू से होता आया है.

उन्होंने कहा, 'कोरोना काल में कई प्रवासी मजदूर वापस लौट आए हैं, विपक्ष पिछले कुछ महीने से बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में जुटा है. ऐसे में सत्ता पक्ष के पास भी रोजगार का वादा करना मजबूरी है.' उन्होंने कहा कि दोनों दल 15-15 साल सत्ता में रह चुके हैं, अगर इस मामले को लेकर ईमानदारी से प्रयास किया जाता तो स्थिति बदली रहती. हालांकि, उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि चुनावी घोषणाएं और वादे कितने पूरे होते हैं, ये सभी जानते हैं.

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