पटना:बिहार की मजबूत राजनीति के लिए जिस जमीनी आधार को राम विलास पासवान(Ram Vilas Paswan) ने काफी मेहनत से सींचा था, उनकी मृत्यु के बाद आई उनकी पहली जयंती पर ही उनका पूरा कुनबा बिखरा हुआ नजर आया. जिस पार्टी कार्यालय को रामविलास पासवान ने उनकी पार्टी के बेहतर भविष्य की राजनीति के लिए लड़कर खड़ा किया था, वह पार्टी कार्यालय आज रामविलास पासवान की नीतियों और सिद्धांतों के विभेद की सियासत के साथ खड़ा हो गया.
लोजपा में टूट के बाद रामविलास पासवान की जयंती पर लोजपा के पार्टी कार्यालय में पशुपति पारस (Pashupati Paras) गुट का का कब्जा रहा, जबकि चिराग पासवान (Chirag Paswan) सड़क की सियासत ही करते दिखे.
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सड़क पर चिराग
लोजपा के पटना के कार्यालय में रामविलास पासवान की जयंती मनाई गई. इस दौरान लोगों को भोजन भी करवाया गया. उसके लिए पार्टी कार्यालय में दिखने वाली भीड़ भी खूब थी. रामविलास पासवान को श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों में इतनी श्रद्धा थी कि कोरोनावायरस गाइडलाइन का भी पालन होता नहीं दिखा. हालांकि इस पार्टी कार्यालय में सिर्फ इतना ही बदलाव नहीं हुआ. जो लोग कभी इस पार्टी कार्यालय के शान हुआ करते थे, वह भी इस पार्टी कार्यालय में नहीं दिखे. पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान गुट की बन चुकी लोजपा रामविलास पासवान की जयंती पर एक गुट बनकर नहीं रही. पशुपति पारस का गुट पार्टी कार्यालय में जन्मदिन मनाता रहा. जबकि रामविलास ने उस बंगले के लिए जिस 'चिराग' को जलाया था, वह सड़क की ही सियासत करते रह गए.
रामविलास ने लड़ी थी सियासी जंग
लोजपा की टूट के बाद रामविलास पासवान की जयंती वह तारीख थी, जब चिराग पासवान पटना आए थे. माना जा रहा था कि लोजपा के पार्टी कार्यालय जो रामविलास पासवान की आत्मा के साथ जुड़ा था, वहां जाएंगे और जिस रूम में रामविलास रहते थे वहां पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देंगे, लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं. जिस बंगले में लोजपा का पार्टी कार्यालय है, उसके लिए रामविलास पासवान ने लंबी लड़ाई लड़ी थी.
एलजेपी कार्यालय बचाने की लड़ाई
कई बार ऐसे मौके भी आए, जब यह बातें कहीं जाने लगी कि लोजपा कार्यालय के होने से हवाई अड्डे के लिए दिक्कत होती है. इसलिए लोजपा कार्यालय वहां से हटाया जाएगा. चर्चा भी खूब हुई बातें भी उठी, लेकिन रामविलास मजबूती से खड़े रहे और अपने पार्टी कार्यालय को बचा लिया. जिस पार्टी को और इस कार्यालय को रामविलास पासवान ने अपनी शिद्दत से पालकर इस मुकाम तक पहुंचाया था, वह उनकी मौत की पहली ही जयंती पर पूरे तौर पर बिखरी हुई नजर आई. अब यह कहना मुश्किल है कि इसका प्रायश्चित पशुपति कुमार पारस को होगा या फिर चिराग पासवान को.
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दिल्ली से ही शुरू हुई सियासत
चिराग पासवान जब पटना के लिए दिल्ली से जा रहे थे तो वहीं उनसे पूछा गया कि पटना में उनका क्या कार्यक्रम है. उन्होंने उसमें यह भी नहीं कहा कि पार्टी कार्यालय जाएंगे. बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि पार्टी के टूटने के बाद चिराग पासवान यह लगातार कहते रहे हैं कि पार्टी पर उनका कब्जा है. लेकिन जिस कार्यालय से पार्टी चलती है, उस पर तो पशुपति कुमार पारस का कब्जा हो गया है. आज यह बात साबित भी हो गई. अब देखने वाली बात होगी कि बिहार की राजनीति के लिए बनाए प्रदेश लोजपा कार्यालय दिल्ली से कैसे राजनीतिक चीजों को जोड़ पाता है और रामविलास पासवान की नीतियों पर आगे चल पाता है.