पटना:राजनीति में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Election Strategist Prashant Kishor) की एंट्री (Prashant Kishor entry in politics) के संकेत के साथ ही बिहार के सियासी गलियारे में हलचल तेज हो गई है. तमाम दलों के नेता 'पीके' पर प्रतिक्रिया (Prasahant Kishore Politics) दे रहे हैं. एक समय था जब प्रशांत किशोर सीएम नीतीश कुमार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते थे. प्रशांत किशोर नीतीश कुमार के लिए रणनीति बनाने का काम करते थे. लेकिन अब दोनों एक दूसरे को आंखें दिखा रहे हैं.
पढ़ें-PK के जन सुराज अभियान पर JDU नेता बोले- 'हमारी पार्टी की सेहत पर नहीं पड़ेगा कोई असर'
क्यों खफा हैं प्रशांत-नीतीश?: बता दें कि प्रशांत किशोर और सीएम नीतीश कुमार दोनों की सहमति से सात निश्चय योजना को बिहार में लागू भी किया गया था. पीके सात निश्चय योजना को सरकार की बड़ी उपलब्धि बताते थे. नीतीश कुमार प्रशांत किशोर से इतने खुश थे कि उन्हें फ्री हैंड दे रखा था. प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी भी बताया जा रहा था. लेकिन परिस्थितियां बदली और दोनों की राहें अलग अलग हो गईं. प्रशांत किशोर ने जदयू छोड़ दिया और फिर दूसरे राज्यों में रणनीतिकार के रूप में काम करने लगे.
प्रशांत किशोर की राजनीति में एंट्री!: कांग्रेस पार्टी से मोहभंग होने के बाद प्रशांत किशोर ने नई पार्टी बनाने का फैसला लिया है. प्रशांत किशोर पार्टी लांच करने जा रहे हैं तो सवाल ये उठता है कि वह अपने द्वारा बनाए गए नीतीश कुमार के योजनाओं को किस तरीके से देखेंगे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पीके का सुराज (PK Jana Suraj Abhiyan) नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल को चुनौती दे सकेगा.
स्लोगन को लेकर सियासत:भाजपा ने प्रशांत किशोर के सियासी दांव पर सवाल खड़े किए हैं. पार्टी प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा है कि सुशासन का नारा अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया था जबकि स्वराज से सुराज का नारा लालकृष्ण आडवाणी ने दिया था. राजनीति संकल्प और रणनीति से होती है. प्रशांत किशोर के पास ना तो रणनीति है ना ही संकल्प है. वह सिर्फ बिहार की जनता को ठगने आए हैं. बता दें कि प्रशांत किशोर (Election Strategist Prashant Kishor) ने सोमवार को अपने नए 'जन सुराज' अभियान का शंखनाद किया था. राजनीति में उनकी एंट्री के संकेत के साथ ही बिहार के सियासी गलियारे में हलचल तेज हो गई हैं
"केवल नारे गढ़ने से कोई सुशासन नहीं दे सकता है. सुशासन के लिए संकल्प चाहिए. वो संकल्प हमारी एनडीए सरकार में है. एनडीए सरकार ने उस संकल्प को जमीन पर उतारने का काम किया है. तभी बार बार हम जनता का विश्वास जीत रहे हैं. विकास को जो परचम हमने लहराया है उसे कोई दूर-दूर तक छू नहीं सकता है."- प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता
प्रशांत किशोर के मामले पर सीएम ने साधी चुप्पी: जदयू अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में है. नीतीश कुमार भी प्रशांत किशोर के मुद्दे पर फिलहाल कुछ बोलने से बच रहे हैं. जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा है कि प्रशांत किशोर ने अभी अपनी रणनीति का ऐलान नहीं किया है. वह पार्टी बनाएंगे या फिर किसी संस्था के जरिए काम करेंगे जब वह अपनी रणनीति का खुलासा करेंगे तभी पार्टी अपनी प्रतिक्रिया देगी.
