पटनाः प्रकाश का पर्व दीपावली में कुछ दिन बचे हैं. दीपावली को रौशनी और दीयों का त्यौहार कहा जाता है. इस दिन हर तरफ दीये कैंडल और रंग बिरंगी लाइटों की जगमगाहट देखने को मिलती है. हर साल दीपावली के समय मिट्टी के दीये की खूब डिमांड होती है, लेकिन इस बार इसकी डिमांड न के बराबर है. इससे दीये बनाने वाले कुम्हार काफी निराश हैं. अधिकांश कुम्हार दीये की जगह मिट्टी के कुल्हड़ बनाते नजर आ रहे हैं.
नहीं मिल रहे दीये के ऑर्डर
कुम्हार जोगिंदर पंडित ने बताया कि उन्होंने 9 नवंबर से मिट्टी के दीये बनाने की शुरूआत की. इस बार बाजार में दीये की डिमांड नहीं है. इस वजह से उन्होंने देर से दीये बनाने का काम शुरू किया है. कुम्हार ने बताया कि उन्हें इस बार दीये का कोई आर्डर नहीं मिला है. दीपावली के दिन कुछ आर्डर आ जाए इस उम्मीद में वे कुछ दीये बना रहे हैं.
"मिट्टी के दिये और बर्तनों की डिमांड अब बाजार में बिल्कुल भी नहीं रह गई है. इससे अब कम दीये बनाते हैं. त्योहारों का सीजन खत्म होते ही अपना घर चलाने के लिए मजदूरी के काम में लग जाते हैं."-जोगिंदर पंडित, कुम्हार
"इस बार हम मिट्टी के दीये नहीं बना रहे हैं. बाजार में बंगाल और अन्य प्रदेशों से काफी बड़ी मात्रा में मिट्टी के दीये और अन्य सामान आ रहे हैं. इससे इसकी डिमांड न के बराबर हो गई है. इसकी जगह हम मिट्टी के कुल्हड़ बना रहे हैं. अभी के समय में कुल्हड़ की चाय फैशन में है."-रामजी पंडित, कुम्हार
अन्य प्रदेशों से आए कुल्हड़ की डिमांड
कुम्हार रामजी पंडित ने कहा कि उनके कुल्हड़ भी अब कम ही बिक रहे हैं. इसकी वजह अन्य प्रदेशों से मिट्टी की कुल्हड़ आना है. ये मशीनी तकनीक से बने होते हैं. इनकी कीमत हमारे बनाए कुल्हड़ की अपेक्षाकृत कम है.
न के बराबर मिट्टी के सामान की बिक्री
कुम्हार शंकर पंडित ने बताया कि मिट्टी के सामान की बिक्री न के बराबर रह गई है. लोग फॉर्मेलिटी के तहत काफी कम मात्रा में मिट्टी के दीये और बर्तन दीपावली के समय खरीद रहे हैं. इसके साथ ही अब प्लास्टिक के दीये और मोमबत्ती की डिमांड बढ़ गई है. इससे मिट्टी के दीये की कीमत भी मिट्टी के भाव गिर गई है. इस वजह से हमारी लागत भी नहीं निकल पा रही है.
पुश्तैनी पेशा छोड़ मजदूरी को मजबूर कुम्हार
कुम्हार अब मिट्टी के दीये बनाने का पारंपरिक पेशा छोड़कर मजदूरी की तरफ रुख कर रहे हैं. वे अपने घर के खर्चे तक इससे नहीं निकाल पा रहे हैं. इस वजह से कुम्हार अन्य जगह मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करने को मजबूर हैं.