पटना: मसौढ़ी के पुनपुन नदी को पिंडदान (Pind Daan On Punpun River Of Masaurhi) का प्रथम द्वार कहा जाता है. मान्यता के अनुसार पितरों का गयाजी में पिंडदान करने से पहले यहां पिंडदान ( Importance Of Pitru Paksha) करना जरूरी होता है. पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है. इसके पीछे सदियों से चली आ रही मान्यता है. अगर यहां पिंडदान किए बिना कोई गया जाकर पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करना चाहे तो ऐसा संभव नहीं हो सकता है.
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पुनपुन में पिंडदान शुरू : पितृपक्ष की शुरुआत ( Pitri Paksha 2022) 10 सितंबर 2022 से हो रही है और 25 सितंबर (Pitru Paksha Date 2022) तक चलेगी. इसकी तिथि को लेकर किसी भी तरह का संशय नहीं होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं मसौढ़ी के पुनपुन में पिंडदान 9 सितंबर यानी कि आज से शुरू हो गया है. भाद्रपद चतुर्दशी को पटना जिले की पुनपुन नदी या गया शहर में स्थित गोदावरी से त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू हो गया है. पिंडदानी पुनपुन नदी में श्राद्ध करने के बाद गया के लिए रवाना हो रहे हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि किन्हीं कारणों से पिंडदानी पुनपुन में पिंडदान नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में अगर कोई सीधे गयाजी आते हैं तो वे यहां के गोदावरी तालाब में पिंडदान के साथ त्रिपाक्षिक पिंडदान शुरू करेंगे. यानी कि यहां उन्हें त्रिपाक्षिक पिंडदान करना ही होगा. तभी पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्त होती है.
पिंडदानियों का गया पहुंचने का सिलसिला शुरू: पहले दिन पुनपुन घाट पर श्राद्ध किया जाता है, जो व्यक्ति पुनपुन नहीं पहुंच पाते. वह गया में गोदावरी सरोवर पर पिंडदान करते हैं. गोदावरी सरोवर पर शुक्रवार को पिंडदान करने के लिए बंगाल, मुंबई समेत देश के कोने-कोने से पिंडदानी पहुंचे हैं. इस तरह पिंडदानियों के गया आने का सिलसिला शुरू हो गया है.
पुनपुन में भगवान श्री राम ने किया था पिंड दान: मान्यताओं के अनुसार पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम (Lord Shri Ram Pind Daan in Punpun) माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किए थे, इसलिए इसे पिंड दान का प्रथम द्वार कहा जाता है. इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था. प्राचीन काल से पहले पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान का तर्पण करने की परंपरा भी है. तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है.
यह भी है मान्यता:पुनपुन नदी के उद्गम के बारे में कहा जाता है महर्षि चैवण्य ने सृष्टि के रचियता बह्मा से पूछा कि भगवान मृत्युलोक के लोगों की मृत्यु के पश्चात उसे मोक्ष कैसै प्राप्ति होगी. तब उन्होंने महर्षि चैवण्य को तपस्या का मार्ग बतलाया. महर्षि चैवण्य अपने सभी सप्त ऋषियों के साथ जंगल मे घोर तपस्या में लीन होकर मोक्ष का मार्ग ढूंढने लगे. घोर तपस्या के बाद ब्रह्मदेव प्रकट हुए और कहा कि आपलोगों की तपस्या सफल हुई, लेकिन ऋषियों को समझ में नहीं आया कि कुछ मिला नहीं और ब्रहमदेव कह रहे हैं कि तपस्या सफल हुई. उसके बाद सभी ऋषि ब्रह्मदेव के चरण धोने के लिए जल खोजने लगे, लेकिन जंगल मे जल नहीं मिलने पर अपने-अपने पसीने को कमंडल में जमा करना शुरू कर दिया. बार-बार कमंडल में पसीना भरने के बाद वह अपने आप गिर जाता था. ऐसे में ब्रहमदेव के मुख से निकला पुनः पुनः. ऐसा क्यों हो रहा है. फिर उसी समय वहां जल स्त्रोत का उदगम हुआ, जो पुनपुन नदी कहलाया. ब्रह्मदेव ने कहा कि जो भी प्राणी इस पुनपुन नदी तट पर अपने पितरों का पिंड दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी.
कब से शुरू हो रहा पितृ पक्ष 2022: पितृ पक्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के पूर्णिमा से शुरू होता है. भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि 10 सितंबर को है, ऐसे में पितृ पक्ष की शुरुआत 11 सिंतबर अश्विन माह के कृष्ण पक्ष के प्रतिपदा तिथि से हो रही है. इसका समापन 25 सितंबर को होगा. इस बीच पितरों का आशीर्वाद पाने के लिए उनका तर्पण अवश्य करना चाहिए.
क्यों करते हैं पितृ पक्ष?:हिंदू धर्म में व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात उसे पितृ की संज्ञा दी जाती है. मान्यता अनुसार मृतक का श्राद्ध या तर्पण न करने से पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है, जिससे घर में पितृ दोष लगता है और घर पर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वहीं जिनके घर के पितृ प्रसन्न रहते हैं उनके घर कभी कोई मुसीबत नहीं आती है. ऐसे में पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए आश्विन माह में 15 दिन का पितृ पक्ष समर्पित होता है, इस बीच पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किया जाता है.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.