"प्रशांत किशोर ने अपनी रणनीति का खुलासा अब तक नहीं किया है. सार्वजनिक तौर पर जब रणनीति का खुलासा करेंगे, क्या करना चाहते हैं, पहले वो सामने आए. उसके बाद उनकी रणनीति के आधार पर हम आगे कुछ बात कर सकते हैं."-अरविंद निषाद, जदयू प्रवक्ता
"राजनीति में कोई भी आ सकता है. किसी को भी मनाही नहीं है. वो सोशल वर्कर नहीं है. प्रशांत किशोर लीडर भी नहीं है बल्कि वे वेंडर है जिसका इस्तेमाल सभी पॉलिटिकल पार्टियां करती हैं, जो मार्केटिंग की राजनीति में विश्वास करते हैं. कितने दिन टिकेंगे मुझे मालूम नहीं. प्रशांत किशोर पुष्पम प्रिया चौधरी के मेल वर्जन है."- शक्ति यादव, राजद प्रवक्ता
"काम की चुनौती किसी की किसी से नहीं होती है. इंप्लीमेंटेशन में चीजें जाकर ठहर जाती हैं. सैद्धांतिक तौर पर कोई सुशासन की बात करे, कोई सुराज की बात करे. लेकिन अगर उसे व्यवहारिक धरातल में उतारने में सक्षम न हो तो फिर उसका कोई मतबल नहीं रह जाता है. प्रशांत किशोर के लिए नई पार्टी बनाने के बाद सबसे बड़ी चुनौती होगी जमीनी पकड़. कैसे संगठन खड़ा करेंगे, कार्यकर्ताओं की टीम कैसी होगी. अभी तक तो ये प्रोफेशनल काम कर रहे थे. पैसे लेकर पार्टियों को सुविधा मुहैया कराते थे. अब प्रोफेशनल से सोशल बनने की जो यात्रा है इसमें कितना सफल होते हैं देखने वाली बात होगी."-डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक
सियासी पिच पर PK की एंट्री :दरअसल, सोमवार को एक ट्वीट से यह चर्चा शुरू हो गई कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके फिर से करेंगे बिहार से नई राजनीति की शुरूआत करने जा रहे है. उन्होंने कहा ''पिछले 10 साल के अनुभव के बाद 'रियल मास्टर' यानी जनता के पास जाने का समय आ गया है. शुरूआत बिहार से.'' मूल रूप से बिहार के रहने वाले प्रशांत किशोर भाजपा, फिर कांग्रेस, जेडीयू, टीएमसी समेत अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं. किशोर अब दूसरों के लिए रणनीति नहीं बनाएंगे बल्कि राजनीति की नई शुरूआत करेंगे.
PK के इस ट्वीट ने मचाई हलचल :चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने सोमवार को ट्वीट में कहा, ''लोकतंत्र में प्रभावशाली योगदान देने की उनकी भूख और लोगों के प्रति कार्य नीति तैयार करने में मदद करने का सफर काफी उतार चढ़ाव वाला रहा है. अब मुद्दों और जन सुराज के मार्ग को बेहतर ढंग से समझने के लिए 'रियल मास्टर' यानी जनता के पास जाने का समय आ गया है. शुरूआत बिहार से.''
क्या होगा पार्टी का नाम? : प्रशांत किशोर के ट्वीट को देखें तो एक तरह से उनकी पार्टी का नाम जन सुराज हो सकता हैं. हालांकि इस ट्वीट के बाद ये कयास भर ही है. पार्टी किस रुप में होगी. उसका नाम क्या होगा. यह सब तो पीके के दिमाग में होगा. लेकिन यह सवाल जरुर है कि अभी बिहार में कोई चुनाव होने वाला नहीं है. बिहार विधान सभा का चुनाव 2025 में और लोकसभा का चुनाव 2024 में होना है. तो फिर प्रशांत किशोर ने ऐसा क्यों लिखा, 'शुरुआत बिहार से'? हालांकि हो सकता है कि बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. प्रशांत किशोर तीन साल पहले ही राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर एक या दो साल में अपनी पॉलिटिकल पार्टी लांच कर सकते हैं.
बड़ा धमाल करने की तैयारी में pk :कांग्रेस में बात न बनने के बाद प्रशांत किशोर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर राजनीति में बड़ा धमाल करने की तैयारी में हैं. चार साल पहले बिहार में उनका संक्षिप्त राजनीतिक कार्यकाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल के साथ शुरू हुआ था. तब उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था लेकिन 16 महीने बाद ही उन्होंने मतभेद के बाद पार्टी छोड़ दी थी.
कौन हैं प्रशांत किशोर? : प्रशांत किशोर का जन्म 1977 में बिहार के बक्सर जिले में हुआ था. उनकी मां उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की हैं, वहीं पिता बिहार सरकार में डॉक्टर हैं. उनकी पत्नी का नाम जाह्न्वी दास है, जो असम के गुवाहाटी में डॉक्टर हैं. प्रशांत किशोर और जाह्न्वी का एक बेटा है. प्रशांत किशोर के राजनीतिक जीवन की बात करें, तो वे 2014 में मोदी सरकार को सत्ता में लाने की वजह से चर्चा में आए थे. उन्हें एक बेहतरीन चुनावी रणनीतिकार के तौर पर जाना जाता है. हमेशा से वह पर्दे के पीछे रहकर अपनी चुनावी रणनीति को अंजाम देते आए हैं लेकिन इस बार कांग्रेस में शामिल होकर उनकी नई राजनीतिक शुरूआत करने के संकेत लगाए जा रहे थे जिसे पीके ने स्वयं ही खारिज कर दिया.
पढ़ें-राजनीति में पीके की एंट्री के संकेत ने सियासी दलों की बढ़ाई बेचैनी, सत्ता पक्ष और विपक्ष ने दागे तीखे सवाल
विश्वसनीय खबरों को देखने के लिए डाउनलोड करेंETV BHARAT APP