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उत्तर के रास्ते पूर्वी और दक्षिण भारत के राज्यों पर 'कब्जे' की तैयारी में बीजेपी, पढ़ें इनसाइड स्टोरी - latest news

तीनों राज्यों केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में एक वोट बैंक ऐसा भी है, जो मोदी के साथ मजबूती से जुड गया है. दरअसल द्रमुक तमिलनाडु में हिंदी थोपने के मुद्दे पर आंदोलन कर रही है. अब इन दलों की परेशानी अप्रवासी बिहारी और उत्तर प्रदेश के लोग हैं, जो बीजेपी के मजबूत पक्ष है.

पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

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Published : Nov 15, 2020, 9:23 PM IST

Updated : Nov 16, 2020, 12:07 AM IST

उत्तर के रास्ते पूर्वी और दक्षिण भारत के राज्यों पर 'कब्जे' की तैयारी में बीजेपी, पढ़ें इनसाइड स्टोरी

पटना: बिहार चुनाव के बाद देश की राजनीति में 2024 के लिए राजनीतिक गणित का गुणा भाग शुरू हो गया है. दरअसल, दक्षिण भारत की राजनीति में बीजेपी की मजबूत दखल हुई है और वहां पर बीजेपी अपनी जड़ें मजबूत कर रही है. दक्षिण भारत की राजनीति में पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है, जिसका असर है कि जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू दोनों बयानों में मोदी के लिए सहज हुए हैं.

पीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करने में दोनों लोग एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं. देश में मजबूत नेतृत्व के जिस सहज भाव को मोदी रख रहे हैं, वह दूसरे राज्यों को लिए मिसाल बन रहा है. बिहार फतह के बाद नीतीश का सीएम बनना दूसरे राज्यों के लिए मोदी के निर्णय पर मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है. 2020 के बाद बीजेपी 2021 की तैयारी दक्षिण से मजबूत करके उत्तर भारत के रास्ते पूर्वी राज्यों पर कब्जा करना चाह रही है.

पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

दक्षिण से लेकर उत्तर तक की सियासी किलेबंदी में मोदी की राजनीति हर ध्रुव पर किलेबंदी में जुट गयी है. पश्चिम बंगाल में गृहमंत्री अमित शाह अपनी गणित बैठाने में जुटे है. वहीं, बिहार में बीजेपी के मजबूती के बाद भी सीएम नीतीश कुमार ही हुए हैं. यह है कि बिहार के बाद तमिलनाडु में एनडीए ने अन्नाद्रमुक के पलानीस्वामी को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपना चेहरा चुना है.

पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

पलानीस्वामी और पन्नीरसेलवम के बीच गंभीर मतभेद के बावजूद अन्नाद्रमुक ने लोकतांत्रिक ढंग से पलानीस्वामी को अपना मुख्यमंत्री चुना. अप्रैल, 2021 में दक्षिण भारत के तीन राज्यों-केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. तीनों जगह अलग-अलग पार्टी की सरकार है. विकास देश का एजेंडा हो गया है, ऐसे में हर राज्य दो इंजन की सरकार के साथ विकास की बात करना चाहता है.

पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

उत्तर वाली राजनीति का दक्षिण पर असर
तीनों राज्यों केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में एक वोट बैंक ऐसा भी है, जो मोदी के साथ मजबूती से जुड गया है. दरअसल द्रमुक तमिलनाडु में हिंदी थोपने के मुद्दे पर आंदोलन कर रही है. अब इन दलों की परेशानी अप्रवासी बिहारी और उत्तर प्रदेश के लोग हैं, जो बीजेपी के मजबूत पक्ष है. बात जगन रेड्डी की करें तो वो एनडीए में शामिल होने को इच्छुक हैं. हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी और पीएम मोदी के बीच एनडीए में शामिल होने को लेकर दो दौर की वार्ता हुई है.

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अंदरूनी सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि वाईएसआर कांग्रेस मोदी मंत्रिमंडल में दो सीटें चाहती है. वर्ष 2018 में चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेदेपा के मोदी सरकार से बाहर हो जाने के बाद वाईएसआर कांग्रेस को एनडीए में शामिल होने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन जगन ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख को डर है कि एनडीए में शामिल होने से राज्य के मुस्लिम और ईसाई मतदाता उनके खिलाफ हो सकते हैं.

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राज्य की कुल आबादी में दस फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले अल्पसंख्यक जगन मोहन रेड्डी के कट्टर समर्थक हैं. वहीं, बात बीजेपी की करें तो मोदी-अमित-नड्डा की तिकड़ी दक्षिण के छह राज्यों में बीजेपी के लिए कम से कम 40 सीटें हासिल करने की रणनीति तैयार कर रही है. दक्षिण के राज्यों के क्षेत्रीय दलों को इसी बात का सुकून है कि लोकसभा की सीटों मोदी वाली बीजेपी को मिल गयी तो राज्य की दावेदारी बीजेपी नहीं करेगी बल्की मजबूत भागीदारी की सरकार बनाने में मदद करेगी.

