पटना: राज्यपाल कोटे से एमएलसी मनोनीत भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Building Construction Minister Ashok Chaudhary) और खान व भूतत्व विभाग के मंत्री जनक राम (Mines and Geology Minister Janak Ram) की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वेटरन फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ (Veterans Forum for Transparency in Public Life) की ओर से याचिका दायर करने वाले एडवोकेट दीनू कुमार के अनुसार भवन निर्माण मंत्री पर दो मामले हैं. जेडीयू विधान पार्षद अशोक चौधरी बिना किसी सदन के सदस्य होते हुए लंबे समय तक मंत्री रहे. 6 महीने का कार्यकाल पूरा होने पर उन्हें हटा दिया गया और दोबारा किसी सदन के सदस्य नहीं होने के बावजूद कुछ ही दिनों बाद नई सरकार में मंत्री बना दिया गया. यह पूरी तरह से संविधान के विरुद्ध है.
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पटना हाइकोर्ट के एडवोकेट दीनू कुमार ने कहा कि भारत के संविधान के प्रावधानों के तहत साहित्य, कला, विज्ञान, सामाजिक कार्यकर्ता और सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए विशिष्ट लोगों का ही मनोनयन राज्यपाल कोटे से हो सकता है. साथ ही यह भी बताया गया है कि सामाजिक कार्यकर्ता को काम का अनुभव व्यवहारिक ज्ञान और विशिष्ट होना चाहिए, लेकिन 12 विधान पार्षदों के मनोनयन में इसकी पूरी तरह से मुख्यमंत्री ने अनदेखी की है. संविधान में मनोनयन से बनने वाले विधान परिषद के सदस्यों को मंत्री बनाने का कोई प्रावधान नहीं है. मुख्यमंत्री ने अशोक चौधरी और जनक राम को मंत्री बनाकर अपने पद का दुरुपयोग किया है. उन्होंने कहा कि देश में पांच राज्यों कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं. कर्नाटक के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी है, वैसे राजनीतिक दल संविधान के मापदंडों के अनुसार कभी भी राज्यपाल कोटे से मनोनयन नहीं करते रहे हैं, यह भी सत्य है.