बिहार

bihar

By

Published : Apr 12, 2023, 7:38 PM IST

ETV Bharat / state

Patna High Court की टिप्पणी: 'बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ब्रांच के पैसे के संरक्षक होते हैं'

बैंक अधिकारी ने अपने कार्यकाल के दौरान कई गड़बड़ी की थी. उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. उसके बाद उसने पटना हाईकोर्ट में अपनी अपील याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि 'बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी बैंक के पैसे के संरक्षक' (bank officer custodian of money) होते हैं. पढ़िये, विस्तार से.

Patna High Court
Patna High Court

पटनाःपटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि बैंक अधिकारी बैंक के पैसे के संरक्षक (bank officer custodian of money) हैं. जस्टिस आशुतोष कुमार एवं जस्टिस हरीश कुमार की खंडपीठ ने बैंक अधिकारी रहे अशोक कुमार सिन्हा की अपील याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. खंडपीठ ने कहा कि उनसे जमाकर्ताओं के पैसे की अनियमितता की उम्मीद नहीं की जा सकती है. ये अनियमितताएं कर्तव्य में चूक नहीं, बल्कि जानबूझकर किए गए कार्य हैं. जिनसे बैंक को गंभीर नुकसान हुआ है और अपीलकर्ता को व्यक्तिगत लाभ हुआ है.

इसे भी पढ़ेंः Motihari Crime: मोतिहारी में बैंक से 40 लाख रुपए की लूट, जेवरात छुड़ाने आए ग्राहक को भी बनाया निशाना

क्या है मामलाः अपीलकर्ता भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा में प्रोबेशनरी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था. सीबीआई ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 420, 409, 467, 468 और 471 और पीसी अधिनियम, 1988 की धारा 13 (2) ,13 (1) (सी) (डी) के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने निवास पर कई ऋण दस्तावेज रखे थे. कर्ज लेने वालों की व्यक्तिगत ऋणों को मंजूरी देने हेतु उनके वेतन पर्ची में हेरफेर किया था. उनके खिलाफ यह भी आरोप थे कि कई व्यक्तिगत ऋण खाते कम सीमा के साथ खोले थे. केवल कुछ महीनों के बाद, उच्च सीमा के लिए ऋण मंजूर किए गए थे.

एकलपीठ के फैसले को चुनौतीः जांच रिपोर्ट के आधार पर, अपीलकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. उसकी पूरी ग्रेच्युटी राशि साढ़े तीन लाख रुपये बैंक को हुई वास्तविक हानि को ध्यान में रखते हुए जब्त कर लिए गए थे. अपीलकर्ता के वकील अरविंद कुमार तिवारी ने एकलपीठ के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि बैंक के नियमों के नियम 68(6) के अनुसार, एक संयुक्त जांच की जानी चाहिए थी. दो अन्य अधिकारियों पर विभागीय कार्यवाही में समान आरोप लगे थे, लेकिन अलग-अलग पूछताछ की गई. उन्हें बिना किसी औचित्य के कम सजा दी गई.

उचित अवसर दियाः एसबीआई की ओर से वरीय अधिवक्ता चितरंजन सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि अपीलकर्ता एक उच्च पद पर था. उसके कब्जे से बरामद ऋण दस्तावेजों के साथ वह वित्तीय कदाचार में फंसा हुआ था. उन्होंने कहा कि अपीलकर्ता को अनुशासनात्मक कार्यवाही में अपना बचाव करने का उचित अवसर दिया गया था. मामले का अवलोकन कर खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को यह कहते हुए सही करार दिया कि ये अनियमितताएं केवल कर्तव्य में चूक नहीं है, बल्कि जानबूझकर किए गए कार्य हैं. बैंक को भारी नुकसान हुआ और सार्वजनिक धन का लूट किया गया.

ABOUT THE AUTHOR

...view details