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बिहार में वाम दलों की जीत ममता की बेचैनी
बिहार में राजद कांग्रेस और वाम दल एक साथ चुनाव लड़े, वाम दलों ने बिहार की राजनीति में जिस तरह से वापसी की है, उसने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की बेचैनी बढ़ा दी है. बीजेपी को बंगाल की राजनीति में सुकून के कुछ अवसर मिलते दिख रहे है. नरेन्द्र मोदी पश्चिम बंगाल को लेकर अलग सियासी लड़ाई में है. 35 सालों तक पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज रहने वाली वामपंथी पार्टियों का राज्य और राष्ट्रीय फलक से अप्रासंगिक हो जाना और ममता का आ जाना एक सियासी बदलाव रहा है.

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बंगाल में महज 6 प्रतिशत वोट पर लेफ्ट सिमट गया. पश्चिम बंगाल के होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर ममता के माथे पर बिहार की राजनीति में वाम दल के दखल से बल पड़ गया है. बिहार चुनाव परिणामों के बाद 13 नवम्बर को ममता बनर्जी ने 2 लाख से ज्यादा नौकरियों का ऐलान कर दिया. लेकिन वह भी उस समय आ रहा है, जब ममता की सरकार के कार्यकाल को दूसरे नजरिए से देखा जा रहा है. बिहार चुनाव में रोजगार का मुद्दा चल गया. पश्चिम बंगाल में इसे बीजेपी अभी से भजाने में जुट गयी है.

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रोजगार और राज्य में बंद हुई कंपनियों के मामले को लेकर ममता सवालों के घेरे में हैं. ऐसे में वाम दलों की राजनीतिक जमीन मजबूत होना. ममता के लिए परेशानी का कारण है. बीजेपी के लिए अवसर यह भी है कि अगर ममता से वाम दल मजबूती से लड़ गया तो लोकसभा के वोट बैंक को अपना रंग दे चुकी बीजेपी पश्चिम बंगाल में भी भगवा रंग लहरा देगी.

यूपी सियासत का पूर्वान्चल एक्सप्रेस वे
2021 में यूपी में पंचायत चुनाव होने है. माना जा रह है कि यह विधान सभा चुनाव का सेमीफाइनल होगा. भले ही यूपी में दलों की सीधी दखल पंचायत चुनाव में न हो लेकिन ग्राम प्रधान और जाति की राजनीति में कौन मजबूत हुआ है, वह राजनीति को बहुत कुछ दिशा दे जाता है. 2015 के प्रधानी के चुनाव में जो परिणा में आए थे उससे अखिलेश यादव की सरकार पूरी तरह से हिल गयी थी और गद्दी चली गयी.

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दरअसल, मोदी सियासत की राजनीतिक गंगा-बनारस के घाटों पर हिलोरे मार रही है. गंगा-जमुनी तहजीब की राजनीति ने उत्तर प्रदेश से मंदिर राजनीति को मुद्दों से अलग कर दिया. पूर्वी भारत के लिए गंगा से जिस जल को भरकर मोदी ने सियासी राजतिलक किया है, उससे पश्चिम बंगाल के हुगली में गंगासागर तक नई राजनीति धारा को दे दिया है. बीच की बची राजनीति ने पूर्वान्चल की सियासत को साध कर पूरा किया जा रहा है.

रफ्तार में मोदी की सियासत!
उत्तर प्रदेश की राजनीति का मजबूत गढ़ पूर्वान्चल बना हुआ है. बनारस से पीएम मोदी सांसद हैं, गोरखपुर सीएम योगी की सिटी कही जाती है. आजमगढ़ से अखिलेश यादव सांसद है, अमेठी पर अब बीजेपी का कब्जा है. लेकिन अमेठी और रायबरेली 10 जनपथ के लोगों का सियासी ठिकाना रहा है. सुल्तानपुर से पहले वरूण गांधी और अब मेनका गांधी है. यूपी की राजनीति को सधाने के लिए मोदी सियासत इसी पूर्वान्चल एक्सप्रेस वे पर रफ्तार भर रही है.

विकल्प ना होना एक बड़ा कारण
अब विकास की सियासत का जो रंग मोदी ने राजनीति में भरा है. वे देश के वेसे राजनीतिक दलों के लिए मुद्दों का नासूर बनता जा रहा है, जो जाति से आगे नहीं जा रहे थे. मोदी की राजनीति ने जिस तरह से रफ्तार पकड़ी है, उसमें बीजेपी से ज्यादा मोदी के लहर का असर काम कर रहा है. हालांकि, बिहार की राजनीति और देश की आर्थिक संरचना को जोड़ कर मोदी के कद को देखने वाले इसे तेज गति से सपनों को बेचने की बात तो जरूर करते हैं. लेकिन विकल्प ना होना भी एक बड़ा कारण मानते हैं.

प्रमुख अर्थशास्त्री नवल किशोर चौधरी ने कहा था कि विकास दर को बढ़ा लेना उतनी चुनौती नहीं है, जितना उसे स्थिर रखना. दक्षिण की राजनीति में शिक्षा और रोजगार का अवसर मजबूत है लेकिन उत्तर भारत के लिए विकल्प तैयार करना होगा. सिर्फ होगा जैसे शब्दों से बात पूरी नहीं होगी. हालांकि, कई राजनीतिक समीक्षक यह मानते हैं कि करने के लिए हौसला देना भी जरूरी है. गंगा जमुनी तहजीब जैसी जिस समाजिक संरचना से भारत जुड़ा है, उसमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक मोदी के निर्णय ने अपनी जगह बनाई है. यही वजह है कि मोदी की सियासत दक्षिण से उत्तर का नया सियासी ध्रुव बन रही है.

Last Updated : Nov 16, 2020, 12:07 AM IST

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