पटना:कोरोना (Corona) और लॉकडाउन (Lockdown) ने लोगों की जिंदगी बदलकर रख दी. हर किसी के लिए उस वक्त के हालात पीड़ादायक थे. लेकिन बिहार के पटना के एक शक्स ने उन विकट परिस्थितियों में भी कुछ ऐसा कर दिखाया जिसकी वजह से आज हर किसी की जुबां पर उनका नाम है. मेक इन इंडिया (Make in India) और आत्मनिर्भर भारत की तर्ज पर शिक्षक अजीत कुमार ने इलेक्ट्रिक साइकिल (electric bicycle) का निर्माण कर डाला.
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शिक्षक ने बनाया इलेक्ट्रिक साइकिल
राजधानी पटना के राजीव नगर रोड नंबर 17 (A) में कोचिंग संस्थान चलाने वाले अजीत कुमार ने कोरोना काल और लॉकडाउन के बीच इलेक्ट्रिक साइकिल का निर्माण किया है. ये इलेक्ट्रिक साइकिल एक बार चार्ज करने पर 80 किलोमीटर की दूरी तय करती है.
प्रदूषणरहित होगा पर्यावरण
जिस तरह से पेट्रोल के दामों में लगातार वृद्धि हो रही है. ऐसे में यह ई-साइलिल लोगों के लिए यह कारगर साबित होगी. यह इलेक्ट्रिक साइकिल प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की मिसाल पेश कर रहा है. यह प्रयोग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट का भी हिस्सा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार बिहार में बढ़ रहे प्रदूषण के मद्देनजर खुद भी इलेक्ट्रिक कार पर चल रहे हैं और लोगों से भी इलेक्ट्रिक कार, साइकिल और मोटरसाइकिल पर चलने की अपील भी कर रहे हैं.
कोरोनाकाल में किया ई-साइकिल का आविष्कार
अजीत कुमार पेशे से भौतिकी के टीचर हैं, जो पिछले 15 सालों से अपने कोचिंग संस्थान में बच्चों को फिजिक्स पढ़ाते हैं, लेकिन कोरोना काल में कोचिंग बंद होने के बाद अजीत कुमार बेरोजगार हो गए थे. उन्होंने खाली समय में इस अनोखी साइकिल का अविष्कार किया. इस साइकिल का निर्माण करने में तकरीबन 6 महीने का समय लगा, जबकि एक साइकिल बनाने में लगभग 23 से 24 हजार का खर्च आया है.
'जब सभी वैश्विक त्रासदी झेल रहे थे तब पीएम के आत्मनिर्भर भारत से प्रेरित हुआ. लोगों को रोजगार मिले, पर्यावरण, प्रदूषणमुक्त हो इसे ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया है. इस साइकिल की बॉडी स्ट्रॉग बनाई गई है. मोटरसाइकिल की तरह इसे बनाया गया है. इंजॉय करने के लिए ऑडियो सिस्टम भी लगाया गया है.'- अजित कुमार, फिजिक्स टीचर
इलेक्ट्रिक साइकिल की खासियत
इस साइकिल में 0.750 किलोवाट की लेड एसिड बैटरी का उपयोग किया गया है. साइकिल को बाइक का लुक दिया गया है. चाबी घुमाते ही यह सड़कों पर दौड़ना शुरू कर देता है. बाइक की तरह ही ई-साइकिल में क्लच, एस्कलेटर, हॉर्न, हेडलाइट बैकलाइट और इंडिकेटर के साथ-साथ साउंड सिस्टम भी लगा हुआ है.
'इस ई-साइकिल की रफ्तार 25 किलोमीटर प्रति घंटे तक सीमित की गई है. मुझे शुरू से ही मेकनिकल इंजीनियरिंग का शौक रहा है, लेकिन बच्चों को पढ़ाते पढ़ाते शौक पूरा करने का समय ही नहीं मिल रहा था. लॉकडाउन के दौरान कोचिंग बंद होने के बाद मेरे पास काफी समय था तब मैंने एक ऐसी साइकिल बनाने का निर्णय लिया जो कि पर्यावरण को दूषित ना करे.'- अजित कुमार, फिजिक्स टीचर
रोजगार के बढ़ सकते हैं अवसर
अजीत कुमार की मानें तो तत्काल उन्होंने उद्योग आधार ऐप के जरिए अपना रजिस्ट्रेशन तो करा लिया है. लेकिन सरकार से उन्होंने गुजारिश की है कि काफी संख्या में बिहार के मजदूर दूसरे राज्यों में काम करते हैं. सरकार की अगर अनुमति मिल जाए तो बिहार में ही बड़े स्तर पर इस इलेक्ट्रिक साइकिल का कारखाना लगाया जा सकता है. जिसमें हजारों कारीगरों को रोजगार मुहैया हो सकती है.
'बिहार से बाहर जो लोग इलेक्ट्रिक साइकिल बाजार में उतारते हैं, उससे उनके द्वारा बनायी गई यह साइकिल बेहतर क्वालिटी की है इसमें ज्यादा सहूलियत है और बहुत कम रेंज में यह इलेक्ट्रिक साइकिल बाजार में उतारी जा सकती है.'- अजित कुमार, फिजिक्स टीचर
शिक्षक ने बनाया है छोटा कारखाना
कोचिंग संस्थान से कमाए गए पैसे से अजित ने ई-साइकिल बनाने के लिए मशीन भी खरीद रखी है. जिसकी मदद से आसानी से साइकिल बनाई जा रही है. उन्होंने अपनी कोचिंग संस्थान में ही छोटा सा कारखाना तैयार कर रखा है. अजीत कुमार द्वारा बनाई गई साइकिल आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. राज्य सरकार और केंद्र सरकार जिस तरह से आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा दे रही है, ऐसे में युवाओं को सरकार अगर मदद करे तो बिहार में भी छोटे-मोटे कारखाने की शुरुआत हो सकती है.