पटना:कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी को फैलने से रोकने के लिए पूरे भारत में लॉकडाउन किया गया है. देशव्यापी लॉक डाउन के दौरान केवल जरूरी दुकान खोलने के आदेश जारी किए गए हैं. लॉकडाउन से उपजे हालात का सबसे ज्यादा असर वैसे लोगों पर हुआ है. जो प्रत्येक दिन कमा कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते थे. हालांकि, सरकार और प्रशासन की ओर से बेसहारों के लिए कई सामुदायिक किचन और राहत कैंप चलाने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन, जब ईटीवी भारत संवाददाता ने राजधानी पटना स्थित मलाही पकड़ी का जायजा लिया तो तस्वीर सरकार के दावों से उलट निकली.
'प्रशासन बंद करा देता है दुकान'
लॉकडाउन के कारण बिहार में हर आम और खास अपने घरों में कैद हैं. संपन्न वर्ग के लोगों पर तो इसका ज्यादा असर नहीं हो रहा है, लेकिन, लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर दिहाड़ी मजदूरों पर हो रहा है. मलाही पकड़ी चौक के पास मटन शॉप चलाने वाले शमीम ने बताया कि हमलोग बंदी के दौरान पूरी तरह से बेरोजगार हो चुके हैं. दिनभर कमाने के बाद दो वक्त की रोटी नसीब होती थी, लेकिन अब बड़ी मुश्किल आ गई है. उसके मुताबिक एक तरफ सरकार ने अधिसूचना जारी कर लॉक डाउन के दौरान फल, सब्जी और दवा दुकानों के साथ मांस-मछली की दुकानें भी खुला रखने का आदेश जारी करती है, वहीं, दूसरी तरफ दुकानों को खोलने पर बंद करा दिया जाता है. जिस वजह से काफी कन्फ्यूजन वाली स्थिति उत्पन्न हो गई है. शमीम ने बताया कि हमलोगों के पास इसके अलावे कोई काम नहीं है. दुकानें बंद होने के कारण हमलोग दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं. शमीम ने बताया कि जाहिर है सरकार और पुलिस ने कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए एहतियात के तौर पर दुकानों को बंद करने का आदेश दिया है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए दुकानों को खोला जा सकता था.
मटन शॉप चालाने वाले दुकानदार 'दाने-दाने को हुए मोहताज'
वहीं, जब ईटीवी भारत संवाददाता ने मलाई पकड़ी चौक के आसपास झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों से बात की तो स्थानीय लोगों ने बताया कि कई दिनों से उन्हें भरपेट भोजन खाने को नहीं मिला है. लॉकडाउन का एक-एक दिन हमलोगों पर भारी पड़ता जा रहा है. लोगों ने बताया कि हमलोग रोज कमाने खाने वाले लोग है. गर्मी हो चाहे सर्दी काम नहीं करने पर भोजन के बारे मे सोचना पड़ता है. कई समाजिक संस्था झोपड़पट्टी इलाके में आकर फूड बांटती है. तो दिन जैसे- तैसे कट जाता है. लेकिन जिस दिन कोई नहीं आता उसे दिन भोजन की राह देखते रह जाते हैं. झोपड़पट्टी में रहने वाली महिलाओं ने बताया कि वे ज्यादा राजनीतिक लोगों के बारे में नहीं जानती है. भूख से बेहाल होने पर वे लोग स्थानीय वार्ड पार्षद के पास दो रोटी की गुहार लेकर पहुचे. लेकिन उन्होंने ने भी घर से भगा दिया. नगर निगम से जब भोजन की मांग की तो वहां मौजूद कर्मियों ने बताया कि खाना खत्म हो चुका है. महिलाओं ने बताया कि हमलोग तो किसी तरह से भूखे पेट भी सो जाते हैं. लेकिन छोटे बच्चे के भोजन मांगने पर उनके आंख से आंसू के सिवा कुछ नहीं निकलता.
सरकारी दावों पर उठ रहे सवाल
गौरतलब है कि कोरोना वायरस से बचाव को लेकर देशभर में लॉक डाउन लागू कर दिया गया है. इस लॉक डाउन से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है. दिहाड़ी मजदूर और उनके परिवार का हाल बेहाल है. इनके लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार ने अपनी ओर से आवश्यक कदम जरूर उठाये हैं. लेकिन सरकारी योजनाओं की तरह ही कई गांवों में सरकार की दी जा रही सहायता नहीं पहुंच पा रही है. लिहाजा, गरीबों के घरों का चूल्हा ठंडा पड़ा हुआ है. ऐसे में सरकार के उन दावों पर सवाल उठ रहे है. जिनमें सरकार गरीबों को राशन देने के साथ-साथ उनके खाते में सहायता राशि भेजने की बात कह रही है.
झोपड़पट्टी में रहने वाली महिलाएं