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बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बयानबाजी तेज, BJP ने RJD के आरोपों पर किया पलटवार - Bihar Assembly Elections

राजद के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कह कि हमारे मुखिया लंबे समय से चुनाव नहीं लड़े हैं. बिहार के उप मुख्यमंत्री चुनाव लंबे समय से नहीं लड़े हैं. सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता जब तक जनता के बीच नहीं जाएंगे, तब तक ना तो वह जनता का दर्द समझ सकते हैं, ना ही विधायकों के परेशानी से रूबरू हो सकते है.

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Published : Sep 30, 2020, 4:54 PM IST

पटनाः साल 2005 से 2010 के बीच बिहार में विकास की जो बयार थी वह बितों दिनों में देखने को नहीं मिली. 5 साल के दौरान सरकार ने चहुमुखी विकास की. लेकिन विकास के रफ्तार में धीरे-धीरे ब्रेक लग गई और विकास कुछ एक सेक्टर तक सीमित रह गया. सत्ता में बैठे लोग जनता से दूर हो गए. कर्पूरी ठाकुर जब बिहार के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब तक यह परंपरा थी कि विधानसभा चुनाव जीतने वाले नेता ही मुख्यमंत्री बनते थे या फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद नेता विधानसभा चुनाव लड़कर जनता का विश्वास हासिल करते थे. लेकिन गठबंधन की राजनीति के दौर में परंपरा पीछे छूट गई.

बिहार विधानसभा चुनाव
वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2004 के बाद से चुनाव नहीं लड़े. 2005 से लगातार सीएम नीतीश कुमार विधान परिषद के सदस्य हैं. ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार चुनावी राजनीति से परहेज करते हैं. नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1977 से पहले हुआ. पहला चुनाव उन्होंने 1977 और दूसरा 1980 लड़ा. लेकिन दोनों चुनाव में नीतीश कुमार की हार हुई.

2004 के बाद से सीएम नीतीश ने नहीं लड़ा चुनाव
1985 में अरनोद से नीतीश कुमार विधायक हुए. 1989, 1995 और 1996 में बाढ़ से तीन बार सांसद हुए. 2004 में नीतीश कुमार बाढ़ और नालंदा दोनों जगह से लोकसभा चुनाव में नामांकन किया. लेकिन नीतीश कुमार बाढ़ से चुनाव हार गए और नालंदा से नहीं जीत हासिल हुई. बाढ़ से चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार बेहद आहत हुए और उन्होंने चुनाव ना लड़ने की ठान ली. 2005 में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तब वह सांसद थे. दिलचस्प वाक्या यह है कि 1995 में नीतीश कुमार सांसद रहते हुए हरनौत से विधानसभा चुनाव लड़े थे और एक बार भी नामांकन के बाद विधानसभा का दौरा नहीं किया. लेकिन बावजूद इसके वह 6000 वोटों से चुनाव जीते थे.

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नीतीश कैबिनेट में कुछ मंत्री भी विधान परिषद कोटे से
बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी 2005 के बाद से लगातार विधान पार्षद हैं और वह चुनावी राजनीति से दूर हैं. लेकिन सुशील मोदी में राजनीतिक जीवन की शुरुआत चुनावी राजनीति से की 1990, 1995 और 2000 में सुशील मोदी पटना मध्य से विधायक रहे. 2004 में सुशील मोदी भागलपुर से सांसद हुए. लेकिन उप मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और 2005 से वह लगातार विधान पार्षद हैं. नीतीश कुमार सुशील मोदी के अलावा नीतीश कैबिनेट में कुछ मंत्री भी विधान परिषद कोटे से हैं. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और जल संसाधन मंत्री संजय झा विधान पार्षद हैं और इनका भी चुनावी राजनीति से सरोकार नहीं रहा है.

जनता का दुःख दर्द जानने के लिए नेता चुनावी राजनीति में हिस्सा लें
राजद के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कह कि हमारे मुखिया लंबे समय से चुनाव नहीं लड़े हैं. बिहार के उप मुख्यमंत्री चुनाव लंबे समय से नहीं लड़े हैं. सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता जब तक जनता के बीच नहीं जाएंगे, तब तक ना तो वह जनता का दर्द समझ सकते हैं, ना ही विधायकों के परेशानी से रूबरू हो सकते है.

राजद के आरोपों पर पलटवार
बीजेपी नेता और विधान पार्षद सम्राट चौधरी में राजद के आरोपों पर पलटवार किया है. सम्राट चौधरी ने कहा है कि नीतीश कुमार कई बार चुनाव लड़ चुके हैं और उन्हें सांसद और विधायक रहने का भी गौरव हासिल है. उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी विधायक और सांसद रहे हैं. लेकिन जब से सरकार में आए हैं. तब से सरकार के काम के वजह से हमारे नेता चुनावी राजनीति से दूर हैं. लेकिन अपने लोगों को यह लोग चुनाव लड़ाने का काम करते हैं.

जनता से जुड़े विकास के मुद्दे नहीं आते सामने
राजनीतिक विश्लेषक डीएम दिवाकर का कहना है कि कर्पूरी ठाकुर जब तक मुख्यमंत्री थे तब तक इस परंपरा का निर्वहन होता था कि मुख्यमंत्री को विधानसभा चुनाव जीत कर आना चाहिए या फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद जनता से जनादेश लेना चाहिए. गठबंधन की राजनीति के दौर में नेताओं ने खुद को चुनावी राजनीति से अलग कर लिया. जिसका नतीजा यह है कि जनता से जुड़े विकास के मुद्दे कई बार सामने नहीं आ पाते हैं.

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