पटना: बिहार में जी 20 सम्मेलन की तैयारियां (Preparation for G20 conference in Bihar ) चल रही है. सूबे के आठ ऐतिहासिक स्थल इन दिनों जगमग हो रहे हैं. G20 सम्मेलन से पूर्व तमाम ऐतिहासिक स्थलों को सजाया संवारा जा रहा है. पुरातत्व विभाग ऐतिहासिक स्थलों को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में जुटी है. अगले वर्ष बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी ऐतिहासिक विरासतों को दीदार करने पहुंचेंगे. अगले वर्ष G20 सम्मेलन भारत में आयोजित होना है. सम्मेलन को लेकर केंद्र के स्तर पर तैयारियां की जा रही है. बड़ी संख्या में विदेशी प्रतिनिधि सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचेंगे. विदेशी प्रतिनिधियों के मेहमान नवाजी के लिए सरकार के स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं.
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बिहार के ऐतिहासिक स्थल सज धज कर तैयारः बड़ी संख्या में देश के अंदर ऐतिहासिक विरासत हैं. तमाम ऐतिहासिक विरासतों को सजाया और संवारा जा रहा है. बिहार के आठ ऐतिहासिक स्थलों का चयन किया गया है. पुरातत्व विभाग बिहार के तमाम ऐतिहासिक स्थलों को सजाने और संवारने में जुटी है. लाइटिंग के जरिए ऐतिहासिक स्थलों की खूबसूरती में चार चांद लग गया है. बिहार के जिन ऐतिहासिक स्थलों का चयन किया गया है, उसमें राजगीर के दो ऐतिहासिक स्थल हैं. राजगीर का स्वर्ण भंडार और रक्षा प्राचीर के अलावा नालंदा विश्वविद्यालय, गया का बकरौर स्तूप, केसरिया स्तूप, कोलुहा का अशोक स्तंभ, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और शेरशाह का मकबरा का चयन किया गया है.
राजगीर का रक्षा प्राचीर और स्वर्ण भंडारःराजगीर के रक्षा प्राचीर को चीन के दीवार से भी पुराना और मजबूत माना जाता है. 35 किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण बिना गारा के हुआ था पांच पहाड़ियों से घिरा हुआ रक्षा प्राचीर है रक्षा प्राचीर का निर्माण जरासंध के द्वारा कराया गया था. राजगीर का स्वर्ण भंडार भी अब तक पहेली बनी हुई है. जानकारी के मुताबिक मगध साम्राज्य के शासक जरासंध का खजाना यहीं हुआ करता था. कहा जाता है कि खजाने में कितनी संपत्ति है, यह किसी को पता नहीं है. स्वर्ण भंडार की मजबूती और खूबसूरती को निहारने आज भी लोग आते हैं.
बौद्ध स्तूप और कोलुहा का स्तंभः गया स्थित बकरौर में बौद्ध स्तूप है, जो ऐतिहासिक माना जाता है. यह स्तूप नौवीं शताब्दी का बताया जाता है. केसरिया का स्तूप विश्व का सबसे ऊंचा स्तूप माना जाता है. महात्मा बुद्ध वैशाली आए थे. जब वह यहां से जाने लगे, तब बड़ी संख्या में उनके साथ लोग भी जाने लगे. बुद्ध के समझाने बुझाने पर जिस जगह से लोग लौटे, वहीं पर स्तूप का निर्माण करवाया गया. पाल काल में स्तूप का निर्माण करवाया गया था. कोलुहा में भी ऐतिहासिक विरासत है. मौर्य काल की सबसे प्राचीन स्तंभ यहीं पर है. ऊपर में सिंह विराजमान हैं, लेकिन यहां कोई शिलालेख नहीं है. यह अशोक के कार्यकाल से पहले का स्तंभ हो सकता है, क्योंकि सिंह आक्रमक रूप में हैं.